मां चंडी देवी

By: Nov 2nd, 2019 12:22 am

हिमाचल प्रदेश में कई शक्ति स्थल हैं। जब भगवान शिव शक्ति के क्षत-विक्षत शव को अपने कंधे पर उठाकर कैलाश जा रहे थे, तो जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां वर्तमान में शक्ति स्थल बन गए। ऐसा ही उभरता हुआ शक्ति स्थल  मां चंडी देवी का मंदिर है। मां चंडी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन, तहसील कसौली क्षेत्र एवं प्राचीन पट्टा महलोग रियासत में अपनी ऐतिहासिक एवं धार्मिक विशेषता को संजोए हुए गांव में स्थित है। यदि पट्टा महलोग रियासत के  नाम की भनक कान में पड़े, तो मां चंडी देवी का नक्शा हमारे मानस पटल पर उभर जाता है। चारांे ओर से पर्वतीय शैल मालाओं की हरित घाटियों से एवं उत्तुंंग शिखरों से घिरा चंडी गांव अपने आप में रमणीय रूप से धार्मिक आस्था का केंद्र बन गया है। आज चंडी गांव का नामकरण भी मां चंडी देवी के नाम पर ही हुआ है।

जनश्रुतियों, पौराणिक गाथाओं के आधार पर ही मां चंडी इस गांव में पिंडी रूप में प्रकट हुई थी। कहते हैं कि एक स्थानीय किसान जब खेत जोत रहा था, तो उसके हल के अगले नुकीले हिस्से, जिससे हम खेत की बुआई करते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में फाली कहते हैं। उस में खून लगा देखकर वह किसान अचंभित हो गया। तब उसने अपनी नजर इधर-उधर खेत में घुमाई और उसने पाया कि यह खून एक पत्थरनुमा पिंडी के ऊपरी हिस्से से बह रहा था। वह यह दैविक दृश्य देखकर आर्श्चयचकित हुआ, उसके बाद उसने घर एवं गांव के लोगों के साथ इस घटना के बारे में चर्चा की। इस घटना के उपरांत एक रात उस किसान को स्वप्न में मां काली का साक्षात्कार हुआ, मां ने उसे कहा कि मुझे पिंडी रूप मे स्थापित कर उसकी पूूजा करे। इससे उसके एवं सारे क्षेत्र का भला होगा। इस स्वप्न के बाद गांव के लोगों ने उस पत्थरनुमा पिंडी को चौकी बनाकर स्थापित कर दिया। कहते हैं कि मां चंडी देवी का मंदिर पट्टा महलोग रियासत के भवानी सिंह ने 1910 में बनवाया था। आज मां चंडी देवी उभरता हुआ धार्मिक एवं निष्ठा का केंद्र बन गया है।

यह पवित्र स्थल सोलन से 45 किलोमीटर, सुबाथु से 21 किलोमीटर, कुनिहार से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस धार्मिक स्थल से कसौली शिमला एवं हिमाचल में बर्फ से ढकी शृंखला का नजारा देखते ही बनता है। वैसे हिमाचल के सभी शक्ति स्थल पर वर्ष भर मेले लगते हैं, लेकिन चंडी मेले की अपनी विशेष महत्ता है। यह मेला आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ा मेला है। स्थानीय लोग उत्सुकता एवं बेसब्री से इस मेले का इंतजार करते हैं। इसे चंडी की जातर के नाम से भी जाना जाता है। इस मेले में लोग बहुत दूर-दूर से अपनी पारंपरिक पौशाके पहनकर मनोकामनाएं पूर्ण होने पर मनौतियां लेकर पहुंचते हैं। वैसे भी मां चंडी देवी स्थानीय क्षेत्र के लोगों की कुल देवी भी है, जिससे लोगों की मां चंडी के प्रति अगाध श्रद्धा एवं अटूट आस्था है।  नवरात्रों में इस मंदिर की भव्यता ओर भी बढ़ जाती है। चंडी देवी मंदिर से कुछ ही दूर भूमलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर एवं गोयला के छमकड़ी का शिव मंदिर भी ऐतिहासिक विरासत को चार चांद लगा देता है।


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