हिमाचली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हो

By: Nov 1st, 2019 12:05 am

रवि कुमार सांख्यान

लेखक, बिलासपुर से हैं

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक भाषाओं का वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को शामिल किया है। हिमाचली भाषा को पुख्ता करने के लिए दशकों से चला आ रहा शोर कोई सार्थक मुहिम नहीं बना पाया है। पहाड़ी की ओट में ही पली-बढ़ी डोगरी भाषा ने स्थान पाने का सौभाग्य पा लिया, लेकिन उसी पहाड़ी के दूसरे छोर में पली-बढ़ी हिमाचली भाषा पहाड़ी संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान समय में भी स्थान नहीं पा सकी। ऐसा बिलकुल नहीं है कि हिमाचली भाषा में साहित्य, लेखन व पठन-पाठन नहीं होता है। हिमाचली लेखक समय-समय पर अपने स्तर पर भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश, हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के तत्वावधान में मंथन करते आ रहे हैं। प्रत्येक वर्ष पहाड़ी दिवस, पहाड़ी बाबा कांशीराम जयंती, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, डा. वाईएस परमार जयंती, लालचंद प्रार्थी, चांद कुल्लवी जयंती, विभिन्न मेलों त्योहारों के आयोजन पर प्रकाशित स्मारिकाएं, बिलासपुर लेखक संघ, आर्थर गिल्ड हिमाचल आदि आयोजनों में पहाड़ी कार्यक्रमों का सैलाब सा नजर आने लगता है। बागर, हिम भारती, गिरिराज, फोकस हिमाचल, हिमाचल मित्र, शब्द मंच, हैड न्यूज हिमाचल, सृजन सरिता, हिमाचल मित्र आदि पत्रिकाएं पहाड़ी भाषा के समुचित विकास हेतु प्रयासरत हैं। आकाशवाणी शिमला, धर्मशाला, दूरदर्शन केंद्र शिमला, अन्य समाचार पत्रों के पहाड़ी तुडका कॉलम, लोकमंच आदि कॉलम प्रमुख हैं। कईं जनपदों में लेखक गृह भी निर्मित किए गए हैं। इतने सारे अथक प्रयासों के बावजूद भी पहाड़ी भाषा हिमाचली संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान न पा सकी। डोगरी, बंगला, नेपाली, पंजाबी आदि भाषाओं में शायद ऐसा कुछ खास होगा जो हिमाचली भाषा प्रेमियों के लिए आत्ममंथन का विषय है। कुछ वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर ने करीब बीस हजार पांडुलिपियों का पता लगाया। इन पांडुलिपियों में नाहन में मिली तीन सौ वर्ष पुरानी भृगु संहिता व करसोग में मिला पांच मीटर हस्तलिखित पन्ना भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश में पांच सौ वर्ष पूर्व भी पहाड़ी भाषा लिखी-पढ़ी और बोली जाती थी। इसमें टांकरी व देवनागरी प्रमुख है। अभी हाल ही में साहित्य अकादमी द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार डा. प्रत्यूष गुलेरी जी के संपादन में हिमाचली कहानी संचयन में विभिन्न जिलों के कथाकारों की चौवालीस कहानियों का संकलन भी इस दिशा में आशा की किरण प्रतीत होता है। ये कहानियां भी कथ्य व शिल्प की दृष्टि से हिमाचली परिवेश व जनमानस से सीधी जुड़ी प्रतीत होती हैं। हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी द्वारा भी क्षेत्रीय पहाड़ी बोलियों में हजारों महत्त्वपूर्ण वाक्यों का अनुवाद भी करवाया जा रहा है। एनआईटी हमीरपुर के सहयोग से हिंदी-पहाड़ी डिजिटल अनुवाद का सॉफ्टवेयर तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। हिंदी-हिमाचली पहाड़ी अनुवाद के लिए साहित्यकारों की प्रशिक्षण कार्यशाला भी आयोजित की जा चुकी है। सभी लोक कवियों, लोक गायकों, लेखकों को भी इस दिशा में निरंतर सृजनशील रहना चाहिए।                                                                               


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