हिमाचल के लिए आलू की नई किस्म

By: Nov 24th, 2019 12:10 am

सीपीआरआई की कुफरी करण वैरायटी से मालामाल होंगे किसान, बेहतर साइज, रोगमुक्त और गजब का है स्वाद मैदानी राज्यों के लिए दो अलग वैरायटी भी उतारी , प्रदेश के लाखों फार्मर्ज को होगा फायदा

हिमाचल में आलू बीजने वाले किसानों के लिए राहत भरी खबर है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान सीपीआरआई ने आलू की तीन नई किस्में इजाद की हैं। इसमें एक किस्म हिमाचल के किसानों के लिए है, जिसका नाम कुफरी करण है। दावा है कि इस किस्म के आलू का जहां साइज अच्छा है, वहीं यह रोगमुक्त भी है। यही नहीं, इसका स्वाद भी गजब का है। ऐसे में यह किस्म प्रदेश के लाखों किसानों के लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। सीपीआरआई ने जो दो अन्य किस्में तैयार की हैं, उनमें एक खासकर ऊटी के लिए है, जबकि एक अन्य मैदानी राज्यों के लिए है। उक्त किस्मों में कॉमन बात यह है कि इन पर रोगों की ज्यादा मार नहीं पडे़गी।  सीपीआरआई शिमला के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एनके पांडेय ने उम्मीद जताई है कि इन किस्मों से किसानों को खूब लाभ मिलेगा।

अभी लगा है प्रतिबंध

हालांकि मौजूदा समय में सीपीआरआई के आलू बीज पर प्रतिबंध लगा हुआ है। आलू बीज में सूत्र क्रिमी वायरस पाए जाने के  बाद केंद्र सरकार ने सीपीआरआई के आलू बीज पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंध लगने के बाद सीपीआरआई के वैज्ञानिक मिट्टी को वायरस मुक्त करने में लगे हुए हैं। पिछले दो वर्षों से मिट्टी को वायरस मुक्त करने के लिए विशेषज्ञ कार्यरत हैं। इसमें अभी भी तीन साल का और समय लगने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में सीपीआरआई द्वारा प्रतिबंध हटने के बाद ही किसानों को आलू का बीज व नई किस्मों का बीज उपलब्ध करवाया जाएगा।

मार्केट में बेचा जा रहा आलू

सीपीआरआई द्वारा मौजूदा समय में आलू तैयार किया जा रहा है। मगर प्रतिबंध के चलते सीपीआरआई द्वारा किसानों को बीज नहीं दिया जा रहा है। सीपीआरआई द्वारा सारा आलू मार्केट में बेचा जा रहा है।

रिपोर्ट टेकचंद वर्मा, शिमला

पालमपुर यूनिवर्सिटी में किसानों की खातिर चल रहे 136 प्रोजेक्ट

और आइए, अब आपको ले चलते हैं, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी इन दिनों किसानों की आय दोगुना करने के लिए कई प्रोजेक्टों पर काम कर रहा है। बीते रबी के सीजन में विश्वविद्यालय ने दलहन, तिलहन, सब्जियों और चारा फसलों के लिए 67 हजार किलोग्राम ब्रीडर सीड और नौ हजार किलोग्राम फाउंडेशन सीड का उत्पादन किया था। वहीं, किसानों की आय दोगुना करने के लिए, विश्वविद्यालय ने बीस कृषि आधारित उद्यम विकसित किए हैं। ये तमाम खुलासे  हाल ही में एग्रीकल्चर अफसरों की वर्कशॉप के दौरान हुए हैं। इस दौरान अपनी माटी टीम से बातचीत में कुलपति प्रो. अशोक  सरयाल ने  उम्मीद जताई कि सिंचाई की बढ़ती सुविधाओं से किसानों की आय बढ़ेगी। इसी तरह फसलों की अदला-बदली कर बीजने के लिए भी किसानों को प्रेरित किया जा रहा है, जिसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। मौजूदा समय में विश्वविद्यालय में 66 करोड़ रुपए की 136 शोध परियोजनाएं चल रही हैं। कुल 16 हजार किसानों को लाभान्वित करने वाले 543 प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। बहरहाल अगर ये तमाम प्रोजेक्ट कामयाब होते हैं, तो किसानों की तकदीर बदल जाएगी।                                     रिपोर्ट : जयदीप रिहान,पालमपुर

डीएपी, यूरिया एवं एनपीके खाद के दामों में कटौती

डीएपी, यूरिया एवं एनपीके खाद के नए दाम खेती में लागत कम करने के उद्देश्य से इफको ने उर्वरक के मूल्य में  कटौती कर दी है।  इन उर्वरक में डीएपी,एनपीके,एनपी के उर्वरकों को शामिल किया गया है। इसकी घोषणा तमिलनाडु में इफको के एमडी और सीईओ यूएस अवस्थी ने की। इफको देश में पांच करोड़ किसानों को उर्वरक उपलब्ध कराता है। यहां पर इस बात का ध्यान रखना होगा कि पहले से उर्वरक बिक्री केंद्रों पर जो उर्वरक बेचा जा रहा है उसे पहले से प्रिंट रेट पर ही दिया जाएगा।

