परमात्मा से नाता

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

बाबा हरदेव

हम उनकी संतुष्टि नहीं कर पाएंगे और अंत में  हमें कहना पड़ेगा कि हम सौंदर्य बताने में असमर्थ हैं। हम हार जाएंगे इसके आगे क्योंकि इसने दृश्य को ही पकड़ा है और हमने अदृश्य की घोषणा की है, जो बतलाने से बाहर है। सौंदर्य बतलाया नहीं जा सकता है। वास्तव में सौंदर्य फूल में नहीं,बल्कि सौंदर्य फूल के अनुभव में हमारे भीतर जो बोध पैदा होता है, उस रस में है, इसलिए फूल को तोड़कर यदि कोई पता लगाने लगे, तो उसे रसायनिक पदार्थ तो अवश्य मिलेंगे परंतु सौंदर्य का वह रस नहीं मिलेगा अर्थात रंग आदि मिल जाएंगे परंतु सौंदर्य नहीं मिलेगा। अब वास्तविकता यह है कि फूलों में कोई सौंदर्य नहीं था, सौंदर्य तो जो हमें रस उपलब्ध हुआ है फूल को देखकर इसमें छिपा है। यह तो हमारा आंतरिक रस है,लेकिन फूल को तोड़कर भी देख लिया जाए, तो भी रस नहीं मिलेगा और यदि हम अपने भीतर देख लें तो भी यह रस देखने को नहीं मिलेगा। अब प्रश्न पैदा होता है कि फिर यह रस कहां है? रस अदृश्य है। यह मोतियों की माला के धागे की तरह भीतर मेतियों में छिपा हुआ है। अब मोती पकड़ में आ जाते हैं, जबकि धागे का हमें कोई पता नहीं चलता। अतः श्रीकृष्ण फरमाते हैं समस्त जलीय द्रव्यों में, समस्त पेय पदार्थों में वो जो तुम पीते हो,वह मैं नहीं हूं। वह जो तुम पीकर अनुभव करते हो वह मैं हूं रस हूं। अतः महात्माओं ने प्रेम रस, सौंदर्य रस, हरि रस, अमृत रस, नाम रस, ब्रह्म रस और आनंद रस के संबंध में अपने अनमोल अवचनों में इस तरह वर्णन किया है।

हरि रसु पीया जानिए कबहु न जाए खुमार। मैं मंता घूमत फिर नाही तन की सार।। (संत कबीर)

साध की संगत कर ले बंदे पीवेंगा तू अमृत रस। (संपूर्ण अवतार वाणी)

जिन चाखिआ तिसु आइआ सादु।

जिउ गूंगा मन माहि बिसमादु।।

अब जिन चाखिआ या पीया प्रेम रस, राम रस, हरि रस, नाम रस और अमृत रस में शब्द चखना या पीना अपने आप में बहुत रहस्य छिपाए हुए है, क्योंकि शिष्य को पूर्ण सतगुरु द्वारा सत्य को जानने के उपरांत इस सत्य को प्राणों में अंतरंग तक पहुंच जाने देना होता है,इसको केवल मस्तिष्क में नहीं भरना होगा है क्योंकि सत्य कोई अभिलाषा नहीं,कोई जिज्ञासा नहीं है। सत्य तो प्यास है अमृत रस की। अब प्यास पानी पीने से ही मिट सकती है। अतः प्यासे व्यक्ति के पास बैठकर  हम लाख पानी की चर्चा करते चले जाएं अथवा पानी का सारा विज्ञान समझा दें। प्यासा तो कहता ही चला जाएगा इसे जोर की प्यास लगी है,इसे केवल पानी ही चाहिए। इस पानी के संबंध में जानकारी की आवश्यकता नहीं। अतः ध्यान रहे कि जानने को पीना,जानने को ओढ़ना जरूरी है। अंत में कहना पड़ेगा कि  अगर मनुष्य अपना संबंध वक्त के साथ पूर्ण सद्गुरु की कृपा परमात्मा के साथ जोड़ लेता है, तो नाम रस का संगीत मनुष्य से बहने लगता है, प्रभु पेम का रस मनुष्य से बहने लग जाता है,क्योंकि परमात्मा रस रूप है।


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