अयोध्या में राम मंदिर ही

By: Dec 14th, 2019 12:05 am

सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की न्यायिक पीठ ने उन 18 पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिनमें 9 नवंबर के अहम फैसले को चुनौती दी गई थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने ही कई अस्पष्ट पहलुओं और बिंदुओं को लेकर याचिकाएं दाखिल की थीं। मुस्लिम पक्षकार के अलावा, निर्मोही अखाड़ा और हिंदू महासभा सरीखे हिंदूवादी पक्षकार ने भी फैसले को चुनौती दी थी। कुछ सामाजिक, नागरिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी याचिकाएं दी थीं। चूंकि वे मुख्य मामले की सुनवाई के दौरान पक्षकार नहीं थे, लिहाजा नई न्यायिक पीठ ने सुनवाई के लिए उन पर विचार ही नहीं किया और खारिज कर दिया। इन पुनर्विचार याचिकाओं को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस शरद अरबिंद बोबडे़ की अध्यक्षता वाली न्यायिक पीठ ने बंद चेंबर में ही सुना, लिहाजा मामला खुली अदालत में नहीं गया। अब बाबरी मस्जिद वाला विवादित अध्याय का लगभग पटाक्षेप हो चुका है। हालांकि क्यूरेटिव याचिका का अंतिम विकल्प अब भी शेष है, लेकिन वह तब ही न्यायिक पीठ के विचाराधीन हो सकता है, जब कोई अहम तथ्य या बिंदु छूट गया हो, कोई नया पहलू सामने आया हो अथवा यह फैसला पिछली न्यायिक पीठ के अधिकार-क्षेत्र में ही नहीं था। ऐसी संभावना और गुंजाइश अब नगण्य लगती है, लिहाजा अब माना जा सकता है कि अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर बनने का रास्ता साफ हो चुका है। सबसे पुराने मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने सर्वोच्च न्यायालय के पिछले फैसले को भी स्वीकार किया था और 18 पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किए जाने के बाद भी आश्वस्त महसूस कर रहे हैं कि अयोध्या की आस्था का यथार्थ राम मंदिर ही है। विडंबना यह है कि अब भी ओवैसी सरीखे कुछ मुस्लिमवादी चेहरे मीडिया में ‘मस्जिद-मस्जिद’ चिल्ला रहे हैं और अपनी सियासी लड़ाई को पाक मस्जिद से जोड़ कर पेश कर रहे हैं। सर्वोच्च अदालत में हारने के बावजूद उनकी दलील है कि मसला अयोध्या में या आसपास 5 एकड़ जमीन लेकर उस पर नई भव्य मस्जिद बनाने का नहीं है। उन्हें तो वही और उसी भूखंड पर मस्जिद चाहिए। यह कैसे संभव है? बीती 9 नवंबर को फैसला सुनाने वाली सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ ने उस 2.77 एकड़ भूमि को रामलला विराजमान को देने के निर्देश दिए थे और एवज में 5 एकड़ जमीन यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने की बात कही थी। हालांकि न्यायिक पीठ ने 6 दिसंबर,1992 को विवादित ढांचा ध्वस्त करने को आपराधिक गतिविधि करार दिया था, लेकिन उसका केस अलग तरह से चल रहा है। अदालत ने पुनर्विचार याचिकाओं में इस बिंदु को नकार दिया। बहरहाल हमें लगता है कि अब यह मंदिर-मस्जिद का विवाद पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। अब दोनों पक्ष गरीबी, गुरबत, मंदी, महंगाई, बेरोजगारी आदि मुद्दों पर विमर्श करें, चिंता करें और अपनी आवाज उठाएं। यदि मोदी सरकार का कोई सरोकार मुसलमानों के प्रति है, तो सच्चर और रंगनाथ मिश्र आयोगों की धूल फांकती रपटों को लागू कर दे। देखिए, मुसलमान मोदी सरकार के कैसे सगे होते हैं और मस्जिद की रटंत भी बंद होती है! बेशक ये आयोग कांग्रेस सरकारों ने बनाए थे, लेकिन कांग्रेस तो मुसलमानों की भावनाओं से खेलती रही है और एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करती आई है। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी का ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ नारा भी असल मायनों में चरितार्थ होगा। बेशक राम मंदिर का रास्ता साफ  हो गया है, लेकिन केंद्र सरकार ने, न्यायिक पीठ के फैसले के मुताबिक, ट्रस्ट अभी बनाना है। उसे लेकर ही साधु-संतों के विरोधाभास सामने आ रहे हैं। अब ऐसे मतभेद और स्वार्थ भी खत्म होने चाहिए। अब चुनावी मुद्दे के तौर पर भी राम मंदिर को इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। हालांकि इसके निर्माण का श्रेय भाजपा-संघ परिवार जरूर लेना चाहेंगे। जनता ही उसका जवाब देगी। 


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