विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Nov 30th, 2019 12:25 am

छोटी उम्र के लड़की और लड़के लगभग एक जैसे लगते हैं। कपड़ों से, बालों से उनकी भिन्नता पहचानी जा सकती है, अन्यथा वे साथ-साथ हंसते, खेलते-खाते हैं, कोई विशेष अंतर दिखाई नहीं पड़ता, पर जब बारह वर्ष से आयु ऊपर उठती है तो दोनों में काफी अंतर अनायास ही उत्पन्न होने लगता है। लड़के की आवाज भारी होने लगती है। दाढ़ी, मूंछें आने लगती हैं और कोमल अंग कठोर होने लगते हैं। लड़कियां शरमाने लगती हैं…

-गतांक से आगे….

यह स्राव भी पाचन अंगों द्वारा नहीं, सीधा रक्त से जा मिलता है और अपना जादू जैसा प्रभाव छोड़ता है। हारमोन, शरीर और मन पर कितने ही प्रकार के प्रभाव डालते और परिवर्तन करते हैं। उनमें से एक परिवर्तन कामवासना का, मानसिक जागरण, और यौन अंगों की प्रजनन क्षमता भी सम्मिलित है। छोटी उम्र के लड़की और लड़के लगभग एक जैसे लगते हैं। कपड़ों से, बालों से उनकी भिन्नता पहचानी जा सकती है, अन्यथा वे साथ-साथ हंसते, खेलते-खाते हैं, कोई विशेष अंतर दिखाई नहीं पड़ता, पर जब बारह वर्ष से आयु ऊपर उठती है तो दोनों में काफी अंतर अनायास ही उत्पन्न होने लगता है। लड़के की आवाज भारी होने लगती है। दाढ़ी, मूंछें आने लगती हैं और कोमल अंग कठोर होने लगते हैं। लड़कियां शरमाने लगती हैं, उनके कुछ अंगों में उभार आने लगता है और नए किस्म की इच्छाएं तथा कल्पनाएं मन में घुमड़ने लगती हैं। यह हारमोन स्रावों की करतूत है। वे समय-समय पर ऐसे उठते-जगते हैं, मानो किसी घड़ी में अलार्म लगाकर रख दिया हो अथवा टाइम बम को समय के कांटे के साथ फिट करके रखा हो। यौवन उभार के संबंध में इन्हीं के द्वारा सारा खेल रचा जाता है। अन्य सारा शरीर अपने ढंग से ठीक काम करता रहे, पर यदि इन हारमोन ग्रंथियों का स्राव न्यून हो तो यौवन अंग ही विकसित न होंगे और यदि किसी प्रकार विकसित हो भी जाएं तो उनमें वासना का उभार नहीं होगा, न कामेच्छा जाग्रत होगी, न उस क्रिया में रुचि होगी। संतानोत्पादन तो होगा ही कैसे? साधारणतया कामोत्तेजना का प्रसंग 15-16 वर्ष की आयु से आरंभ होकर 60 वर्ष पर जाकर लगभग समाप्त हो जाता है। स्त्रियों का मासिक धर्म बंद हो जाने पर लगभग पचास वर्ष की आयु में उनकी वासनात्मक शारीरिक क्षमता और मानसिक आकांक्षा दोनों ही समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार साठ वर्ष पर पहुंचते-पहुंचते पुरुष की इंद्रियां एवं आकांक्षाएं भी शिथिल और समाप्त हो जाती हैं। यह सामान्य क्रम है। पर कई बार हारमोनों की प्रबलता इस संदर्भ में आश्चर्यजनक अपवाद प्रस्तुत करती है। बहुत छोटी आयु के बच्चे भी न केवल पूर्ण मैथुन में वरन सफल प्रजनन में भी समर्थ देखे गए हैं। उसी प्रकार शताधिक आयु हो जाने पर भी वृद्ध व्यक्तियों में इस प्रकार की युवावस्था जैसी परिपूर्ण क्षमता पाई गई है।         

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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