बैकुंठ चतुर्दशी मेला

By: Nov 9th, 2019 12:21 am

देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जागते हैं। जिसके बाद वह अपने आराध्य देव भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी  के दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की एक हजार कमलों से पूजा करता है। उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगता है। विभिन्न पर्वों की भांति बैकुंठ चतुर्दशी वर्ष भर में पड़ने वाला हिंदू धर्म का महत्त्वपूर्ण पर्व है। इस बार यह मेला 10 नवंबर से शुरू होगा और 18 नवंबर तक चलेगा। इस अवसर पर विभिन्न शिवालयों में पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है। गढ़वाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों, श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिनसर शिवालय में इस पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं। श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मंदिर पौराणिक मंदिरों में से एक है। इसकी अतिशय धार्मिक महत्ता है, किंवदंती है कि यह स्थान देवताओं की नगरी भी रहा है। इस शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया, तो श्री राम ने रावण वध के उपरांत ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिव जी को प्रसन्न किया व पापमुक्त हुए। स्पष्ट है कि इस स्थान की प्राचीन महत्ता के कारण कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चौदहवीं तिथि को भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र प्राप्ति का पर्व माना गया है। इसे उपलब्धि का प्रतीक मानकर आज भी श्रद्धालु पुत्र प्राप्ति की कामना से प्रतिवर्ष इस पर्व पर रात्रि में साधना करने हेतु मंदिर में आते हैं। तो अनेक श्रद्धालु दर्शन व मोक्ष के भाव से इस मंदिर में आते हैं। जिससे गढ़वाल क्षेत्र में यह मेला एक विशिष्ट धार्मिक मेले का रूप ले चुका है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- बैकुंठ चतुर्दशी मेले के महत्त्व के साथ-साथ कमलेश्वर मंदिर के महत्त्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी समझना आवश्यक है। श्रीनगर प्राचीन काल में श्री क्षेत्र कहलाता था। त्रेता युग में रावण का वध कर रामचंद्र जी द्वारा यहां पर 108 कमल प्रतिदिन एक माह तक भगवान शिव को अर्पण किए जाने का वर्णन मिलता है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की त्रिपुरोत्सव पूर्णमासी को जब विष्णु भगवान ने सहस्र कमल पुष्पों से अर्चनाकर शिव को प्रसन्न कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, उस आधार पर बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु दंपत्ति रात्रि को हाथ में दीपक धारण कर भगवान शंकर को फल प्राप्ति हेतु प्रसन्न करते हैं। शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन शरीर का त्याग करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति इस पूरे विधि विधान से भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करता है। उसके सभी पाप कट जाते हैं।

वर्तमान बैकुंठ चतुर्दशी मेला- बैकुंठ चतुर्दशी मेला वर्तमान में एक पर्व व पूजा आराधना तक सीमित नहीं है। श्रीनगर की बढ़ती आबादी व गढ़वाल के इस शहर की कंेद्रिय भौगोलिक स्थिति व इस शहर के शैक्षणिक केंद्र होने के कारण एक व्यापक धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजन का स्वरूप ले चुका है। प्रतिवर्ष नगरपालिका परिषद श्रीनगर द्वारा बैकुंठ चतुर्दशी पर्व से लगभग 5-6 दिन तक व्यापक सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद प्रतियोगिताओं व स्थानीय संस्कृति पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों को और व्यापक स्वरूप प्रदान कर तथा इनका प्रचार प्रसार कर कमलेश्वर मंदिर से संबंधित पौराणिक धार्मिक मान्यताओं को उजागर कर उन पर आधारित कार्यक्रम तैयार कर इस अवसर पर पर्यटकों को भी आकर्षित किया जाता है।

श्रीनगर की भौगोलिक स्थिति- श्रीनगर शहर जो कि ऋषिकेश से 107 किमी. पौड़ी से 29 किमी. कोटद्वार से 135 किमी. की दूरी पर है व बद्री-केदार यात्रा मार्ग पर स्थित है। पर्यटकों के आवागमन के दृष्टिकोण से उपयुक्त स्थल है। इस आयोजन को व्यवस्थित कर व व्यापक स्वरूप देकर पर्यटकों के उपयोग हेतु प्रचारित किया जा सकता है।

कैसे पहुंचें- श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवस्थित है तथा चार धाम यात्रा मार्ग पर पड़ता है एवं राज्य के अन्य मुख्य शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। बस, टैक्सी तथा अन्य स्थानीय यातायात की सुविधाएं उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार 137 किमी. एवं ऋषिकेश 105 किमी.,निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट 123 किमी.की दूरी पर है।


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