सियासत की फांसी

By: Nov 25th, 2019 12:05 am

नवेंदु उन्मेष

स्वतंत्र लेखक

मुझे देर रात राज्यपाल महोदय का फोन आया। उन्होंने कहा कि तुम फौरन राजभवन में चले आओ। मैं सोचने लगा कि आखिर राज्यपाल महोदय ने आधी रात के वक्त मुझे क्यों तलब किया है। गोया कि मैं एक साधारण आदमी ठहरा। दौड़ा-दौड़ा मैं अपने आवास के नीचे सीढि़यों से उतरा और स्कूटी निकाली और बीरान रास्ते पर फर्राटे के साथ स्कूटी दौड़ाता हुआ राजभवन की ओर चल पड़ा। राजभवन के गेट पर पहुंचते ही सिपाही ने मुझे सलामी ठोंकी। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह मुझे पहले पहचानता हो। न उसने मुझसे वहां रखी प्रवेश पुस्तिका पर हस्ताक्षर कराए और न कुछ बोला। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसे टोका-क्या तुम मुझे पहचानते हो। उसने कहा मैं आपको पहचान गया। बोला-राजभवन के अंदर से खबर आई है कि एक व्यक्ति स्कूटी लेकर आएगा जिसे रोकना नहीं हैं। आगे कहा कि आधी रात को यहां स्कूटी लेकर कोई नहीं आता। यहां तो दिन में भी लोग कार लेकर आते हैं। इसलिए मैं आपको देखते ही समझ गया कि आप वही शख्स हैं जिसे मुझे अंदर से भेजने को आदेश हुआ है। मैं राजभवन के अंदर पहुंचा तो देखा राज्यपाल महोदय बरामदे में टहल रहे थे। मेरे वहां पहुंचते ही उन्होंने कहा-मैं चाहता हूं कि दिन का सूरज निकलने से पहले तुम्हें सियासत की फांसी पर लटका दूं। मैंने उन्हें कहा आखिर मेरी गलती क्या है जो आप मुझे सियासत की फांसी पर लटकाना चाहते हैं। वे बोले यह कोई मौत की सजा नहीं है। यह तो राजनीति की सजा है। जिसे सिर्फ  मैं ही दे सकता हूं। इसलिए तो मैंने तुम्हें यहा बुलाया है। मैंने कहा मैं आपकी बातों को समझ नहीं पाया। वे बोले ‘मैं चाहता हूं कि दिन का सूरज निकलने से पहले तुम मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लो।’ मैंने उन्हें इनकार करते हुए कहा- ‘मैं यह काम हरगिज नहीं कर सकता, क्योंकि मेरे पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं है। सरकार अकसर बहुमत वालों की बनती है। बिना बहुमत के मैं सरकार कैसे बना सकता हूं। अगर मेरी सरकार बन भी गई तो मैं विधायकों का समर्थन कहां से लाउंगा।’ उन्होंने कहा ‘मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम जोड़-तोड़ में माहिर हो। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम दूसरे दलों के विधायकों को तोड़ लोगे। इसके बाद विधानसभा में बहुमत भी हासिल कर लोगे।’ वैसे भी राजनीति में जिस शख्स को सियासत की फांसी पर लटका कर मुख्यमंत्री बनाया जाता है वह ऐन केन प्रकारेण बहुमत सिद्ध कर लेता है। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम सूर्योदय से पहले शपथ ले लो।  मेरे आग्रह पर कई विधायक लुंगी और बनियान में राजभवन पहुंच गए। कुछ विधायक तो मुंह में ब्रश दबाए मेरी सियासी चाय का भी इंतजार कर रहे थे। मैं सोच रहा था कि राज्यपाल के कहने पर मैं कहीं गलती तो नहीं कर रहा हूं। एक बार तो मैंने सोचा कि यहां से निकल भागूं, लेकिन अब मैं राजभवन के कब्जे में था। ऐसे में मैं भाग भी नहीं सकता था। इतने में बगल में सो रही पत्नी ने मुझे जगा दिया। बोली क्या बड़बड़ा रहे हो। तुम्हें नींद में भी संविधान की कसम खाने की सुझी है। इसके बाद सूर्योदय होने से पूर्व हम दोनों पति-पत्नी के बीच गृहयुद्ध शुरू हो गया। रातभर तो मुझे सब्जबाग दिखाते रहे और दिन में पति-पत्नी के बीच झगड़ा लगाकर राजभवन में खुद आराम से सो गए।


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