हिमाचल के लिए विदेशी सब्जी

By: Nov 16th, 2019 12:07 am

कृषि विज्ञान केंद्र लेट्यूस, पोक चोई और केल को बढ़ावा देने के लिए कर रहा काम

नौणी (सोलन) -हाल ही के कुछ वर्षों में उपभोक्ता मांग में काफी बदलाव आया है, जिससे बागबानी क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है। ऐसा ही एक बदलाव देश के महानगरों, शहरों और पर्यटन स्थलों में विदेशी सब्जियों की बढ़ती मांग है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषि विविधता की आवश्यकता और बागबानी फसल पैटर्न में बदलाव की दिशा में अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र शिमला, जो कि डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के प्रबंधन के तहत कार्य करता है, द्वारा शुरू की गई ऐसी ही एक सक्रिय पहल ने किसान और वैज्ञानिकों को काफी उत्साहजनक परिणाम दिए हैं। पिछले तीन वर्षों से केंद्र के वैज्ञानिकों ने जिला में विभिन्न विदेशी सब्जियों की खेती को शुरू करने और बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किया है। विदेशी सब्जियां जैसे स्नोपीस (सलाद के मटर), लेट्यूस, पोक चोई, केल, कौरगेटस, चेरी टमाटर और बीज रहित खीरे पर किसान के खेतों में परीक्षण लगाए गए हैं। कृषि विज्ञान केंद्र शिमला में कार्यरत सब्जी वैज्ञानिक डा. अशोक ठाकुर उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र के चयन और इन सब्जियों के रोपण सीजन के लिए विभिन्न मौसमों में परीक्षण कर रहे हैं। राकेश दुल्टा जो कि तहसील रोहड़ू के शील गांव के एक प्रगतिशील किसान हैं, के खेत में लगाए गए स्नोपीस की मिथी फली किस्म के परीक्षणों में लगभग सात क्विंटल प्रति बीघा की उत्पादकता प्राप्त की है। उच्च गुणवत्ता वाला यह उत्पाद नई दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में 200-300 रुपए प्रति किलोग्राम की कीमत से बिका।  डा. ठाकुर ने बताया कि विभिन्न विदेशी सब्जियों को सफलतापूर्वक पहाडि़यों में उगाया जा सकता है। केवीके शिमला के प्रभारी डा. एनएस कैथ ने कहा कि सेब उगाने वाले क्षेत्रों का कम अवधि के उच्च मूल्य वाली नकदी फसलों के साथ विविधिकरण पहाड़ी राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक वरदान बन सकता है। नौणी विवि के कुलपति डा. परविंदर कौशल ने  कहा कि विश्वविद्यालय राज्य में बागबानी के विविधिकरण के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। डा. जेएन शर्मा और निदेशक डा. राकेश गुप्ता ने भी वैज्ञानिकों के प्रयासों की प्रशंसा की।


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