फोरलेन बनाने आए थे पैचवर्क में उलझ गए

मटौर-शिमला मार्ग पर अजीब स्थिति में उलझी एनएचएआई

हमीरपुर – प्रदेश की सबसे महत्त्वाकांक्षी मटौर-शिमला फोरलेन परियोजना के निर्माण कार्य में ब्रेक लग जाने के बाद नेशनल हाई-वे अथॉरिटी ऑफ  इंडिया (एनएचएआई) को ऐसे काम में लगा दिया गया है, जो न शायद उसने पहले कभी किया होगा और न उसके बारे में सोचा होगा। हैरानी की बात है कि जिस एनएचएआई के पास फोरलेन जैसी बड़ी परियोजना का काम था, उससे अब सड़कों के गड्ढे भरवाए जा रहे हैं। जिन लोगों के घर, जमीनें और अन्य संपत्ति इस फोरलेन की जद में आई है, वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर हुआ तो क्या हुआ कि एकदम से ही सब शांत हो गए। हालांकि अब अथॉरिटी की प्रदेश सरकार के साथ 26 दिसंबर को मीटिंग होने की बात कही जा रही है। सबकी निगाहें इस मीटिंग पर हैं कि उसमें क्या निर्णय होता है। जानकारी के अनुसार जब से पांच पैकेज में प्रस्तावित मटौर-शिमला फोरलेन के निर्माण पर संकट के बादल मंडराए हैं, तब से नेशनल हाई-वे अथॉरिटी ऑफ  इंडिया के पास भी करने के लिए कुछ बड़ा नहीं बचा है। चूंकि अथॉरिटी को शिमला-धर्मशाला नेशनल हाई-वे की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया है, इसलिए अथॉरिटी के लोग खस्ताहाल इस राष्ट्रीय राजमार्ग में पड़े गड्ढों को भरते हुए नजर आ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि अथॉरिटी के लोग सड़क पर पड़े गड्ढों को इतनी शिद्दत के साथ भरवाते रहे कि  उन्हें एक-एक जगह की पहचान हो गई है कि कहां सड़क ज्यादा खराब थी और कहां हल्के-फुल्के गड्ढे थे। हालांकि एनएच के गड्ढे भरने का अथॉरिटी का यह मिशन लगाभग पूरा हो चुका है, लेकिन अब उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या करें। खैर 26 दिसंबर को प्रदेश सरकार के साथ प्रस्तावित मीटिंग पर अब भी एक उम्मीद बची है कि कुछ तो हरकत हो, अन्यथा आने वाले समय में एनएचएआई के खोले गए इतने बड़े-बड़े कार्यालयों पर संकट आ सकता है। यही नहीं, वहां सेवारत कई अस्थाई कर्मचारी बेरोजगार भी हो सकते हैं। हालांकि एनएचएआई के अधिकारियों ने इस बारे में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार किया। उनका केवल इतना कहना है कि देर-सवेर काम जरूर शुरू होगा। बता दें कि पांच पैकेज में प्रस्तावित इस फोरलेन कार थ्री कैपिटल ए सर्वे भी हो चुका है, जबकि पांचवें पैकेज ज्वालामुखी से मटौर के 60 प्रतिशत हिस्से का थ्री डी सर्वे भी हो चुका है। ऐसे में यह तो तय माना जा रहा है कि इन लोगों को तो सरकार को देर-सवेर मुआवजा देना ही पड़ेगा।

मार्च 2019 के बाद शुरू हो जाना था काम

मटौर-शिमला फोरलेन का काम मार्च 2019 के बाद पूरी प्रक्रिया संपन्न होने के बाद शुरू हो जाना था, लेकिन पहले केंद्रीय मंत्रालय ने इसमें ब्रेक लगाई और फिर प्रदेश सरकार ने फोरलेन को यहां की भौगोलिक स्थिति के अनुकूल नहीं बताया, जिसके बाद काम ठंडा पड़ता गया। यही नहीं, इस परियोजना का काम जितना सरका रहा है, उससे इसकी कॉस्टिंग भी बढ़ रही है। कारण बार-बार इस मार्ग की अलाइनेंट बदली जाती रही, जिससे खर्च बढ़ता गया।