मखौली राम दे बोल

By: Dec 8th, 2019 12:15 am

कुलदीप चंदेल

मो.-9318508700

मखौली राम गुदड़ी गांवे रा वीआईपी है। जिसा मैहफिला च या जिस फंकशने च से हाजर नी होंदा उथी सुनसान पई रैंदी। जिथी हाजर होई जांदा उथी चार चांद लगी जांदे। लोक मखौली राम दे बोल सुनने जो तरसदे रैंदे। तिसजो न्यालदे रैंदे। से आई जांदा तां रौंनका लगी जांदीआं। कल बी एडा ही होया। रामरखे रे घरे दयापन था। पंज सात लोक बैठी के कद्दू छिलया होर कट्या करदे थे। मखौली राम नी पुजुआ था। सब तीसरा रसता देखया करदे थे। तीसरी ही गल्लां करया करदे थे। कोई बोलदा,‘तीस वीआईपी जो फोन करो।’ दूजा बोलदा, ‘अप्पू औना यार तिनि। काजो लगानी सिरे पीड़।’ इतने च मखौली राम पूजी गया। तीसरे कन्ना च कुछ पेई गऊरा था। से ओंदा ही दूर जे बैठी गया। ‘नेड़े आओ। दूर कैं बैठाया?’ ईक सयाना बोल्या। ‘हाऊं खरा आ दूर ई। काजो लगानी तुसां रे सिरे पीड़।’ मखौलिए जबाका पटटया। ‘छड़ यरा परे। तेरे ओने ते तां दमारया म्हारी सिरे री पीड़ चली गई। चल उठ परे जो आओ।’ प्यारुये तीसरी बांह पकड़ी के उठाने दी कोशिश किती। ‘काजो अकडूरा मांह रे आरे साही? आई जा।’ से ही था तीनी जे सिरे पीड़ा वाला जबाका पटटया था। ‘आहो तूं सारयां दा पताम्बर हा। लाडे खा ते बी होर लाडिया खा ते बी होई जांदा।’ मखौलीया हासदे हासदे छेडया। ‘काजो देंदा चिंडूघ् आई के कद्दू छिल।’

‘चिंडू देने जो तू क्या जुआनस ही मेरी?’

हुन सारया जो हसी छूटी गई थी।

से ही मानू फेरी बोलया, ‘जुआनसा बी नी चलदीआं अजकल हर कुछ।’

‘आहो तेरा कसूर नी हा। ए जे सिरे पर टाटपलांगे रे फूल लाऊरे, बोलया करदे।

‘टाटपलांगा.हा.हा.हा।’ से मानू हस्या था।

हुन सब हसने लगे थे।

प्यारु चाई रा गलास लेई आया था। मखौली रामे जो देंदे बोलया, ‘यरा कश्मीर च धारा 370 हटाई ती। होया कुछ नी। महबूबा ओर फारूक बड़ा हल्ला पाऊरा था। हल्ला पाया तां अंदर होए। चुप रैंदे तां कुछ नी होना था।’ पयारू फेरी बोलया, ‘यरा उथी सब कुछ ठीक नी आ।’ ‘क्या ठीक नी है? राज इंया नी चलदा। मसटण्डया दी मसटंडी खतम करनी पौंदी। मुफता रा खांदे थे। इन्हां जो तां जैसलमेर री जेला च ठोकना चाहिंदा था।’ ‘से कै?’

‘कुछ तपस तां सेंहन्दे। इंया ही फिटकुरे।’

‘एडा नी बोल। डेमोक्रसी ही। सारयां जो बोलने रा हक हा। अपनी गल कोई बी रखी सकता।’

‘गल रखो। आग नी लगाओ।’

‘ठीक बोलया। मखौली ठीक बोलदा।’ इक सयाने जबाका पटटया।

कुछ देर सारे खामोश होई गए। क्या बोले, ईक दूजे खा देखने लगे थे।

मखौली राम दे बोल एडे ही होंदे।

इतने च दो कुडि़यां पैंट पाई के उनु बिच्चियां टपिपयां। सब तीनां जो देखने लगे थे। तां से चली गईयां तां प्यारुये गलाया, ‘इस फैशने बी अग लाई ती। हर कुछ पैनदिआं।’ ‘क्या हर कुछ पैनदियां। हिंदुस्तान है ए। पाकिस्तान नी हा। जो जिसदी मर्जी से पैनों। किसी पर इथी कोई पाबंदी नी ही। अजकले री कुडि़यां पढ़ी लिखी के एसपी, डीसी, डॉक्टर, प्रोफेसर बनाया करदियां।’ मखौली राम टूटी के पेया था।

‘आहो ए गल तां हाई। पर..।’

‘पर पुर कुछ नी। अपने दमागे री कालख बाहर निकालो। कुडि़यां चिडि़यां ठीक हियां। इन्हां जो कुछ नी होया करदा। बचारियां अपनी बाटा चलदियां। किसते क्या लेदियां?’

