गुलेन-बर्रे सिंड्रोम पर इंफॉर्मेटिव हेल्थ टॉक

चंडीगढ़  – गिलैन बारे गुलेन-बर्रे सिंड्रोम (जीबीएस) एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, जिसकी वर्णनता फ्लेसीड पैरालिसिस है। यह आमतौर पर सांस या गेस्ट्रोइंस्टनल संबंधित संक्रमण से पहले होता है जो आमतौर पर कैंपिलोबैक्टर जेजुनीए मानव हर्पीस वायरस, एबस्टीन-बार वायरस या साइटोमेगालो वायरस द्वारा होता है। यह गर्भावस्था, सर्जरी या टीकाकरण से भी शुरू हो सकता है। डा. सुशील के राही, न्यूरोलॉजिस्ट, आईवी हॉस्पिटल ने गुलेन-बर्रे सिंड्रोम पर एक इंफॉर्मेटिव हेल्थ टॉक को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि जीबीएस का एक प्रमुख क्लीनिक फीचर है, जो कि फ्लेक्सी मोटर पेरालाइसिस के साथ या बिना सेंसरी डिस्ट्रबेंस के कारण होता है। पेरालाइसिस एक एक्सेडिंग प्रकार का होता है, जिसमें पहले पैरों को शामिल किया जाता है, उसके बाद बाजुओं, चेहरे की मांसपेशियों को अपने प्रभाव में लेता है। इसके गंभीर मामलों में सांस की मांसपेशियों की कमजोरी के कारण यांत्रिक वेंटिलेशन की आवश्यकता होती है। 4 सप्ताह के बाद एक प्लेटू तक पहुंचने के बाद हफ्तों में ही कमजोरी बढ़ जाती है। डा. राही ने बताया कि सर्जरी के बाद होने वाली जीबीएस एक अज्ञात मैकेनिज्म है। सर्जरी के बाद जीबीएस के लिए जोखिम प्रति 1,00,000 ऑपरेशन में 4.1 प्रतिशत मामले हैं। उन्होंने कहा कि एक ऑफ पंप कोरोनरी आर्टिरी बाईपास ग्राफ्ट (सीएबीजी) के काफी कम मामले मेडिकल लिटरेचर में सामने आए हैं। डा. राही ने आगे बताया कि इट्रवेन्यूस इम्युनोग्लोबुलिन के प्रारंभिक एडिमिनिस्ट्रेशन को अवधि और पैरेसिस की गंभीरता को कम करने के लिए एक वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में माना जाता है। कॉर्टिकोस्टेरॉइड की भूमिका विवादास्पद है।