मेक इन इंडिया के लिए आयात घटाना जरूरी

By: Nov 13th, 2019 12:06 am

वाणिज्य मंत्रालय ने शुरू की तैयारी, उत्पादों की लिस्ट बनाने के दिए निर्देश

नई दिल्ली – वाणिज्य मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों और विभागों से उन उत्पादों की सूची तैयार करने को कहा है, जिनका आयात पूरी तरह या आंशिक तौर पर रोका जा सकता है। इसका मकसद देश का बढ़ता इंपोर्ट बिल है। भारत का आयात खर्च वित्त वर्ष 2017-18 में 456.6 अरब डालर के मुकाबले वित्त वर्ष 2018-19 में नौ फीसदी बढ़कर 507.5 अरब डालर तक पहुंच गया है। आयात खर्च में वृद्धि से चालू खाता घाटा बढ़ता है, जिस कारण देश का विदेशी मुद्रा विनिमय दर (फॉरन करंसी एक्सचेंज रेट) में भी गिरावट आती है। पिछले वर्ष सितंबर में सरकार ने एसीए घरेलू इस्तेमाल के फ्रिज, वॉशिंग मशीन, हवाई जहाजों के ईंधन समेत 19 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था, ताकि बढ़ते चालू खाता घाटे पर लगाम लगाई जा सके। भारत में आयात होने वाली वस्तुओं की सूची में कच्चा तेल, सोना, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, दालें, ऊर्वरक, मशीनी औजार और दवाइयों से संबंधित उत्पाद शीर्ष पर हैं। भारत ने 16 देशों के बीच व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक सहभागिता के समझौते से खुद को अलग कर लिया, ताकि चीन के माल की बाढ़ से बचा जा सके। हालांकि इसने कुछ दिनों बाद ही यूरोपियन यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू कर दी। आयात घटाने या शुल्क बढ़ाकर इसकी राह में रोड़ा अटकाने के पीछे की सोच यह होती है कि इससे घरेलू उत्पादन में वृद्धि होगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। भारत 1980 के दशक तक इसी सोच पर आगे बढ़ता रहा। उम्मीद थी कि जरूरत के सारे उत्पाद देश में ही बनाए जाएंगे, लेकिन इस सोच को साकार करने वाले उद्योग स्थापित नहीं हो सके और न ही जरूर उद्योगों के लिए निवेश आकर्षित हुए। 1990 के दशक में आर्थिक उदारवाद को अपनाने और 2001 में आयात के लिए लाइसेंस लेने की व्यवस्था खत्म करने के बाद ही भारतीय उद्योगों को फायदा हुआ और निर्यात-आयात बढ़ने लगे। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सरकार को खपत रोकने के बजाय घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाने से भी भारत ग्लोबल प्रोडक्शन नेटवर्क से बाहर हो जाता है, जिसमें बने रहने के लिए वस्तुओं के निर्बाध आवागमन की दरकार होती है। देश में ऐसी वस्तुएं बनाने में होशियारी नहीं, जिन्हें हम कम कीमत पर आयात कर सकते हैं। 


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