वाह! आईएएस बनने के लिए छोड़ दी लाखों की नौकरी

By: Nov 13th, 2019 12:22 am
प्रोफाइल

जन्मतिथि : 22 जून, 1983

शिक्षा      : इजीनियरिंग इन इलेक्ट्रॉनिक्स,   थड़ोमल शाहनी इंजीनियरिंग कालेज मुंबई

आईएएस बैच         : 2011

पिता       : मिलिंद ठाकुर

माता       : विशाखा ठाकुर

पत्नी       :   अति

जन्म स्थान            : गिरगांव, मुंबई

सफाई गिरी अवार्ड से सम्मानित

मंडी जिला में स्वच्छता के क्षेत्र में बेहतर काम करने केलिए ऋग्देव ठाकुर इंडिया टुडे ग्रुप से सफाई गिरी अवार्ड और ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ में दो राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं।

अब तक किन-किन पदों पर काम

बीडीओ नगरोटा बगवां, एसडीएम बैजनाथ, एडीसी मंडी, डीसी बिलासपुर और अब उपायुक्त मंडी

प्रदेश में पहली बार मंडी जिला को अपना मुख्यमंत्री मिला है और इसी जिला के पहले मुख्यमंत्री का पहला उपायुक्त बनने का मौका भारतीय प्रशासनिक सेवा 2011 बैच के अधिकारी ऋगवेद मिलिंद ठाकुर को मिला है। ऋगदेव ठाकुर न सिर्फ 37 वर्ष की आयु में प्रदेश के सबसे संवेदनशील व जिम्मेदारी से भरे जिला के उपायुक्त का पद संभाल रहे हैं, बल्कि हर दिन उनका प्रयास आम लोगों के लिए अधिक से अधिक सुविधा देना व उनकी दिक्कतों को दूर करने के लिए रहता है। इंजीनियर बनने के बाद लाखों की नौकरी को छोड़ मुंबई शहर की चकाचौंध को अलविदा कहने वाले मंडी जिला के उपायुक्त ऋगदेव ठाकुर के मन में बसी जनसेवा की भावना को उनके प्रयासों और व्यक्तित्व से समझा जा सकता है। मंडी जिला में कई ऐसी योजनाएं ऋगदेव ठाकुर ने शुरू की हैं, जिन्हें बाद में राज्य स्तर पर सरकार ने भी लागू किया। बुजुर्गों के लिए संबल योजना, जूनियर व यूथ रेडक्रॉस, स्त्री अभियान और सरकारी स्कूलों की बच्चियों के लिए ऑनलाइन कोचिंग कक्षाओं की प्रज्ञा योजना सहित अन्य कई ऐसी योजनाएं इसमें शामिल हैं, जो हर किसी के लिए आसानी से उपलब्ध हैं। गरीबों की पीड़ा समझना और सहायता के लिए हर समय तैयार रहना ऋगदेव ठाकुर की कार्यशैली का सबसे खास हिस्सा है। 22 जून, 1983 को जन्मे ऋगदेव ठाकुर गिरगांव, मुंबई में एक साधारण परिवार में पले-बढे़ हैं। उनके पिता मिलिंद ठाकुर इंजीनियर के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि मां विशाखा ठाकुर ने घर संभालने के साथ ही इंश्योरेंस सेक्टर में भी काम किया। ऋगदेव ठाकुर ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि उन्हें सिविल सर्विस में जाकर एक बड़ा अधिकारी बनना है। उन्होंने कभी न तो मुंबई में किसी ऐसे अधिकारी को देखा और न ही इस बारे में उन्हें कोई जानकारी थी। ऋगदेव ठाकुर अपने पिता को आदर्श मानते हैं और उनका सपना पिता की तरह ही इंजीनियर बनने का था, लेकिन एक छोटे से घटनाक्रम ने उनकी जिंदगी बदल दी। अकसर लोगों को समस्याओं से जूझते देखकर उनके मन में सहायता करने और समस्याओं का स्थायी हल करने का ख्याल आता था। इसी बीच उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि सिस्टम में बदलाव बाहर से नहीं, बल्कि सिस्टम के अंदर जाकर कर ही लाया जा सकता है। बस इसी ख्याल के चलते ऋगदेव ठाकुर ने इन्फोसिस जैसी बड़ी कंपनी में अपनी दो वर्ष की नौकरी को अलविदा कह दिया और आईएएस अधिकारी बनने की डगर पर निकल पडे़। ऋगदेव ठाकुर बताते हैं कि वह बहुत किस्मत वाले हैं कि जब उन्हांेने 2007 में नौकरी छोड़ी तो इस फैसले में मार्गदर्शक और सहारा उनका परिवार ही बना। ऋगदेव ठाकुर ने नौकरी छोड़ने के बाद दिल्ली में सिविल सर्विस परीक्षा की कुछ महीने कोचिंग भी ली और उसके बाद मुंबई लौट कर 2008 में पहली परीक्षा दी, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने 2009 में परीक्षा दी और साक्षात्कार तक पहुंचे, लेकिन जब परिणाम आया तो उनका नाम लिस्ट में नहीं था। ऋगदेव ठाकुर बताते हैं कि दूसरी परीक्षा का जब परिणाम निकला, तो उसके दस दिन बाद ही फिर से परीक्षा थी, लेकिन उन्होंने पढ़ना नहीं छोड़ा और न ही विफलता से लड़ना छोड़ दिया। इसके बाद 2010 में तीसरी बार परीक्षा दी और सफलता प्राप्त करते हुए सीधे आईएएस बनने का मौका मिल गया। ऋगदेव ठाकुर का मानना है कि इस बडे़ पद की जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी है। यहां बैठकर लोगों के लिए कुछ किया जा सकता है। सरकार की हर योजना अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक पहुंचाना, यह हमारी ही जिम्मेदारी है। लोगों की तकलीफ को समझना और उनके स्थायी हल तलाश करने का जिम्मा भी हमारा है। कैसे भी हालात हों, एक अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता है।

