हरिहर नाथमंदिर
भारत देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जो आस्था का केंद बने हुए हैं, परंतु साथ ही यह आश्चर्य का विषय भी बने हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर है हरिहर नाथ, जो बिहार की राजधानी पटना से 5 किमी. उत्तर सारण में गंगा और गंडक के संगम पर सोनपुर नामक कस्बे में स्थित है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर यहां विशाल मेला लगता है, जो इस क्षेत्र की शोभा बढ़ाता है। नवंबर-दिसंबर में लगने वाला यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है, लेकिन इस मेले की खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी आप कर सकते हैं। इससे भी बड़ी बात यह कि मॉल कल्चर के इस दौर में बदलते वक्त के साथ इस मेले के स्वरूप और रंग-ढंग में बदलाव जरूर आया है, लेकिन इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है। 5-6 किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैला यह मेला ‘हरिहरक्षेत्र मेला’ और ‘छत्तर मेला’ के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ यह मेला शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है। यहां मेले से जुड़े तमाम आयोजन होते हैं। इस मेले में कभी अफगान, इरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी। सोनपुर स्थित बाबा हरिहर नाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां हरि विष्णु के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए। एक बार जब कोनहारा घाट पर गज पानी पीने गया, तो उसे ग्राह ने अपने मुंह में जकड़ लिया। जिसके बाद दोनों में युद्ध शुरू हो गया और कई दिनों तक चलता रहा। इस दौरान जब गज कमजोर पड़ने लगा, तो उसने भगवान विष्णु के आगे प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुर्दशन चक्र चलाकर दोनों का युद्ध समाप्त किया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी स्थान पर गज और ग्राह का युद्ध हुआ था इसलिए यहां पशुओं की खरीददारी को शुभ माना जाता है। इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का मंदिर है। जिसे बाबा हरिहर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। कुछ लोगों की मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण श्रीराम ने सीता स्वयंवर में जाते समय किया था।
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