एक बंदर  पकड़ने पर मिलेंगे हजार रुपए, लोगों को ट्रेनिंग देगी जयराम सरकार, वन मंत्री ने दिए निर्देश

By: Dec 8th, 2019 12:10 am

हिमाचल में एक बंदर पकड़ने पर अब एक हजार रुपए दिए जाएंगे। बंदरों को काबू करने के लिए प्रदेश की जयराम सरकार लोगों को बाकायदा टे्रनिंग भी दिलवाएगी। वन मंत्री गोविंद ठाकुर ने कहा है कि मौजूदा समय में एक बंदर पकड़ने पर एक हजार रुपए दिए जाते हैं, जिन्हें बढ़ाया जाएगा। शिमला में एक कार्यक्रम में गोविंद ठाकुर ने हालांकि यह भी दावा किया कि इस समय में प्रदेश की सिर्फ 548 पंचायतें बंदरों के लिए अति संवेदनशील हैं। मंत्री ने कहा कि प्रभावित पंचायतों में विभाग को विशेष बैठकें करवानी चाहिएं, ताकि लोगों को बंदरों को पकड़ने का प्रशिक्षण दिया जा सके।  उन्होंने कहा कि बंदरों की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इस समस्या का कारगर तरीका नसबंदी है। प्रदेश के आठ वानर नसबंदी केद्रों में वन विभाग अब तक एक लाख 57 हजार वानरों की नसबंदी कर चुका है। बहरहाल हिमाचल सरकार की नई तरकीब बंदरों को काबू करती है या फिर जुमला साबित होती है। यह आने वाले समय में पता चलेगा, लेकिन किसान सभा और वन मंत्री के दावों में अंतर जरूर है क्योंकि किसान सभा कई बार कह चुकी है कि ढाई हजार अब गौर रहे कि किसान सभा कई बार कह चुकी है कि ढाई हजार से ज्यादा पंचायतों में बंदरों का प्रकोप है। मंत्री जी का आंकड़ा इससे काफी कम है।

रिपोर्ट : आरपी नेगी, शिमला

हद है! बंदरों और लोगों के संघर्ष पर मीटिंग,लेकिन किसान नहीं बुलाए

सरकार द्वारा इतने साल बाद वानर व मानव टकराव पर बुलाई गई कार्यशाला में पंचायत से किसी को भी न बुलाना असहनीय है। हालांकि वानर मानव टकराव पर कार्यशाला सरकार का एक सकारात्मक कदम है। कम से कम दो साल में सरकार ने समस्या की गंभीरता को समझा, लेकिन समस्या सिर्फ  शहरों में ही नहीं प्रदेश की 90 फीसदी जनता गांव में बसती है, जहां बंदर जान के साथ-साथ फसल को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं, मगर अफसोस की बात है कि इस कार्यशाला में पंचायती राज संस्थाओं से किसी भी जन प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया। प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप तंवर ने  कहा कि वर्तमान सरकार को समस्या की गंभीरता को समझने के लिए भले ही दो साल लग गए हों, लेकिन उम्मीद है कि सरकार महंगे होटलों और केवल शहरों के भव्य आयोजनों से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस समस्या के प्रभाव को समझने का प्रयास करेगी और इसका कोई उचित समाधान निकालेगी। डा. तंवर ने कहा कि कार्यशाला में पेश किए गए आंकड़े सच से बहुत दूर हैं। बंदरों की समस्या सिर्फ  548 पंचायतों में नहीं है, बल्कि खेती बचाओ संघर्ष समिति ने एक सघन सर्वेक्षण करके 2301 पंचायतों में बंदरों की समस्या का पता लगाया था।

होनहार महिला किसानों को एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का सलाम

पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने कृषक महिला दिवस मनाकर प्रदेश की होनहार महिला किसानों को सलाम किया। इस दौरान 300 कृषक महिलाओं ने भाग लिया । कार्यक्रम में कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने मुख्यातिथि शिरकत की । सम्मान पाने वाली महिलाओं में किसान समूह भी शामिल रहे, जो लोगों को खेती के प्रति प्रेरित कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी की इस अनूठी पहल से भविष्य में बेहतर परिणाम सामने आएंगे, क्योंकि  कृषि क्षेत्र के कुल श्रम में ग्रामीण महिलाओं का योगदान 43 प्रतिशत है, वहीं कुछ विकसित देशों में ये आंकड़ा 70 से 80 प्रतिशत भी है। प्रो. अशोक सरयाल ने बताया कि  कृषि विश्वविद्यालय में 60 प्रतिशत लड़कियों ने प्रवेश लिया है और आने वाले समय में कृषि क्षेत्र में और अधिक उनका योगदान होगा ।

शेरदिल हैं हिमाचली किसान

2015-16 में सुसाइड का एक भी मामला नहीं, पूरे देश में कर्ज से तंग आकर जान देने वाले किसान भाइयों के लिए रोल मॉडल बने हिमाचली फार्मर्ज

देश भर से किसानों द्वारा आत्महत्या के समाचारों के बीच हिमाचल पूरे भारतवर्ष के लिए रोल मॉडल बनकर उभरा है। देश भर से जुटाए गए आंकड़ों में सामने आया है कि  2016 में एक भी हिमाचली किसान ने सुसाइड नहीं किया है। यह हिमाचल के लिए बड़े गौरव की बात है। राष्ट्रीय स्तर पर जारी किए गए किसानों की आत्महत्या से संबंधित आंकड़े प्रदेश के लिए इस कारण भी सुखद हैं क्योंकि 2014 में इस सूची में प्रदेश के 32 किसान भी शामिल थे। 2014 में प्रदेश में कृषि से जुड़े 63 लोगों की आत्महत्या के मामले सामने आए थे जिसमें 32 किसान और 31 कृषि से जुड़े मजदूर शामिल थे, जबकि 2015 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में एक भी किसान ने सुसाइड नहीं किया जबकि कृषि मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने के 31 मामले दर्ज किए गए थे। वहीं, 2016 में खेती कार्यों से जुड़े 14 मजदूरों के सुसाइड के मामले में भी घरेलू कलह व बीमारी अहम कारण रहे। आंकड़े खुलासा करते हैं कि जहां देश में किसानों द्वारा सुसाइड करने के पीछे कर्ज करा बोझ सबसे बड़ा कारण बनकर उभरा है वहीं प्रदेश के किसान कर्ज से परेशान नहीं हैं। प्रदेश में कृषि कार्यों से जुड़े लोगों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे अधिकतर पारिवारिक कारण और बीमारी से तंगी रही है।

-जयदीप रिहान, पालमपुर

महाराष्ट्र में सबसे अधिक मामले

देश भर में 2016 में कृषि से जुड़े लोगों द्वारा सुसाइड करने का आंकड़ा 11647 रहा जो कि 2015 के 12602 मामलों से कम है। किसानों व कृषि कार्य में लगे मजदूरों द्वारा सुसाइड करने के सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र में सामने आए। किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामले में महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश रहे तो मजदूरों द्वारा सुसाइड के अधिकतर मामले मध्य प्रदेश तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश कर्नाटक में सामने आए।

बागबानों को सिखाई जीरो बजट खेती

ग्राम पंचायत कुई में जीरो बजट खेती पर ग्राम पंचायत प्रधान सुरेंद्र वर्मा की अध्यक्षता में एकदिवसीय शिविर आयोजित किया गया। इस शिविर में ग्राम पंचायत के सैकड़ों किसानों एवं बागबानों ने भाग लिया। शिविर में जीरो बजट खेती के स्टेट प्रोजेक्ट निदेशक राकेश कंवर और सह निदेशक राजेश्वर चंदेल व केवीके रोहडू प्रभारी आर एस कंवर विशेष रूप से बतौर विशेषज्ञ उपस्थित रहे। प्रोजेक्ट निदेशक राकेश कंवर ने बताया कि केमिकल खेती की तरफ किसानों और बागबानों का रुझान कई साल से बढ़ रहा है। जबकि जीरो बजट खेती से भी किसान एवं बागबान उतना ही मुनाफा कमा सकता है, जितना कि वह केमिकल खेती उपयोग में ला कर कमा सकता है।

