ऊर्जा को शक्ति में बदलना

By: Dec 14th, 2019 12:16 am

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

 कोइर् भी इनसान भौतिक, आध्यात्मिक या किसी भी स्तर पर कितना आगे जा सकता है, यह बुनियादी तौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि अपने भीतर मौजूद ऊर्जा की कितनी मात्रा वह इस्तेमाल कर सकता है। यहां बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनके पास काफी ऊर्जा है, लेकिन उनके भीतर इतना विवेक या फिर कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो इस ऊर्जा को एक तरह की निजी शक्ति में बदल दे। शक्ति के बारे में लोगों का यह सोचना उनकी सबसे बड़ी भूल है कि यह दूसरों पर इस्तेमाल करने के लिए है। शक्ति का आशय खुद आपसे है, शक्ति आपके अपने बारे में है। आप के अंदर शक्ति कितनी सक्रिय है, इससे न सिर्फ  आपके जीवन की तीव्रता व गहराई तय होती है, बल्कि आप जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कितने प्रभावशाली होंगे, यह भी तय

होता है। बाहरी चीजों को विकसित किया गया है, व्यक्तिगत शक्ति को नहीं। आधुनिक समाज में व्यक्तिगत शक्तियों को विकसित करने का बहुत ही कम प्रयास हुआ है, क्योंकि समानता को लेकर हमारी सोच बिलकुल गलत थी। यह बड़ी ही अजीब बात है कि आज हमें ये लगता है कि हमारे जीवन की क्वालिटी बैंकों में जमा पैसों से, हमारी गाड़ी व घर के साइज से तय होती है। समानता का मतलब यह नहीं है कि हर किसी को बराबर करने के लिए छांटकर बराबर कर दिया जाए। समानता का मतलब है कि हरेक के पास विकास के समान अवसर हों। अगर आप अपनी सोच में भी हर चीज को एक जैसी बनाने की कोशिश करेंगे, तो आप जीवन के हर रूप के अनोखेपन और संभावना को नष्ट कर देंगे। आज से हजार साल पहले जब न तो डॉलर थे और न ही गाडि़यां और न ही वैसे घर, जिनमें हम आज रहते हैं तो क्या तब लोग अच्छा जीवन नहीं जीते थे? विचारों और प्रतिक्रियाओं में बर्बाद करते हैं हम ऊर्जा। जीवन में जहां भौतिक रूप से सफल होना, पेशेवर तौर पर सफल होना भी जरूरी है,वहीं मेरी चिंता है कि आप आध्यात्मिक रूप से सफल हों। मगर इसके लिए भी आपको कुछ खास तरह की निजी शक्ति चाहिए। अगर वो शक्ति पानी है, तो आपको अपनी ऊर्जाओं का समझदारी से इस्तेमाल करना होगा।

आवश्यक समझदारी, बुद्धिमानी व जरूरी साधनों की मदद से ऊर्जा को शक्ति में बदला जा सकता है। वर्ना आपकी ऊर्जा अनंत सोच-विचारों व असंख्य प्रतिक्रियाओं और चिंताओं में बर्बाद हो सकती है। आपने गौर किया होगा कि जब आप किसी दिन ज्यादा चिंतित या परेशान होते हैं, उस दिन आपको ज्यादा थकावट होती है। मैं चाहता हूं कि आप अपनी रोजमर्रा के जीवन पर गौर करें। छोटी-छोटी चीजों पर गौर करें। जैसे एक दिन में आप कितने शब्द बोलते हैं। कल जरा इसका अनुमान लगाइए कि सुबह से रात तक आप कितने शब्दों का उच्चारण करते हैं। अगर आपके भीतर अपनी कोई निजी शक्ति ही नहीं होगी, तो आप दूसरों की राय के मुताबिक ही जिएंगे।


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