मां अन्नपूर्णा जयंती

By: Dec 7th, 2019 12:21 am

ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में एक बार जब पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई थी, तब मां पार्वती (गौरी) ने अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा के रूप में अवतरित हो पृथ्वी लोक पर अन्न उपलब्ध कराकर समस्त मानव जाति की रक्षा की थी। जिस दिन मां अन्नपूर्णा की उत्पत्ति हुई, वह मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा थी। इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है…

अन्नपूर्णा जयंती भारतीय संस्कृति में मान्य मुख्य जयंतियों में से एक है। हिंदू धर्म में इस जयंती का विशेष महत्त्व है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में एक बार जब पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई थी, तब मां पार्वती (गौरी) ने अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा के रूप में अवतरित हो पृथ्वी लोक पर अन्न उपलब्ध कराकर समस्त मानव जाति की रक्षा की थी। जिस दिन मां अन्नपूर्णा की उत्पत्ति हुई, वह मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा थी। इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है।

इस दिन त्रिपुर भैरवी जयंती भी मनाई जाती है। अन्नपूर्णा जयंती के दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है और इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्त्व है। हिंदू धर्म में स्त्रियों को भी अन्नपूर्णा माना गया है। अतः इस पूजा में स्त्रियों का विशेष महत्त्व होता है। इसलिए अन्नपूर्णा जयंती के दिन स्त्रियों द्वारा ही गैस और चूल्हे पर चावल और मिष्ठान का भोग लगाने के साथ ही एक दीपक जलाया जाता है ताकि घर में कभी भंडार खाली न रहे। अतः इस दिन घर में साफ-सफाई रखनी चाहिए। खास तौर से रसोईघर और अन्न रखने के स्थान को साफ करना चाहिए। तत्पश्चात गंगाजल छिड़क कर घर को शुद्ध करना चाहिए और चूल्हे की पूजा करनी चाहिए। अन्नपूर्णा जयंती के दिन माता पार्वती तथा शिव जी की पूजा-अर्चना करनी चहिए। माता अन्नपूर्णा की पूजा करने से घर में कभी अन्न और जल की कमी नहीं होती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब पृथ्वी लोक पर अन्न और जल समाप्त होने लगा तो जनमानस में हाहाकार मच गया। ऋषियों और मुनियों ने भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु को इस संकट से अवगत कराया। तत्पश्चात ब्रह्मा जी और विष्णु जी समस्त ऋषि और मुनियों के साथ कैलाश पहुंचे। ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से कहा, प्रभु पृथ्वी पर अन्न और जल की कमी हो गई है। आप ही कुछ कीजिए और इस संकट से सबकी रक्षा कीजिए। भगवान शिव ने देवताओं को आश्वासन दिया कि सब कुछ यथावत हो जाएगा, बस वे शांति बनाए रखें। तत्पश्चात भगवान शिव ने पृथ्वी का भ्रमण किया। उसके उपरांत माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप ग्रहण किया। भगवान शिव ने भिक्षु का रूप ग्रहण करके माता अन्नपूर्णा से भिक्षा ली और पृथ्वीवासियों में अन्न-जल वितरित किया। इस प्रकार सभी प्राणियों को अन्न और जल की प्राप्ति हुई। सभी हर्ष के साथ माता अन्नपूर्णा की जय-जयकार करने लगे। तभी से प्रति वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है और माता अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। अन्नपूर्णा जयंती अन्न के महत्त्व का ज्ञान कराती है और यह संदेश देती है कि कभी भी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए और न ही उसे व्यर्थ करना चाहिए। जितनी जरूरत हो उतना ही भोजन पकाएं ताकि अन्न बर्बाद न हो।  अन्नदाता माने जाने वाले किसान भी अच्छी फसल के लिए अन्नपूर्णा जयंती पर अन्नपूर्णा देवी की पूजा करते हैं।

 


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