मुलाकात :सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता…

मंडी  के उपायुक्त : ऋग्वेद  मिलिंद ठाकुर

प्रशासनिक अधिकारी बनने का क्या मतलब होता है?

सिस्टम में अगर सुधार करना है, तो सिस्टम का हिस्सा बनना पडे़गा और एक बार सिस्टम का हिस्सा बन गए, तो फिर एक प्रशासनिक अधिकारी मेरी नजर में अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता है। हिमाचल प्रदेश के परिदृृश्य में एक उपायुक्त का दायित्व बहुत बड़ा है। इस स्तर का अधिकारी बनने के बाद हमारी जिम्मेदारी लोकतंत्र में सबसे अधिक हो जाती है। हर जरूरतमंद और सबसे पीछे बैठे व्यक्ति के लिए सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाना हमारा ही दायित्व है।

आपने स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा कहां से प्राप्त की?

प्रारंभिक शिक्षा मुंबई से ही करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक की डिग्री थड़ोमल शाहनी इंजीनियरिंग कालेज ब्रांदा से की है।

खुद पर कितना विश्वास है और इतनी ताकत कहां से आती है?

जिंदगी में जोखिम लेना पड़ता है और जितना बड़ा विश्वास, उतना बड़ा जोखिम ले सकते हैंं। जब लक्ष्य तय हो और शॉर्टकट छोड़ कर कड़ी मेहनत की जाए, तो विश्वास पैदा हो जाता है। आगे बढ़ने की ताकत ईश्वर और परिवार देता है। मेरे परिवार ने न सिर्फ मेरे हर फैसले में साथ दिया, बल्कि पिता जी ने ही हमेशा आगे का रास्ता दिखाया है। मेरी असफलता में भी परिवार साथ खड़ा रहा है। यहीं से कुछ करने की शक्ति मिलती है।

कितने प्रयास के बाद आईएएस चुने गए और इसके पीछे की प्रेरणा?

इस मुकाम तक पहुंचने के लिए अपनी एक अच्छी और पहली नौकरी छोड़नी पड़ी। कड़ी मेहनत के बाद तीसरे प्रयास में सीधे आईएएस बनने का मौका मिला। राह पिता जी ने दिखाई थी और इंजीनियर बनने के बाद भी लगता था कि सिस्टम में बदलाव चाहिए। यहीं से मन की प्रेरणा प्रबल हुई और इसलिए सिस्टम का हिस्सा बन गया।

यह कब और कैसे सोचा कि आपको आईएएस आफिसर ही बनना है?