– दीपक रोहड़ू

माटी के लाल

जवाली के संदीप ने उगाया कश्मीरी केसर

 कांगड़ा जिला के तहत उपमंडल जवाली के गांव त्रिलोकपुर निवासी संदीप कुमार शर्मा ने पत्थरीले इलाके में कश्मीरी केसर तैयार कर दिखाया है। संदीप  लगातार इस प्रयास में लगे हुए थे।  संदीप  ने इस समय डेढ़ कनाल जमीन पर केसर तैयार किया है। उन्होंने कहा कि कश्मीर का बीज और यहां तैयार किया गया बीज भी कामयाब हुआ है जिससे फूल भी बहुत बढि़या आए हैं और उनमें केसर भी अच्छा निकला है। उन्होंने बताया कि यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुंदर गंधयुक्त होती है। उन्होंने कहा कि आईएचबीटी पालमपुर की वैज्ञानिक अमिता भट्टाचार्य ने तकनीकी सहायता की है। उन्होंने कहा कि केसर की फसल दो माह में तैयार हो जाती है। संदीप ने कहा कि संस्था ग्रामीण एवं कृषि विकास समिति के माध्यम से और अधिक किसानों को केसर की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पांच पोलीहाउस भी लगाए गए हैं। 150 सेब के पौधे भी लगाए गए हैं जिनमें से अधिकतर पर सेब भी लगे थे।     

      -सुनील दत्त, जवाली

पधरू के धारो को मिला प्रगतिशील किसान-बागबान अवार्ड

साहो कीड़ी पंचायत के धारो राम को युवा प्रगतिशील किसान और बागबान का अवार्ड मिला है। उन्हें यह सम्मान डा. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यलाय नौणी सोलन के 25 में स्थापना दिवस पर मिला। इस स्थापना दिवस पर आयोजित भव्य समारोह में मुख्यातिथि के तौर पर वन, परिवहन, युवा एवं खेल मंत्री गोबिंद ठाकुर पहुंचे थे। धारो राम ने इस अवार्ड को हासिल कर यह साबित कर दिया है कि अपनी मेहनत के दम पर कुछ भी हासिल किया जा सकता है। जिस एरिया में कभी बेमौसमी सब्जियां तैयार करने की सोचना बड़ी बात थी। आज उस एरिया में इतनी सब्जियां तैयार हो रही हैं कि जिले के अलग एरिया के लोग उनके यहां खरीदने को पहुंच रहे हैं। तो वहीं सब्जी मंडी में भी इस एरिया की सब्जियों की काफी मांग है।  इनसे प्रेरित होकर पंचायत के अन्य लोग भी अच्छी खेती करने लगे हैं। जिससे इस एरिया की जनता की अर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है। यहां जिक्र हो रहा है कीड़ी पंचायत के पधरूई गांव के ज्ञान चंद के  बेट धारो राम का। जिन्हें जिले में किसान पुत्र के तौर पर जाता है। 17 साल पहले यह युवा किसान नौकरी की तलाश में यहां-वहां भटक रहा था। थक हारकर इस युवा किसान ने बंजर पड़ी अपनी जमीन को खेती योग्य बनाकर बेमौसमी सब्जियां उगानी शुरू कर दीं। इसी बीच किसी ने धारो राम को सलाह दीं कि कृषि विभाग के विशेषज्ञों से मिलकर अच्छी खेती की शुरुआत कर खुद को रोजगारन्मुख बनाया जा सकता है। फिर क्या था, इस युवा किसान ने झट से कृषि विभाग के विशेषज्ञों से संपर्क साधा और फिर बड़े स्तर पर खेती का फैसला कर लिया।

