तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

जिसी की बात हैरान कर देने वाली थी। फिर भी जिसी ने जिस प्रकार सरलता से सब समझाया, सराहनीय था। जिसी ने आगे कहा- ‘यह कार्य हर साधक साधना के बल पर कर सकता है।’ जिसी जितनी सुंदर थी, उसका स्वर भी उतना ही मधुर और आकर्षक था। उसके पतले-पतले होंठों से मानो गुलाब की पंखुडि़यां झड़ रही थीं। ‘क्या तंत्र द्वारा कुंडलिनी जागरण संभव है?’ मैंने पूछा। ‘हां, अवश्य।’ …

-गतांक से आगे…

ऊंचे पथरीले आसन पर बैठी जिसी अपने पैर बार-बार हिला रही थी। हवा के झोंके उसके चेहरे को छेड़ रहे थे। उसकी गोरी-गोरी सुडौल पिंडलियां चमक रही थीं। ‘शास्ता साधना के द्वारा अपना शरीर वायु से भी हल्का कर लेते हैं। अतएव वह अधर में उठ जाते हैं। योग बल से ऐसा करते हैं। शरीर हल्का होते ही वायु के समान हो जाता है।’ जिसी ने बताया। ‘इस दशा में कहीं भी आ-जा सकते हैं?’ ‘हां। आकाश मार्ग से।’ जिसी की बात हैरान कर देने वाली थी। फिर भी जिसी ने जिस प्रकार सरलता से सब समझाया, सराहनीय था। जिसी ने आगे कहा- ‘यह कार्य हर साधक साधना के बल पर कर सकता है।’ जिसी जितनी सुंदर थी, उसका स्वर भी उतना ही मधुर और आकर्षक था। उसके पतले-पतले होंठों से मानो गुलाब की पंखुडि़यां झड़ रही थीं। ‘क्या तंत्र द्वारा कुंडलिनी जागरण संभव है?’ मैंने पूछा। ‘हां, अवश्य।’ जिसी मुस्कराई- ‘क्या मुझसे सीखना चाहते हो?’ वह खिलखिलाकर हंस पड़ी। खिलखिलाकर हंसने के कारण जिसी और भी मादक हो गई। उसका रूप और सलोना हो गया। उसके चेहरे का भोलापन और मोहक हो गया। ‘शास्ता से आदेश लेना पड़ेगा।’ जिसी बोली- ‘वैसे वह तुम पर प्रसन्न हैं।’ जिसी का यह ‘तुम’ संबोधन अत्यंत आत्मीय था। ‘अगर प्रसन्न न होते तो जिस मुद्रा में तुमने उनको देखा है, वह कभी न देख पाते। केवल मैं ही जानती हूं।’ ‘शास्ता प्रसन्न हैं! क्यों प्रसन्न हैं?’ मैंने जानना चाहा। ‘इस प्रसन्नता का कारण तुम स्वयं हो।’ जिसी बोली और मुस्करा उठी। ‘लगता है, शास्ता से तुमने मेरी सिफारिश की है। तुमने उनसे कान में गुपचुप-गुपचुप क्या कहा था?’ जिसी की नीली-नीली आंखें लजा गईं। वह होंठ काटती हुई बोली- ‘मैंने कोई सिफारिश नहीं की है। हां, पूछा अवश्य था शास्ता ने।’ ‘हां। तभी तुमने प्रशंसा कर दी होगी।’ ‘कोई प्रशंसा नहीं की मैंने। जो सत्य था, वही शास्ता को बतलाया। शास्ता सब कुछ जानते हैं। उनसे कोई झूठ बोल सकता है क्या?’ जिसी से बातचीत करने में अद्भुत सुख मिलता था। मैं इस सुख को भरपूर प्राप्त कर रहा था। जिसी अत्यंत शालीन और शिक्षित प्रतीत होती थी। उसका व्यवहार सज्जनता से परिपूर्ण और विनम्र था। रूप और लोक व्यवहार का ऐसा संगम कम ही देखने में आता है। जिसी कुछ हिचकिचा-सी रही थी। ‘बोलो न।’ मैंने कहा। ‘मैंने तुम्हारी परीक्षा ली और तुम खरे उतरे। यह मैंने शास्ता को बतला दिया।’ वह मुस्कराई।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App