परवाणू के फल विधायन संयंत्र ने तोड़ा 23 साल पुराना रिकार्ड

एशिया के सबसे बड़े फल विधायन संयंत्र परवाणू ने एप्पल जूस की प्रोडक्शन में अपना 23 साल पुराना रिकार्ड ध्वस्त कर दिया है। एचएमपीएमसी के इस संयंत्र ने इस बार 1000 टन एप्पल कंस्ट्रेंट का उत्पादन किया है। अपनी माटी को मिली जानकारी के अनुसार साल  1995-96  में इस  संयंत्र में 954 टन उत्पादन हुआ था। पिछले साल की बात करें तो यह आंकड़ा 380 टन रहा था जिसमे इस वित्त वर्ष में तीन गुना से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज हुई है । इस बार भारी पैदावार से एचपीएमसी कई साल से  हो रहे घाटे को पूरा करने में मदद मिलेगी। फल विधायन संयंत्र  के सहायक जनरल मैनेजर विनीत कौशिक ने इस कामयाबी का श्रेय  कर्मचारियों की मेहनत को दिया है।

रिपोर्ट : कुलदीप कृष्ण  परवाणू

हिमाचल में रोजगार गारंटी पर सवाल

हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के लाखों मजदूरों को दो माह से मजदूरी नहीं मिल पाई है। दरअसल ये लाखों मजदूर वे हैं, जो विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्य कर रहे हैं। कुछ अनियमितताओं के कारण केंद्र सरकार ने मनरेगा का 50 करोड़ तक का बजट दो माह से रोक रखा है। मनरेगा के तहत लगे लाखों मजदूरों के अकाउंट में दो माह से दिहाड़ी नहीं आ रही है। इस वजह से पंचायतों के माध्यम से मनरेगा में रजिस्टर हुए मजदूर परेशान हो गए हैं। ये मजदूर पंचायतों से भी इस बारे में जानकारी मांग रहे हैं, लेकिन हैरानी है कि पंचायत प्रधान से लेकर कोई भी ब्लॉक अधिकारी दो माह से इस समस्या का समाधान नहीं निकाल पा रहे हैं। अब जब मनरेगा के तहत लगे मजदूरों की यह समस्या पंचायती राज विभाग में पहुंची है, तो सामने आया है कि मजदूरों ने अपने अकाउंट नंबर ही गलत लिखे हैं। लाखों मजदूरों के केंद्र सरकार की मनरेगा वेबसाइट पर अकाउंट नंबर गलत पाए गए हैं। बताया जा रहा है कि अकाउंट नंबर लिखते समय एक व दो अंकों में गलती पाए जाने पर केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत लगे मजदूरों के आवेदनों को रिजेक्ट कर दिया है। फिलहाल मामला बहुत बड़ा है, इसको लेकर ग्रामीण विकास विभाग ने पंचायतों से भी जानकारी मांगी है।

– रिपोर्ट : प्रतिमा चौहान,  शिमला

विदेशों तक पांवटा के गुड़ की महक

पांवटा साहिब में करीब 15 गुड़ क्रशरों में हर साल बनता है  हजारों क्विंटल गुड़, बाहरी राज्यों से आते हैं कारीगर, हर दिन 600 क्विंटल का उत्पादन…

सिरमौर जिला में पांवटा साहिब के दून क्षेत्र के गन्ने की मिठास से तो पूरा देश वाकिफ है ही, लेकिन यहां के गन्ने से बनने वाले गुड़ की महक भी सात समंदर पार तक जाती है। पांवटा साहिब के शिवपुर व हरिपुर टोहाना आदि क्षेत्रों के गुड़ क्रशरों में बनने वाला गुड़ अपनी महक कनाडा समेत विदेशों में बिखेर रहा है। यहां से हर साल देश के कई हिस्सों में तो गुड़ जाता ही है। साथ ही कनाडा में ज्यादातर बसे भारतीय इस गुड़ का स्वाद चखते हैं। पांवटा साहिब में हर साल अक्तूबर माह से गुड़ के क्रशर कार्य करना शुरू कर देते हैं। दिसंबर माह तक जब तक उत्तराखंड की डोईयोवाला स्थित शुगर मिल कार्य करना शुरू नहीं कर देती तब तक करीब तीन माह यहां पर किसान अपना गन्ना इन क्रशरों पर डालते हैं। इस बार भी अक्तूबर माह में दिवाली से ही यहां पर गुड़ की महक आनी शुरू हो गई है।  प्रदेश के पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड में तो यहां के गुड़ की सप्लाई जाती ही है। साथ ही विदेशों से पांवटा साहिब के प्रसिद्ध गुरुद्वारे में माथा टेकने आने वाले सिख श्रद्धालु इस गुड़ की महक को अपने साथ कनाडा आदि स्थानों पर ले जाते हैं।  इस समय पांवटा साहिब में एक दर्जन से अधिक गुड़ क्रशर कार्य कर रहे हैं। इसमें शिवपुर और हरिपुर टोहाना समेत काहनूवाला, निहालगढ़ और माजरा क्षेत्र के टोकियो आदि स्थान शामिल हैं, जिनमें हर दिन करीब 600 क्विंटल तक गुड़ बनता है।