– रिपोर्ट : – दीपक शर्मा, चंबा

कांगड़ा में मिले वन अधिकार

सरकार व प्रशासन में निर्णय लेने की क्षमता और अपनी शक्तियों की पहचान हो तो जनता को हर खुशी दी जा सकती है। हिमाचल में वर्षों में किसानों एवं बागबानों को फोरेस्ट राइट एक्ट के तहत सुविधा न मिलने के कारण वे अपने ही अधिकारों से वंचित थे, लेकिन कांगड़ा जिला प्रशासन ने इस में बड़ी एवं नई पहल करते हुए सारे मामले का गहराई से अध्ययन करने के बाद जिले के एक छोर पर बैजनाथ से इसकी शुरुआत कर दी है। उन्होंने कांगड़ा जिले के एक छोर बैजनाथ जिसमें दुर्गम क्षेत्र भी अधिक है। वहां से शुरुआत करते हुए किसानों को फोरेस्ट राइट के तहत उनके कम्युनिटी राइट्स देने का निर्णय लिया है। पहली बार लिए गए इस बड़े निर्णय से हजारों लोगों को लाभ मिलेगा। वह अपनी घासनियों से घास, चारा एवं वन क्षेत्र में अपना बर्तन क र पाएंगे।

गट्ठियों के जरिए बढ़ाएं प्याज की प्रोडक्शन

डा. रविंद्र सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र बिलासपुर, स्थित बरठीं (कृषि विश्वविद्यालय) फोन न.- 9418157447

बरठीं कृषि विज्ञान केंद्र 12 साल से कर रहा किसानों की सेवा,महंगाई के दौर में किसान भाई उठा सकते हैं सेट्स तकनीक का फायदा

हिमाचल समेत देश भर में प्याज के दाम 100 रुपए किलो टच कर रहे हैं। अब जब इस मसले पर हर और हो हल्ला हो रहा है, तो अपनी माटी टीम ने प्रदेश के लाखों लोगों की खातिर इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रयास शुरू किए। आखिर हमारी टीम का संपर्क हुआ बिलासपुर जिला के तहत कृषि विज्ञान केंद्र बरठीं से। बरठीं का यह केंद्र 12 साल  से किसानों को प्याज उगाने की ऐसी तकनीक सिखा रहा है, जिसे, हर कोई आसानी से अपना कर प्याज पैदा कर सकता है।  यह केंद्र किसानों को  सेट्स यानी गट्ठियां तकनीक से प्याज उगाना सिखाता है। यह तकनीक काफी आसान है।  साल 2006-07 से ही खरीफ  यानी गर्मी के प्याज के लिए अनुमोदित किस्में एन-53, एग्रीफाउंड डार्क रेड के बीज से गट्ठियों (सेटस) द्वारा प्याज उत्पादन तकनीक का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। गर्मियों के प्याज की गट्ठियां (सेट) तैयार करने के लिए इन किस्मों के बीज की बिजाई मार्च मध्य में की जाती है। क्यारी घर के नजदीक ऐसी जगह बनाएं जहां पूरा दिन धूप रहे तथा देखभाल भी आसानी से की जा सके। क्यारी की लंबाई तीन मीटर, चौड़ाई एक मीटर तथा ऊंचाई 15-20 सें.मी. होनी चाहिए। लंबाई जरूरत के अनुसार घटाई या बढ़ाई भी जा सकती है परंतु चौड़ाई 1.00 से 1.30 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे अधिक चौड़ाई वाली क्यारी से खरपतवार निकालने व अन्य कृषि कार्यों को संपन्न करने में असुविधा रहती है।  क्यारियों में बिजाई से पहले गली-सड़ी गोबर की खाद (20-25 कि.ग्रा.), 12:32:16 मिश्रित खाद की मात्रा 100 ग्राम प्रति क्यारी की दर से मिला लें। बीज बिजाई से पूर्व फफूंदनाशक दवाई जैसे प्टान/ बैविस्टीन/ थीरम की मात्रा दो या तीन ग्राम दवाई प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।  -क्रमशः

आप हमें व्हाट्सऐप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं, तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है, तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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