श्री गोरख महापुराण

By: Nov 2nd, 2019 12:15 am

इसी गांव में योगी मछंेद्रनाथ भी भिक्षा मांग रहे थे। उन्होंने जब इस अपूर्व घटना को सुना तो यह तुरंत समझ गए कि यह सब संजीवनी विद्या के मंत्रों के प्र्रभाव से हुआ है। ग्रामवासियों की भीड़ मिट्टी का बोलता बालक देखने को अपने घरों से चल पड़ी और कुछ ही देर में गोरख नाथ के पास मेला सा लग गया…

गतांक से आगे…

जिसके कारण गाड़ीवान में जीव आत्मा का प्रवेश हो गया और गाड़ीवान का खिलौना जीता-जागता छोटा बालक बन गया। उसके शरीर में हड्डी, मांस, रुधिर, प्राण सभी आ गए थे। ज्ञान इंद्रियों का समावेश होने के कारण वह रोता-रोता बोला, जय गोरखनाथ जी की, मिट्टी के पुतले को बोलता देखकर गोरखनाथ को काफी आश्चर्य हुआ कि इसमें प्राण किस प्रकार पड़ गए।

बच्चे भी मिट्टी के बने गाड़ीवान को रोता देखकर भूत-भूत चिल्लाते हुए भयभीत होकर गांव की ओर भागे और अपने-अपने घरों में पहुंचकर अपने माता-पिता को मिट्टी के बालक की सारी घटना बता दी।  ऐसी अपूर्व घटना सुनकर ग्रामवासियों को काफी आश्चर्य हुआ और सारे गांव में उस बालक के दर्शन करने का हंगामा सा मच गया। इसी गांव में योगी मछंेद्रनाथ भी भिक्षा मांग रहे थे। उन्होंने जब इस अपूर्व घटना को सुना, तो यह तुरंत समझ गए कि यह सब संजीवनी विद्या के मंत्रों के प्र्रभाव से हुआ है। ग्रामवासियों की भीड़ मिट्टी का बोलता बालक देखने को अपने घरों से चल पड़ी और कुछ ही देर में गोरख नाथ के पास मेला सा लग गया। स्त्री-पुरुष ने गोरखनाथ से तरह-तरह के प्रश्न पूछने शुरू कर दिए। वह उत्तर देते-देते दुःखी हो गए। कुछ लोग मिट्टी के सजीव बालक से अपना मनोरंजन करने लगे। कोई प्यार से उसका सिर सहला रहा था, तो कोई नाक पकड़ कर कह रही थी, बेचारे की छोटी सी नाक कैसी सुहावनी लग रही है। किसी ने कहा कि इसका मुंह खोल कर देखना चाहिए। दांत हैं या दूसरे बच्चों की तरह बाद में निकलेंगे। मिट्टी का बालक इतनी सारी भीड़ को देखकर घबरा गया। तब एक महिला ने उसे गोद में उठाकर पहले तो प्यार से पुचकारा और फिर मुख चूमा। उसी समय भिक्षापात्र लिए चिमटा बजाते हुए मछेंद्रनाथ भी वहां आ पहुंचे और काफी भीड़-भाड़ देखकर गोरखनाथ से बोले कि अब तुम पूरे सिद्ध बन गए। गोरखनाथ बोले कि गुरु देव! यह सब किस प्रकार हो गया। मछेंद्रनाथ बोले, बेटा! यह सब संजीवनी विद्या के मंत्रों का प्रभाव है। जिस प्रकार तुम मन लगाकर मंत्र पाठ कर रहे थे। उसी प्रकार संजीवनी के मंत्रों ने अपना प्रभाव दिखाया और मिट्टी के पुतले में प्राणों का संचार हो गया। तुमने संजीवनी विद्या का पाठ करते समय इसे अपने कर से बनाया इसलिए इसमें करभंजन नाथ योगी की आत्मा का प्रवेश हो गया। अब यहां से चलना चाहिए नहीं तो इन नर-नारियों के झमेले से नाक में दम हो जाएगा और हम यहां एक पल भी तपस्या नहीं कर पाएंगे। गोरखनाथ बोले ठीक है गुरुदेव अब यहां से चलना श्रेष्ठ है। इस तरह गुरु चेले ने अपना झोली, खप्पर, चिमटा और कंबल संभाल लिया। फिर मिट्टी के बालक के सिर पर अपना हाथ फेर उसे आशीर्वाद दिया और उसका नाम गहनीनाथ रखा। तब गोरखनाथ ने गहनीनाथ को उठा कर अपनी गोदी में ले लिया और चलने को तैयार हो गए। तब ग्राम वासियों को दोनों की मंशा समझने में देर नहीं लगी कि ये दोनों संन्यासी यहां से जा रहे हैं। परंतु गांव के लोग इन सिद्ध संन्यासियों को अपने यहां से जाने नहीं देना चाहते थे। जब से ये दोनों संन्यासी गांव के निकट आए थे सभी परिवारों में आनंद की वर्षा हो रही थी।

गांव से दरिद्र लापता हो गया था। कम से कम सवाई ड्योढ्ी संपत्ति सभी के पास हो गई थी। ग्राम वासियों के काफी हाथ जोड़ने पर भी जब दोनों संतों में से एक भी वहां रहने को तैयार नहीं हुआ, तो कुछ ग्रामवासी बोले, जब आप दोनों में से एक भी यहां रहने को तैयार नहीं है तो हमारा उद्धार कैसे होगा।                              -क्रमशः                  


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