अपराध की पराकाष्ठा

By: Dec 7th, 2019 12:06 am

पुष्पदीप जस्वाल

लेखक, शिमला से हैं

सामूहिक बलात्कार और उसके बाद पेट्रोल छिड़क कर जिंदा जला देने वाली हैदराबाद की घटना की निंदा और गुस्सा शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल हो रहा है। रूह कंपाने वाला यह कृत्य जो उन चार दरिंदों ने किया वह वास्तव में वर्ष 2012 की इसी दिसंबर माह के 16 तारीख की शाम की अप्रिय घटना की याद दिला रहा है जब ‘निर्भया’ के साथ भी समाज में पल रहे कुछ सड़ी सोच वाले राक्षसों ने ऐसा ही जानवरों से भयानक कृत्य किया था।

वह कृत्य भी इतना भयानक था कि भारत से लेकर विश्व के हर कोने में उसकी पुरजोर निंदा हुई। निर्भया आखिरी सांस तक लड़ी क्योंकि वह जीना चाहती थी, अपने सपनों को पूरा करना चाहती थीं, लेकिन यह मुमकिन न हो सका। 26 वर्षीय पशु चिकित्सक की 27 नवंबर को हैदराबाद के बाहरी इलाके शमशाबाद में आउटर रिंग रोड पर एक टोल गेट के पास चार ट्रक ड्राइवरों और क्लीनर ने सामूहिक बलात्कार किया और हत्या कर दी। खबरों की मानें तो उन सभी अपराधियों की उम्र 20 से 26 साल के बीच में है। पुलिस के अनुसार, उन्होंने पीडि़ता को उसके स्कूटर के टायर का हवाला देते हुए फंसा दिया, जब वह रात करीब 9 बजे अपने वाहन को लेने के लिए टोल गेट पर पहुंची थी, जो उसने शहर में एक त्वचा विशेषज्ञ से मिलने के लिए कैब में बैठने से पहले पार्क की थी।

पीडि़ता का सामूहिक बलात्कार और हत्या करने के बाद, उन्होंने शादनगर शहर के पास अपने ट्रक में शव को ले जाकर आग लगा दी। इस घटना ने पूरे देश में सार्वजनिक आक्रोश पैदा कर दिया है। हैदराबाद और तेलंगाना से लेकर देश के लगभग सभी कोनों में विरोध प्रदर्शन जारी है, दोषियों के लिए तत्काल मृत्युदंड की मांग की जा रही है। निर्भया कांड के समय जो जन आक्रोश था उसने सरकार को भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता से लेकर पोक्सो एक्ट में संशोधन करने और बलात्कार जैसे मामलों में निष्पादन हेतु तेजी लाने और दोषियों को फांसी की सजा देने के लिए कानूनों को बदला गया। सरकार द्वारा बलात्कार जैसे मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट में शीघ्र अति शीघ्र निपटाने का प्रावधान भी आपराधिक संशोधन कानून 2018 में किया गया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी यही उठ रहा है कि आखिर इतनी कठोर सजाओं का प्रावधान करके भी यह कृत्य रुकने का नाम नहीं ले रहे?

अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया में आखिर वह ऐसा कौन सा दिन होगा जब हम बलात्कार जैसी घटनाओं का समाचार नहीं देखते और सुनते होंगे? देश के हर कोने में लगभग 15 से 30 मिनट के बीच में एक बलात्कार होता है और यह आंकड़े किसी भी मां-बाप, भाई-बहन का मन विचलित कर देंगे कि आखिर इस धरती पर जीना इतना भयानक हो गया है कि हर मोड़ पर न जाने कौन सा इनसान के लिबास में बैठा भेडि़या निकले? महिलाओं कि सुरक्षा के संदर्भ में भी हमारा देश दुनिया के सभी देशों की सूची में सबसे भयानक स्थिति में है।

निर्भया के कातिलों को 7 साल बीत जाने के बाद भी फांसी नहीं मिल पाई है जो यह दर्शाता है कि हमारा कानून किन जटिलताओं से गुजर रहा है जिसका सरलीकरण किया जाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ताकि जघन्य अपराध करने वालों को शीघ्रता से फांसी पर लटकाया जाए जिससे पीडि़त परिवारों को समय रहते न्याय मिल सके और सरकार भी ऐसे दरिंदों के ऊपर आम जनता की खून-पसीने से कमाए गए टैक्स के पैसे को उनकी सेवा में न खर्च कर सके जो समाज में रहने का भी अधिकार नहीं रखते।

समाज के हर वर्ग, हर परिवार को इस संदर्भ में जमीनी स्तर पर काम करने और एक सकारात्मक सोच को देश में प्रवाहित करने की जरूरत है जिससे देश की बहन-बेटियां सुरक्षित महसूस कर सकें। बेटियों को बाहर जाने से रोकने के बजाय बेटों को औरतों का सम्मान करने और एक सुरक्षित वातावरण बनाने की शिक्षा देने से शायद कुछ बदलाव और सुधार आए।


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