मंत्र जप करने से पहले विनियोग पढ़ा जाता है

By: Nov 23rd, 2019 12:20 am

प्रत्येक देवी-देवता की साधना में मंत्र जप, कवच एवं स्तोत्र पाठ तथा न्यासादि करने से पहले विनियोग पढ़ा जाता है। इसमें देवी या देवता का नाम, उसका मंत्र, उसकी रचना करने वाले ऋषि, उस स्तोत्र के छंद का नाम, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम लेकर अपने अभीष्ट मनोरथ सिद्धि के लिए जप का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद न्यास किए जाते हैं। उपरोक्त विनियोग में जिन देवता, ऋषि, छंद, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम होता है, उन्हीं को अपने शरीर में प्रतिष्ठित करते हैं…

-गतांक से आगे…

विनियोग : प्रत्येक देवी-देवता की साधना में मंत्र जप, कवच एवं स्तोत्र पाठ तथा न्यासादि करने से पहले विनियोग पढ़ा जाता है। इसमें देवी या देवता का नाम, उसका मंत्र, उसकी रचना करने वाले ऋषि, उस स्तोत्र के छंद का नाम, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम लेकर अपने अभीष्ट मनोरथ सिद्धि के लिए जप का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद न्यास किए जाते हैं। उपरोक्त विनियोग में जिन देवता, ऋषि, छंद, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम होता है, उन्हीं को अपने शरीर में प्रतिष्ठित करते हैं।

ऋष्यादिन्यास : इसके अंतर्गत इष्टदेव को मस्तक, मुख, हृदय, गुह्य स्थान, पैर, नाभि एवं सर्वांग में स्थापित करते हैं ताकि शरीर में उनका (देवी या देवता का) वास हो जाए। यही ऋष्यादिन्यास कहलाता है।

करन्यास : करन्यास के अंतर्गत विभिन्न बीजाक्षरों और शब्दों को हाथ की पांचों उंगलियों में स्थापित करते हैं। चूंकि हाथ से माला जपी जाती है, इसलिए हाथ में मंत्र को प्रतिष्ठित करना आवश्यक होता है।

हृदयादिन्यास : हृदयादिन्यास के अंतर्गत मंत्राक्षरों को शरीर के मुख्य स्थानों- मस्तक, हृदय, शिखा-स्थान (जहां आत्मा का वास है), नेत्र तथा सर्वांग की रक्षा हेतु प्रतिष्ठित किया जाता है ताकि समस्त शरीर मंत्रमय हो जाए और शरीर में देवी या देवता का आविर्भाव हो जाए।

ध्यान : इसके अंतर्गत ध्यान मंत्र बोला जाता है। इष्टदेव अथवा देवी-देवता का स्वरूप अपने मन में बिठाकर तथा चित्तवृत्तियों को सब ओर से हटाकर मंत्र जप करने से साधक को सफलता शीघ्र मिलती है।

मंत्र जप

देवी-देवता के स्वरूप का ध्यान करते हुए उनके मूल मंत्र का जप माला द्वारा जिह्वा, कंठ, प्राणों या सुरति से करना चाहिए। मंत्र देवी-देवता के नाम, रूप तथा गुण को प्रदर्शित करता है। इसका अर्थ समझते हुए एकाग्रचित्त होकर श्रद्धापूर्वक मंत्र जप करने से शीघ्र सिद्धि मिलती है। 

 (पाठकों को बता दें कि अगले अंक में हम कवच और पुरश्चरण विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।)


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