ड्ढकिस तरह किया जाता है वशीकरण

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

वशीकरण करने के लिए मोतियों की माला अथवा हीरे की माला श्रेष्ठ मानी गई है। इस माला में 27 मोती अथवा हीरे होने आवश्यक हैं। आकर्षण क्रिया के लिए माला के मनकों को घोड़े की पूंछ के बाल में पिरोना चाहिए तथा स्त्री मोहन एवं वशीकरण के लिए मनकों को स्त्री के मस्तक के बाल में पिरोना चाहिए। यदि मोती व हीरे की माला न मिल सके तो 108 मनकों वाली रुद्राक्ष की माला का प्रयोग भी किया जा सकता है। यह सभी क्रियाओं में काम आ सकती है…

-गतांक से आगे…

वशीकरण क्रियाएं करते समय आसन मुद्रा

वशीकरण साधन में साधक को भद्रासन बांधकर बैठना चाहिए और उसकी गदा-मुद्रा होनी चाहिए। नीचे बिछाने के लिए मेढ़े का चर्म प्रशस्त माना गया है। उसके न उपलब्ध होने पर कुशासन अथवा मृगछाला पर बैठना उचित है। आकर्षण की क्रियाएं करते समय बाघ की खाल को बिछाकर बैठना अच्छा माना गया है।

वशीकरण क्रिया के लिए माला का प्रयोग

वशीकरण करने के लिए मोतियों की माला अथवा हीरे की माला श्रेष्ठ मानी गई है। इस माला में 27 मोती अथवा हीरे होने आवश्यक हैं। आकर्षण क्रिया के लिए माला के मनकों को घोड़े की पूंछ के बाल में पिरोना चाहिए तथा स्त्री मोहन एवं वशीकरण के लिए मनकों को स्त्री के मस्तक के बाल में पिरोना चाहिए। यदि मोती व हीरे की माला न मिल सके तो 108 मनकों वाली रुद्राक्ष की माला का प्रयोग भी किया जा सकता है। यह सभी क्रियाओं में काम आ सकती है।

कलश-स्थापना

वशीकरण कर्म के साधन के समय चांदी या तांबे का कलश स्थापित करना चाहिए। तांबे का कलश सभी क्रियाओं के लिए श्रेष्ठ है। मोहन क्रियाओं में पीपल के कलश की स्थापना प्रशस्त कही गई है।

जप करने की विधि

वशीकरण कर्म करते समय अंगूठे और बची (मध्यमा) अंगुली से माला को फिराना चाहिए। केवल आकर्षण में माला फेरते समय मनकों को अंगूठे तथा अनामिका (छोटी) अंगुली से फेरना चाहिए। मंत्रों का जप उपांशु विधि से होना चाहिए। इस विधि में मंत्र केवल स्वयं को ही सुनाई देता है।

मंत्र उत्कीलन तथा उसकी विधियां

भूतडामर तंत्र में मंत्रों की उत्कीलन विधियां जैसी बताई गई हैं, वे निम्नलिखित हैं। इन विधियों से मंत्र उत्कीलित करके साधक मंत्र की सिद्धि प्राप्त कर सकता है। प्रथम, यंत्र को भोजपत्र के ऊपर अष्ट गंध द्वारा 108 बार लिखकर धूप-दीप नैवेद्य देकर पूजन करें। फिर ब्राह्मणों को खिलाएं। दूसरे, उपर्यक्त विधि से मंत्र लिखने के पश्चात पूजनादि करके उस भोज-पत्र को किसी नदी की बहती धारा में प्रवाहित कर दें। और अंत में मिट्टी से इस देवता की प्रतिमा को पुरुषाकार निर्मित करके उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात शुभ घड़ी और शुभ तिथि में भोज-पत्र के ऊपर अष्टगंध से मंत्र को लिखकर उस प्रतिमा को छाती से लगाएं। इसके बाद अन्य क्रियाएं पूरी करें। 

 


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