बाघली के लोक साहित्य मेंविवाह गीतों में हास्य-व्यंग्य

By: Dec 8th, 2019 12:15 am

डा. राजन तनवर 

मो.-9418978683

परंपरा से लोक साहित्य उतना ही प्राचीन है जितना प्राचीन मानव का अस्तित्व। यदि जन संस्कृति का सच्चा सजीव रूप देखना हो तो उसके लिए लोक साहित्य से बेहतर विकल्प कहीं नहीं मिलता। लोक साहित्य में सरसता, सरलता एवं स्वाभाविकता के गुण सदैव विद्यमान रहते हैं। लोक साहित्य किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं रचा जाता, बल्कि इसे तो परंपरा से ही आम लोग गढ़ते आए हैं। वे सारी मौखिक अभिव्यक्तियां जो समाज की आत्मा को व्यक्त करने की क्षमता रखती हैं, लोक साहित्य की श्रेणी में आती हैं। लोक शब्द का सीधा सा अर्थ होता है -देखना। इससे यह अभिप्राय है कि जो हम अपने परिवेश में वास्तविक रूप में देखते हैं-लोक कहलाता है। हिमाचल प्रदेश के जनमानस में विवाह संस्कार का सोलह संस्कारों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संस्कार में लोक परंपरा के अनुसार बाघल क्षेत्र में भी इस मांगलिक अवसर पर हास्य-व्यंग्य गीत गाए जाते हैं। खुशी के अवसर पर विवाह रस्मों को पूर्ण करते ये हास्य-व्यंग्य गीत वातावरण को खुशियों से भर देते हैं। जब दूल्हे के साथ बाराती भोजन ग्रहण करने वधु पक्ष के घर के आंगन में पंक्तियों में बैठते हैं जिसे स्थानीय बोली में बैंठ कहा जाता है, तो प्रचलित परंपरा का जोश से निर्वाह करते कन्या पक्ष की महिलाएं समूह में किसी ऊंचे स्थान पर बैठकर लोकगीत के माध्यम से पतल बांधण गीत

गाती हैं-

बांधो जी बांधो

बरातिया री पातल बांधो    

बांधो जी बांधो

बरातिया री दाल बांधो   

बांधो जी बांधो

बरातिया रा भात बांधो    

बांधो जी बांधो

बरातिया रा मुंह बांधो।

इस पतल लोकगीत में व्यंग्यात्मक हास्य अंदाज में महिलाओं द्वारा बारातियों को खाना खाने से तब तक रोका जाता है जब तक बारातियों में से ही कोई उनके गीत के माध्यम से उनको उत्तर नहीं दे देता। इस गीत के उत्तर में एक बाराती लोकगीत के बोल बोलकर पूरे माहौल में खुशियां बिखेर देता है-

पहले सिमरू गुरू आपणा

दुजा श्री गणेश

तीजी सिमरू मां शारदा

कारज करे सफल हमेश

काटो बाडो खाण

खुल गई पातल

लगाओ खाण।

बारातियों के साथ भोजन करने बैठा लोक गायक अपने गीत के उत्तर में कहता है कि सर्वप्रथम मैं अपने गुरु का ध्यान करता हूं, तदोपरांत गणेश भगवान का ध्यान कर रहा हूं। तीसरे स्थान पर मैं मां शारदा का ध्यान करता हूं क्योंकि इन सभी की अपार कृपा से सभी कारज सफल होते हैं। बाराती जब प्रीतिभोज ग्रहण करना शुरू करते हैं उस समय भी

कन्या पक्ष की महिलाओं द्वारा हास्य गीत जारी रहते हैं-

बाड़ा नेठे बड़ोटा क्या बोलिए

इने बरातिए खाया झोटा क्या बोलिए

बाड़ा नेठे बड़ोटा क्या बोलिए………

इने लाड़े रे भाईए खाया झोटा

क्या बोलिए…

इस हास्य-व्यंग्य लोकगीत में बारातियों को झोटा अर्थात् भैंसा खाने के लिए कहा जाता है। इन हास्य-व्यंग्य गीतों का क्रम बारातियों के भोजन ग्रहण करने तक जारी रहता है। एक अन्य शीठणी गीत में इस तरह के बोल रहते हैं-

चटकणी नी मटकणी नी सरसो रा तेल

कुड़मा रीया मूछा बिचे मूची गई चड़ेल

चटकणी नी मटकणी नी सरसो रा तेल

लाड़े रे मामे रीया मूछा बीचे मूची गई चड़ेल

इसी भांति दूल्हे के नजदीकी संबंधियों, बारातियों में से एक-एक को संबोधित करके व्यंग्य किया जाता है तथा गीत की पंक्तियां बार-बार दोहराई जाती है। एक अन्य हास्य-व्यंग्य गीत भी इस अवसर पर गाया जाता है जो समाज में बहुत ही प्रचलित है। यह गीत सब्जी बांटने वाले को केंद्र में रखकर गाया जाता है-

वो सब्जी वाले़या पदीना हरा देई जाया

जे सब्जी वाले़या तेरे नानी नीएं

लाड़े रीया नानीयां लई जाया

वो सब्जी वाले़या पदीना हरा देई जाया…….

संक्षेप में कहें तो हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र की लोक संस्कृति में ऐसे ही वैवाहिक लोकगीतों के माध्यम से अवसर विशेष पर जनमानस द्वारा अपने हास उल्लास को व्यक्त किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र की बोली अलग हो सकती है, किंतु इन विवाह संबंधी गीतों में आनंद की सृष्टि एक समान होती है।


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