मेरा सपना तो इंजीनियर बनने का था और वह मैंने पूरा भी किया। मुंबई जैसे शहर में न तो कभी कलेक्टर के दर्शन हुए और न ही सिविल सर्विस के बारे में कुछ पता था। कई बार समस्याओं से जूझ रहे अपने जैसे आम लोगों को देखकर लगता था कि इसका हल तो आसान है, पर किया क्यों नहीं जा रहा? थोड़ी राह पिता जी ने दिखाई और फिर यह लगा कि अगर यह बदलाव करना है, तो सड़क पर प्रशासन या सरकार को कोस कर फायदा नहीं है, बल्कि अपने हाथों में यह दायित्व लेना होगा। बस इसी सोच ने नौकरी छोड़ने की शक्ति दी और आईएएस का सफर शुरू हो गया।

आपने सिविल सर्विस परीक्षा के दौरान कौन से विषय चुने और इसके पीछे कारण?

सिविल सर्विस परीक्षा में मेरे विषय हिस्ट्री और पब्लिक एडमिनिस्टे्रशन रहे। मैं साइंस का छात्र रहा हंू, लेकिन इतिहास से बहुत लगाव था, इसलिए मन के विषयों का चुनाव किया।

सामान्यतः यहां तक पहुंचने में आपकी दिनचर्या क्या रही?

पहले मैंने दिल्ली से कोचिंग भी ली और पहले प्रयास में फेल हो गया। उसके बाद एक दिशा मिल चुकी थी और फिर घर आकर हर रोज आठ घंटे की पढ़ाई की। किसी भी सूरत में यह क्रम टूटने नहीं दिया। यही नहीं जब मेरे दूसरे प्रयास का परिणाम आना था, तो उसके 10 दिन बाद फिर से सिविल सर्विस की प्रारंभिक परीक्षा थी। मैंने तब भी पढ़ने का क्रम जारी रखा था।

वैसे तैयारी में किताबों के अलावा किस-किस सामग्री का प्रयोग किया?

मैं किताबों के अलावा हर रोज एक समाचार पत्र पढ़ता था। इसके अलावा वीकली मैग्जीन तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की मैग्जीन भी पढ़ता था।

आजकल कोचिंग क्लासेज, ट्यूशन का चलन बढ़ गया है। क्या सफलता के लिए यह जरूरी है?

सफलता के लिए कोई शॉटकर्ट नहीं है। कोचिंग और ट्यूशन भी शॉटकर्ट या कोई मैजिक क्लास नहीं है। कड़ी मेहनत खुद ही करनी पड़ती है। यहां जाकर सिर्फ एक दिशा मिलती है। बेशक कई लोग इसके बिना भी सफलता प्राप्त करते हैं, लेकिन वहां कोई न कोई गाइड करने वाला अवश्य होता है, जो आपको अपने टै्रक से इधर-उधर होने नहीं देता है।

आपकी कार्यशैली आम ऑफिसर की ही तरह है या कुछ हटकर है?

मैं एक आम अधिकारी व इनसान की तरह ही हूं। बस मैं अपने दायित्व व लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर प्रयास व मेहनत करता हंू, जिससे लोगों को लाभ मिले, समाज को प्रेरणा मिले और जिसके साथ कोई नहीं है, वहां सरकार व प्रशासन खड़ा हो, ऐसे प्रयास करने की कोशिश करता रहता हूं।

जो युवा आईएएस बनने का सपना देख रहे हैं, उनको आपका सुझाव?

मुझे बहुत से युवा पूछते हैं कि आपने कौन सी विशेष किताब पढ़ी, आपकी सफलता का मैजिक मंत्र क्या है? यह सब कुछ कमजोर बनाता है। जिंदगी हो या कोई परीक्षा, शॉर्टकट स्थायी सफलता नहीं दिलाता है। इसलिए ऐसे युवा शॉटकर्ट की तरफ न भागंे। मेहनत करें और अपनी कमियों को पहचानंे। असफलता से सीखें और उससे उठकर फिर आगे बढे़ं। कभी अति विश्वास न करंे।

युवा पीढ़ी के लिए कोई मैसेज?

आज का समय बहुत बडे़ चैलेंज वाला और कम अवसरों वाला है। इसलिए युवा पीढ़ी हर अवसर के लिए कड़ी मेहनत करे। आजकल युवा कम मेहनत में ज्यादा पैसे वाली नौकरी तलाश रहे हैं, जो कि सही नहीं है। ज्यादा पाने के लिए शॉर्टकट नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत और बड़ी जिम्मेदारी लगती है। जिनती बड़ी मेहनत, उतना बड़ा मुकाम।

अमन अग्निहोत्री, मंडी


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