‘तू तां आरा मखौली पीछे ही पेई गया।’ पयारू था।

कोई होर गल सुना। इक स्याणा बोलया।

‘क्या सुनना, बोलो।’

‘चिदम्बरम अंदर करी तुरा। मोदी-शाह दी जोड़ी बड़ी खतरनाक ही।’ प्यारुये टॉपिक बदलाया। ‘अपनियां करतुतां हिआं। से जे बीजुरा से ही नी कटना। कनून अपना कम करया करदा। मोदी शाह क्या करना?’

‘एडा नी होंदा यरा। ए तां बदले री कारवाई ही।’

‘कादी बदले री? सब कुछ खाई ता। सब्र ही नी रेहा। ऐ सफाई तां होई के रैहनी।’

‘तू मिलुरा।’ ‘किसने?’

‘मोदी शाह ने।’ पयारू हास्या था।

सारयां जो हासी छूटी गई। तिन्हां जो हासदया देखी के अंदरखा ते बसन्ती दादी आई। तिसा ओदे ही पुछ्या, ‘काजो हास्या करदे?’

‘दादी, ऐ मखौली नी मनया करदा।’ इक आदमी बोलया।

‘मखौली कुछ नी बोलदा। तुसें छेडदे। इनीं जवाब तां देना ही हा।’ ‘देखया प्यारुआ। दादी बी तुसां जो समझदी।’ मखौली बोलया। दादी चली गई थी। हुन सारे मखौलीया खा देखया करदे थे। पता नी इनीं क्या बोलणा? ‘होर सुणा कुछ। आजकल बड़ा बरसाना होया करदा। उपरे ओला  हटया ही नी करदा।’ पयारू होले जे बोलया। मखौली सारयां जो घुरी के बोलया, ‘जे बरसना घट हो तां बी तुसां जो तकलीफ। जे ज्यादा बहरी जाओ तां बी तकलीफ।।’

‘तकलीफ  तीजो होंगी।’

‘मिंजो कादी तकलीफ? अपनेराम खुश है। ज्यादा बरसंगा तां पानी रा सोका तां नी होंगा। तौंदिआ जो सब ठीक रैंगा।’

‘यरा बिहार डूबी गया। मदानी इलाकयां च बुरा हाल हा।’

मखौली हास्या। हासदे हासदे बोलया, ‘असें पहाड़ी मानू है। बरखा होंदी तां पानी रूडी के नालायां खड्डा च हिए होई के सीधा दरयाओये समुद्रे च पूजदा जाई के। असां जो कोई तकलीफ नी ही।’

‘तकलीफ असां जो बी नी।’

‘बस तां फेरी गल खत्म।’

मखौली फेरी बोलया, ‘अच्छा ए दस्सा। कद्दू अमला बनना या खट्टा।’

‘तैं केडा खाना?’ इक सयाने पूछया।

‘से जे तुसें खुलाई देना।’

‘खुलाई देंगे। खट्टा बी अमला होर मीठा बी।’ पयारू था।

‘तुसें क्या खुलाना बोटिये खुलाना। तुसें तां गपोडशंख हे। गपोडशंख गपोडशंख ही होंदे। मखोलिए तिन्हा जो खरी खरी सुनाई थी। सब इक दूजे जो देखने परखने लगे। कुन मखोलिए रा जवाब देंगा। किसी ते कुछ नी बोली होया। सब चुप थे। ‘क्या कुरया करदे?’ देओ कोई तुरक। मखोलिए से छेड़े थे। तीनां सारयां जो हांसी छुटी गई। कोई कुछ नी बोलया। ‘लै बीरबल आई गया। इन्ही अपु देना तीजो जवाब।’ पयारू हासदे हासदे बोलया।

‘बीरबल।’ मखौली हस्या।

‘क्या होया वीआईपी साब?’ बीरबल बोलया।

‘क्या होना? तुसें मास्टर सरकारी। अपने बालकां जो पढ़दें प्राईवेट स्कूलां च।’

‘फेरी की होया?’

‘कुछ नी। क्या होना, ए मखौली राम दे बोल हे। बुरा नी मनना। तुसां जो अपने पर तबार नी हा।’ सब हासने लगे।


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