रिपोर्ट : दिनेश पुंडीर – पांवटा साहिब

शुगर है, तो लाल चावल खाएं

जीवन शैली जितनी आरामदेह हो गई है। उतनी ही बीमारियां स्वत चल कर शरीर को जकड़ रही हैं। उनमें एक है शुगर, जिससे पार पाना आसान नहीं है, लेकिन हमारे पहाड़ी उत्पाद में इस बीमारी की रोकथाम व इसके इलाज के  लिए ऐसी खाद्य सामग्री है, जिसे आप खाकर अपना पेट तो भर सकते हैं साथ ही इस बीमारी से निजात भी पा सकते हैं। लवी मेले में भले ही आधुनिकता हावी हुई हो, लेकिन पहाड़ी उत्पाद भी हाथोंहाथ बिक रहे हैं। विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके पहाड़ी उत्पाद सेहत पर कितना सकारात्मक असर डालते हैं यह इसकी गुणवत्ता से जाहिर होता है। जहां शुगर के लिए चावल खाना बिलकुल निषेध माना गया है वहीं लाल चावल इस बीमारी को रोकने में कारगर साबित हो रहा है। वहीं कोदा व फाफरा आटे के ऐसे पर्याय हैं, जिसे खाकर इस बीमारी को रोका व बेहतर किया जा सकता है। यही कारण है कि लवी मेले में लगे इस पहाड़ी उत्पाद वाले स्टाल में खासी भीड़ देखी जा सकती है। इस स्टाल में पहाड़ी माश, कोलथ, अखरोट, जो, कोदा, भंगजीरी, ओगला, चलाई, मक्की भी बेचने के लिए रखे गए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा बिक्री लाल चावल की ही हो रही है, जिसका मुख्य कारण यह है कि लाल चावल खाने में जितने स्वादिष्ट होते हैं उतने ही ये स्वास्थ्य के लिए लाभपद्र हैं। सरकार को चाहिए कि इस तरह के पहाड़ी उत्पादों की कृषि कर रहे किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए प्रयास करें। ताकि वे किसान ज्यादा से ज्यादा इन उत्पादों की खेती करें। उन्होंने कहा कि लाल चावल की कीमत इस बार 140 रुपए प्रति किलो तक रखी गई है। वहीं, अन्य उत्पाद की कीमत भी 100 से 500 रुपए प्रति किलो है।

महेंद्र बदरेल-रामपुर बुशहर

शिमला में तैयार किया  बिना बीज का खीरा

 स्नोपीज और सलाद के मटर भी मुंह में ला रहे पानी

और आइए अब चलते हैं कृषि विज्ञान केंद्र शिमला। यह केंद्र इन दिनों विदेशी सब्जियों पर काम कर रहा है। इनमें सबसे खास है स् नो पीज यानी सेम की फली। केंद्र ने विदेशी सेम फली तैयार की है। यह देखने में लोकल फली से साइज में बेशक कम है, लेकिन इसके स्वाद के क्या कहने। हर ओर स्नो पीज को खूब वाहवाही मिल रही है। इसी केंद्र ने दूसरा खास प्रोडक्ट तैयार किया है, बिना बीज का खीरा। जिसे देखते ही हर किसी के मुंह में पानी आ रहा है। इसके अलावा सलाद के मटर, लेट्यूस, पोक चोई, चेरी टमाटर आदि भी यहां हर किसी को भा रहे हैं। कें द्र में तीन साल पहले यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, जिसके अब शानदार रिजल्ट सामने आए हैं। कई किसानों को इन सब्जियों में अच्छा स्कोप नजर आ रहा है। वे   नौणी यूनिवर्सिटी के इस केंद्र से लगातार संपर्क साध रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. अशोक ठाकुर का मानना है कि किसानों के लिए ये सब्जियां काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं। स्नोपीज में खाने योग्य फली होती है, जो विभिन्न पोषक तत्त्वों से युक्त है। इसे सलाद के रूप में अत्यधिक पसंद किया जाता है। फली की भीतरी लेयर पर परत का अभाव, इसे कच्चे रूप में भी खाने के लिए उपयुक्त बनाता है। हालांकि, फली को पकाया भी जा सकता है। स्नोपीज विटामिन एबी6 और सी का एक अच्छा स्रोत है।

           -रिपोर्ट  मोहिनी सूद, सोलन

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