हिमाचल का ग्लोबल होना

By: Nov 9th, 2019 12:05 am

इन्वेस्टर मीट के भीतर कई तहखाने हैं और इसीलिए हर तरह की बहस और विमर्श का क्षितिज बड़ा होगा। सरकार अपनी पारी में इसका शृंगार करते हुए प्रदश्े को कहां तक ले जाएगी, इसके आंकड़ों का करिश्माई अंदाज कहीं तो यथार्थ से मुलाकात करेगा। बहरहाल वैश्विक ठिकानों पर हिमाचल के कदम इसलिए चलना सीखेंगे, क्योंकि विवेचन के स्तर पर अनेक अंतरराष्ट्रीय बातें इस सम्मेलन में हुईं। विशिष्ट अतिथियों की सूची में ऐसी हस्तियों का जमावड़ा और निवेशक की अपेक्षाओं का दरिया उन्हीं नदियों के साथ बहा, जो वर्षों से पहाड़ के श्रम को ढोकर मैदान तक और फिर समुद्र में डालती रही हैं, लेकिन इस कौशल की बूंदें कभी वापस नहीं लौटीं। तमाम उन हृदयस्पर्शी बातों का जिक्र नरेंद्र मोदी ने किया, तो आत्मीयता से हिमाचल का रिश्ता प्रधानमंत्री कार्यालय जोड़ती हैं। उन्हें पहाड़ों से मोह है, लिहाजा इन्वेस्टर मीट की प्रासंगिकता में प्रधानमंत्री का अढ़ाई घंटे तक शरीक होना, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की खनक पैदा करता है। जाहिर है निवेश आमंत्रण के सफर पर निकले मोदी का पड़ाव, हिमाचली हाथों को सूना नहीं रहने देगा, लेकिन ग्लोबल मानदंडों पर खरा उतरने के लिए केंद्र सरकार का सहारा चाहिए। बेशक उन्होंने अधोसंरचना निर्माण का उल्लेख किया या सम्मेलन से पहले कुछ सड़कें भी चकाचक दिखीं, लेकिन कनेक्टिविटी के प्रश्न पर हिमाचल अपने ही देश में गोवा, उत्तराखंड या जम्मू-कश्मीर से पिछड़ जाता है। जीएमआर ग्रुप के अध्यक्ष श्रीनिवासन हों या मारुति सुजूकी के आर.सी. भार्गव, सभी निवेशकों को उस दिन का इंतजार है, जब प्रदेश के हवाई अड्डे विस्तृत आकार, रेल पटरी प्रसार में तथा फोरलेन जैसे एक्सपे्रस सड़कें यथार्थ में हों। जिन क्षमताओं और संभावनाओं के आलिंगन में निवेश का अनुराग दिखाई देता है, उनके विपरीत कनेक्टिविटी एक बड़ा विराम है। इसके अलावा मानसिक विराम अवरुद्ध मार्गों से बाहर नए विकल्पों के समर्थन में खड़े होने की ग्लोबल कहानी लिखने का वक्त आ गया है। वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने ब्रांड हिमाचल का जिक्र करते हुए वैश्विक पहचान में राज्य के योगदान को रखांकित किया। महामहिम दलाईलामा और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के कारण धर्मशाला के महत्त्व पर अनुराग ठाकुर ने अपने विचार निवेशकों से साझा किए, तो यकीन के साथ पाने की इच्छा शक्ति अपना करिश्मा जरूर दिखाती है। ग्लोबल होने का अर्थ महज शाब्दिक नहीं, बल्कि लीक से हटकर करने का है। हिमाचल की सरकारी मशीनरी और सियासी परवरिश को नई प्रणाली में प्रदेश को सर्वोपरि मानना पड़ेगा। धर्मशाला मीट के बहाने ट्रैफिक व्यवस्था में आया सुधार अगर स्थायी तौर पर अमल में आ जाए, तो वैश्विक होने का अनुशासन हमारे चरित्र की पहचान बन जाएगा। महज दो हजार लोगों को सुव्यवस्थित ढंग से, हिमाचली आवभगत दर्शाने के लिए जो मेहनत इन्वेस्टर मीट के दौरान हुई, क्या पर्यटकों के प्रति भी यही भावना रहेगी। जिस निवेश को आमंत्रित करने के लिए पलक पांवड़े बिछाए गए, क्या उसी तरह का व्यवहार हिमाचल के व्यापार के प्रति होगा। क्या हम टैक्सी ड्राइवर, रेस्तरां व ढाबा आपरेटर या गिफ्ट सेंटर के मालिक को वैश्विक स्तर के व्यवहार के नजदीक खड़ा कर पाएंगे। सामाजिक व आर्थिक सुधारों की दृष्टि से हिमाचल को अपने रवैये की कतरब्यौंत सीखनी होगी ताकि सरकार अलाभकारी खर्च खत्म कर, निजी क्षेत्र में पूर्ण भरोसा कर सके। हमें केरल जैसे राज्य के नागरिकों की तरह मानव संसाधनों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लायक बनाना है। बेशक हिमाचल में विदेशी पर्यटक आते हैं, लेकिन हमें धर्मकोट व कसोल को अभिशप्त होने से बचाना है। बीबीएन जैसे क्षेत्र को वैश्विक औद्योगिक परिसर का रूप देने के लिए नीतियां, कार्यक्रम व बजट चाहिए, ताकि सही मायने में यह हिमाचल की आर्थिक राजधानी बने। शिमला का वैश्विक आचरण धीरे-धीरे अपने आवरण में गंदगी भर रहा है। मात्र चंद हजार नागरिकों की बस्ती को हम मेट्रो शहर की खुद्दारी में विकसित कर रहे हैं, तो इस रिसाव का हिसाब भी तो हो। विश्व के सामने निवेश के प्रस्ताव और दूधिया रोशनी के बीच पुल्कित समारोह आंदोलित करता है, लेकिन ग्लोबल विलेज बनने की तहजीब में हिमाचल को अपनी मर्यादा और सीमाओं के भीतर मानसिक संकीर्णता के कई द्वार खोलने पड़ेंगे।


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