जिन पर हो रही थी चर्चा वही प्रोग्राम से दरकिनार

By: Dec 5th, 2019 12:20 am

शिमला – सरकार द्वारा इतने साल बाद वानर व मानव टकराव पर बुलाई गई कार्यशाला में पंचायत से किसी को भी न बुलाना असहनीय है। हालांकि वानर मानव टकराव पर कार्यशाला सरकार का एक सकारात्मक कदम है। कम से कम दो साल में सरकार ने समस्या की गंभीरता को समझा, लेकिन समस्या सिर्फ  शहरों में ही नहीं प्रदेश की 90 फीसदी जनता गांव में बसती है, जहां बंदर जान के साथ-साथ फसल को भी भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं, मगर अफसोस की बात है कि इस कार्यशाला में पंचायती राज संस्थाओं से किसी भी जन प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया। प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप तंवर ने शिमला में यह बात की। हिमाचल किसान सभा राज्याध्यक्ष डा. कुलदीप सिंह तंवर ने वानर-मानव टकराव पर आयोजित कार्यशाला पर कहा कि वर्तमान सरकार को समस्या की गंभीरता को समझने के लिए भले ही दो साल लग गए हों, लेकिन उम्मीद है कि सरकार मंहगे होटलों और केवल शहरों के भव्य आयोजनों से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस समस्या के प्रभाव को समझने का प्रयास करेगी और इसका कोई उचित समाधान निकालेगी। डा. तंवर ने कहा कि कार्यशाला में पेश किए गए आंकडे सच से बहुत दूर हैं। बंदरों की समस्या सिर्फ  548 पंचायतों में नहीं है, बल्कि खेती बचाओ संघर्ष समिति ने एक सघन सर्वेक्षण करके 2301 पंचायतों में बंदरों की समस्या का पता लगाया था। वहीं, 2014 में 3.19 लाख बंदरों से 2016 में बंदरों की संख्या 2.07 लाख का आंकड़ा भी सही नहीं है। इस समय प्रदेश में कम से कम 5 लाख के करीब बंदर हैं। वहीं बंदरों की नसबंदी पर किए गए खर्च का आंकड़ा भी छिपाया जा रहा है। वन विभाग का दावा है कि उसने अभी तक 1 लाख 57 हज़ार बंदरों की नसबंदी की है। एक बंदर को पकड़ने से लेकर उसकी नसबंदी और वापस छोड़ने पर कम से कम 2 से अढ़ाई हजार रुपए का खर्च आता है। इस हिसाब से कम से कम अगर तक 35 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। डा. तंवर ने कहा कि या तो नसबंदी का आंकड़ा गलत है या उस पर किए गए खर्च का आंकड़ा। उन्होंने सरकार से इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। वहीं, वन विभाग अब तक बंदरों को मारे जाने की संख्या 100 बता रहा है लेकिन किसानों से बात करने पर पता चलता है कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में किसानों ने अलग-अलग तरीकों से कम से कम 40 से 50 हजार बंदरों को मारा है। वन विभाग वर्मिन घोषित किए गए बंदरों को मारने की पद्धति पर स्पष्ट न होने के कारण मारे गए बंदरों की संख्या को उजागर करने से कतरा रहा है। डाक्टर तंवर ने कहा कि सरकार प्रदेश की जनता को गुमराह करना छोड़ दें। सरकार तीन दिनों तक बंदरों की गणना करने जा रही है, लेकिन क्या यह संभव है कि इन तीन दिनों में बंदरों की संख्या का सही पता लग जाएगा।  हिमाचल किसान सभा ने सरकार से सवाल किया है कि अगर बंदर वर्मिन हैं और उन्हें मारा जा सकता है तो उनकी नसबंदी पर खर्च क्यों किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि क्या शहरों की घनी आबादी में लोग खुद बंदरों को मार सकते हैं। डा. तंवर ने कहा कि सरकार समस्या के समाधान के लिए जनता से सहयोग तो मांग रही है, लेकिन वह खुद में स्पष्ट नहीं है कि जनता किस तरह से सहयोग करे।


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