मानवीय मूल्यों की हत्या

By: Nov 13th, 2019 12:05 am

पुष्पदीप जस्वाल 

लेखक, शिमला से हैं

धार्मिक मान्यताओं, देवी-देवताओं और सांस्कृतिक मूल्यों से लबरेज विरासत के धनी हिमाचल के मंडी जिले के सरकाघाट की गहर पंचायत के समाहल गांव की घटना बेहद ही शर्मसार और दिल दहलाने वाली है। हिमाचल की छोटी काशी कहे जाने वाला मंडी जिला न केवल देवी-देवताओं की पावन भूमि माना जाता है बल्कि यह प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी का गृह जिला भी है। मामला सभी के सामने है और जिस तरह का अमानवीय और आपराधिक व्यवहार 81 साल की एक बुजुर्ग महिला के साथ देवी-देवताओं की आड़ में जादू-टोने जैसे अंधविश्वास के कारण किया गया है उससे न केवल प्रदेश की छवि धूमिल हुई है बल्कि देव समाज के ऊपर हिमाचल के लोगों की आस्था पर गहरी चोट लगी है और देवी-देवताओं के ऊपर भक्तों की मान्यताओं पर भी प्रश्न चिन्ह लगा है। सोशल मीडिया में वायरल हो रही है वीडियो को देखकर और पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए अपराधियों की उम्र देखकर भी आप काफी हैरान होंगे क्योंकि इस वीडियो में गांव के काफी युवा लोग भी शामिल हैं जो आजकल की वैज्ञानिक शिक्षा-पद्धति पर भी सवाल खड़े करती है कि क्या आजकल के आधुनिक युग में पल-बढ़ रही युवा पीढ़ी भी ऐसी दकियानूसी सोच को अपना और उसका समर्थन कर सकती है? हिमाचल को देवभूमि इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि यहां के लोग कुछ गलत होने पर पुलिस या न्यायालय में जाने से पहले देवताओं की शरण में जाना उचित समझते हैं और देव-समाज भी अपने भक्तों की समस्याओं का निपटारा खुले मन और बिना किसी वैर-भाव से करते हैं जो यह दर्शाता है कि यहां के लोगों में देवताओं के प्रति कितनी निष्ठा और प्रेम है। यहां देश-प्रदेश से लोग अपनी समस्याओं के समाधान हेतु और मन्नतों की पूर्ति हेतु आते हैं जिससे आम जनता भली-भांति वाकिफ है। यह घटना न केवल अमानवीय और आपराधिक है बल्कि यह हमारे ‘संविधान के अनुच्छेद-21 जो कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और उसकी स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है’ का भी उल्लंघन है जो यह कहता है कि प्रत्येक इनसान को गरिमापूर्ण बिना किसी भेदभाव के जीवन जीने का अधिकार है।

यह घटना भारतीय-दंड संहिता, 1860 के अनुभाग 499-500 का भी उल्लंघन करती है जिसमें ‘आपराधिक मानहानि’ के आधार और दंड का उल्लेख है। हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा तो न्यायपालिका और प्रदेश सरकार करेगी ही लेकिन साथ ही साथ हमें अपने मौलिक कर्त्तव्यों का भी पालन करना चाहिए जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 ए का छठा, आठवां और दसवां मौलिक कर्त्तव्य यह कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उसका निर्माण करे, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे, व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न से उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले। जादू-टोने की भ्रांति फैलने से ली गई जान के बहुत से मामले इस साल भी देश के अलग-अलग कोनों में घटित हुए हैं और ‘इंडिया टुडे’ की 2016 की एक खबर के अनुसार भारत में पिछले 14 सालों में 2000 से ऊपर लोगों ने ‘जादू-टोने’ की भ्रांति के कारण अपनी जानें गंवाई हैं और ‘नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो’ की रिपोर्ट के तहत 2001 से लेकर 2016 तक 523 मामले झारखंड में सबसे ज्यादा पाए गए।  मामला बहुत ही गंभीर है और इसकी जड़ें अब हिमाचल जैसी देवी-देवताओं और हिमालय के आंचल में बसी पावन धरती पर भी पैर पसार रही हैं जिसे किसी भी सूरत में रोकना होगा। देव समाज के प्रति लोगों का विश्वास भी न टूटे और दोषियों को भी सख्त से सख्त सजा दी जाए, इस बात का प्रदेश सरकार विशेष ख्याल रखे। इसके लिए स्कूल और कालेज में भी बच्चों को अवगत कराना चाहिए और युवाओं को भी ऐसी अंधविश्वास फैलाने वाली गतिविधियों के विरुद्ध अपनी आवाज ऊंची करनी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि सरकाघाट जैसा प्रकरण दोबारा हिमाचल में न हो और धर्म की आड़ लेकर दुकान खोले उन पाखंडी ठेकेदारों के ऊपर भी प्रदेश सरकार को सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।


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