भूमिका लेखन

By: Dec 13th, 2019 12:05 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

चार दशक के लेखन की साधना करने के बाद मेरा मन लेखन से उलट गया था। अब तो दिली इच्छा यही रह गई थी कि कोई स्वनामधन्य लेखक-साहित्यकार मुझसे अपनी पुस्तक की भूमिका या उसका फ्लैप मैटर लिखवाए। इससे मेरी साधना पर पक्की मोहर भी लग जाए और इस तरह मैं बड़ा रचनाकार भी कहलवा सकूं। यह बात भी मैं ईश्वराधीन मानता हूं कि साठ वर्ष की इस उम्र में कोई बंदा आएगा और मुझसे अपनी नई पुस्तक की भूमिका लिखवाएगा। मैं जिन दिनों इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था, तभी अकस्मात एक लोकल अखबार के फीचर संपादक का फोन आया कि मैं उनके नए कविता संग्रह की भूमिका लिख दूं। अंधे को क्या चाहिए, दो नैन सो मिल गए। मैंने उससे कहा भी कि भूमिका वे किसी बडे़ लेखक से लिखवाएं, लेकिन उनका तर्क  था कि शहर में मुझसे बड़ा लेखक और कोई नहीं है। मैंने उन्हें अन्य लेखकों-विचारकों के नाम बताए कि फलां-फलां लोग मुनासिब हो सकते हैं, परंतु उनका आग्रह मुझसे ही भूमिका लिखवाने का रहा। वे बोले कि कल मैं पाण्डुलिपि लेकर आपके निवास पर हाजिर हो रहा हूं। मैंने फोन काट दिया तथा खुशी से पगलाया दूसरे दिन का बेताबी से इंतजार करने लगा। दूसरे दिन कोई घर की कॉलबेल बजाता और मैं दौड़कर गंभीरता ओढ़े दरवाजा खोलता, लेकिन उन्हें न पाकर मैं निराश हो जाता। वह दिन निकल गया और वे नहीं आए। मैंने यह सोचकर मन को धैर्य दिया कि कोई कार्य हो गया होगा, इसलिए वे नहीं आ सके। परंतु इंतजार में चार-पांच दिन गुजर जाने के बाद मन में पच्चीस तरह की आशंकाएं उमड़ने-घुमड़ने लगी। बड़ी आशंका यही सामने आ रही थी कि हो न हो मेरे नाम को लेकर किसी ने उनको बरगला दिया है। एक-दो बार तो इच्छा हुई कि फोन करके पूछूं कि वे क्यों नहीं आ सके? परंतु यह सोचकर कि मेरे पूछने से मेरी महत्ता को आंच आ सकती है। इसलिए चुप रहा। बड़ी मुश्किल से भूमिका लेखन का मिला यह अवसर छूट जाने का मन में बहुत रंज सा रहा। मन सोचता रहा कि किस ने उन्हें बहकाया होगा। बार-बार उन्हीं लोगों के चेहरे सामने आ जाते थे, जो मुझसे व मेरे रचना कर्म से ईर्ष्या रखते थे। जिस दिन भूमिका लेखन का प्रस्ताव आया था तो मैंने अंतरंगों से भी जिक्र कर दिया था कि यार फलां रचनाकार की मुझे भूमिका लिखनी है। शक की सूई उन भी जा टिकती थी। मन नहीं माना आठ-दस दिन बाद मैंने उन्हें फोन कर ही डाला और पूछा कि वे भूमिका लिखाने आने वाले थे, क्यों नहीं आ सके? वे भी साफ मन के थे, बोले -‘हुआ यूं कि मैं जब आपके यहां आ रहा था तो भयंकर जी मिल गए, वे बोले कि भूमिका ही लिखानी है और स्थापित होना है तो भूमिका अद्भुत जी से लिखानी चाहिए। मेरे भी बात जंच गई और मैं बीच रास्ते से ही लौट आया।’    


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App