सबरीमाला मंदिर में मंडल पूजा अनुष्‍ठान

By: Nov 23rd, 2019 12:22 am

सबरीमाला मंदिर करीब 800 साल पुराना माना जाता है और इसमें महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवाद चला आ रहा है। इसे लेकर ये मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं। जिसकी वजह से इस मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं का आना वर्जित है। भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए 41 दिन पहले से तैयारी करनी होती है। इस प्रक्रिया को मंडला व्रतम कहा जाता है। यह पूजा नवंबर से शुरू होकर दिसंबर तक चलती है…

धनु मास के दौरान होती है मंडला पूजा

सबरीमाला अयप्पा मंदिर में धनु मास के दौरान यानी जब सूर्य धनु राशि में होता है। तब मंडला पूजा 11वें या 12वें दिन मनाई जाती है। मंडला पूजा भगवान अयप्पा के भक्तों द्वारा की गई 41 दिनों की लंबी तपस्या का अंतिम दिन होता है। इस व्रत की शुरुआत मंडला पूजा से 41 दिन पहले यानी मलयालम कैलेंडर के अनुसार जब सूर्य वृश्चिक राशि में होता है तब वृश्चिक मास के पहले दिन से होती है। सबरीमाला अयप्पा मंदिर में मंडला पूजा और मकर विलक्कू दो सबसे प्रसिद्ध कार्यक्रम हैं, जब मंदिर को ज्यादा दिनों तक भक्तों के लिए खुला रखा जाता है।

इस पूजा में किया जाता है गणेशजी का आह्वान

मंडला पूजा के दौरान भक्त तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनते हैं, जो भगवान अयप्पा को प्रिय है। चंदन का लेप लगाते हैं। 41 से 56 दिनों तक चलने वाली इस महापूजा के दौरान भक्त मन और तन की पवित्रता का पूरा ध्यान रखते हैं। इस पूजा में भगवान गणेशजी का आह्वान किया जाता है और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। पूजा के दौरान भगवान अयप्पा के दर्शन का भी बहुत महत्त्व है इसलिए कई भक्त मंदिर में दर्शन के लिए भी जाते हैं। कुछ भक्त ये महापूजा मकर संक्रांति तक भी करते हैं।

महापूजा और मंदिर में दर्शन करने का महत्त्व

मान्यता है कि अगर यहां आने वाले श्रद्धालु तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर उपवास रखकर और सिर पर नैवेद्य यानी भगवान को चढ़ाए जाने वाला प्रसाद लेकर दर्शन के लिए आते हैं, तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। श्रद्धालुओं के अनुसार भगवान अयप्पा के दर्शन करने से सोचे हुए काम पूरे हो जाते हैं और हर तरह के रोग और परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इस पूजा का बहुत ही महत्त्व माना गया है।

सबरीमाला मंदिर का इतिहास

सबरीमाला मंदिर यानी श्री अय्यप्पा मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी. की दूरी पर  स्थित है। ये प्राचीन मंदिर दुनिया के बड़े तीर्थों में एक माना जाता है। इनके दर्शन के लिए हर साल यहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की व्यवस्था का जिम्मा राज्य में मंदिरों का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड के हाथ में है। 12वीं सदी के इस मंदिर में भगवान अय्यपा की पूजा होती है। दक्षिण पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी का पुत्र माना जाता है। जिनका नाम हरिहरपुत्र भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान की स्थापना स्वयं परशुराम ने की थी और यह विवरण रामायण में भी मिलता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य भगवान विश्वकर्मा के सान्निध्य में पूरा हुआ। बाद में परशुराम जी ने मकर संक्रांति के दिन यहां भगवान की स्थापना की।


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