जीवन के आंतरिक अनुभव

By: Dec 14th, 2019 12:16 am

 बाबा हरदेव

जीवन में जो भी हमारे हैं यह रस के अनुभव हैं, चाहे यह अनुभव सौंदर्य के हों,चाहे प्रेम के हों, चाहे संगीत के हों। मानो जो भी हमारे अनुभव हैं वह रस के अनुभव हैं क्योंकि अनुभव रसरूप हैं या ऐसा कहें कि समस्त अनुभव का जो निचोड़ है, उसे हमारे ऋषि-मुनियों ने रस के नाम से संबोधित किया है। अतः इसकी धारणा हमारे भारत में अनूठी है, संसार में कोई भी रस के करीब इतना नहीं पहुंचा है जितना भारत पहुंचा है और देशों ने सौंदर्य की व्याख्याएं तो बहुत की हैं, लेकिन उनकी यह व्याख्याएं अधूरी ही हैं। उदाहरण के तौर पर सौंदर्य रस है, प्रेम रस है, आनंद रस है और तो और उपनिषद ने तो घोषणा की है कि ब्रह्म रस है। श्रीकृष्ण गीता के इस श्लोक में फरमाते हैं।

रसोऽहमप्सु कौंतेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।

हे अर्जुन जल में रस हूं तथा चंद्रमा और सूर्य में प्रकाश हूं। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने बाहर से इशारा तो किया है दृश्य की ओर, लेकिन गहराई में इशारा कर रहे हैं अदृश्य की ओर। जल में रस हूं, यहां रस बहुत अदभुत शब्द है और सूक्षम और बहुत अदृश्य दिखाई पड़ता है। उदाहरण के तौर पर कोई पेय पदार्थ पीते हैं, तो चाहे अमृत भी पिएं, तो  जो दिखाई पड़ता है जब हम पीते हैं तो जो हमारे अनुभव में आता है क्या वो वही होता है जो हमारे अनुभव में आता है,क्या वो वही होता है जो हमें दिखाई पड़ता था। जब हम पीते हैं, तो जो अनुभव में आता है वह तो दिखाई बिलकुल नहीं पड़ता था, क्योंकि जो दिखाई पड़ता था वह तो कुछ और दिखाई पड़ता था और जो पीने में अनुभव में आता है, वह कुछ और होता है मानो वह जो अनुभव में आता है, पीने पर वह है रस आंतरिक अनुभूति है।

हरि हरि नामु जपहु रसु मीठा

गुरमुखि हरि रसु अंतरि डीठा

उदाहरण के तौर पर हमारा एक प्रियजन हमारे पास आया है और हम एक दूसरे के हाथ में हाथ लेकर बैठे हुए हैं, इस अवस्था में हमारे प्रियजन का हाथ तो हमारे हाथ में है,लेकिन भीतर जो एक प्रेमरस उत्पन्न हो रहा है प्रियजन के पास होने का, वह एक अनूठा प्रेमरस है। अब यदि हम दोनों हाथ किसी वैज्ञानिक के पास प्रयोगशाला में ले जाएं और कहें कि हाथों को काट कर पता लगाएं कि हम दोनों को क्या रस उपलब्ध हुआ है और खोजबीन करें कि वह रस कहां है? स्पष्ट है कि इन हाथों में केवल रक्त मिलेगा। बहता हुआ पानी मिलेगा, हड्डी और मांस आदि मिल जाएंगे परंतु रस नहीं मिलेगा,क्योंकि प्रेमरस जो हमें हाथ में हाथ लिए हुए मिल रहा था, वह अदृश्य था। मानो प्रत्येक वस्तु के भीतर जो स्वाद आंतरिक अनुभव में उतरता है, इसका नाम रस है। वास्तव में सभी रस अदृश्य हैं। एक फूल गुलाब का खिला है और हम इसके पास जाते हैं और हम फूल को देख कर कहते हैं कि यह फूल बहुत सुंदर है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति बाग में मिल जाए और हमारे से तर्क-विर्तक करता हुआ पूछने लगे कि फूल का सौंदर्य कहां है, यह सौंदर्य दिखाओ। तो हम बड़ी कठिनाई में पड़ जाएंगे। हम इस व्यक्ति को लाख तर्कसंगत उदाहरण देते हुए समझाने की कोशिश कर लें कि गुलाब के फूल का सौंदर्य क्या होता है।

 


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