मुखौटों में जीती दोहरी जिंदगी

By: Dec 5th, 2019 12:02 am

सुरेश सेठ

उन्होंने भय्या-भय्या कह कर मुझे गले से लगा लिया। हो सकता है वह मेरे चरण छूने का बहाना करते हुए मेरे घुटने ही हिला दें, जो पहले ही आर्थराइटस की पीड़ा ङोलने लगे हैं। वह मुझे माया, मोह, ममता छोड़ कर एक रंग में रंग जाने का संदेश देने आए थे। मैं समझ नहीं पाया कि उन्होंने मुझे ही इस संदेश के लिए क्यों चुना, क्या मैं उन्हें बहुत मायावी लगने लगा हूं? जी नहीं, वह खुल जा सिम-सिम वाला मायावी नहीं, जिसके एक इशारे पर सपनों का संसार खुल जाता था, जहां इंद्र सभा जैसा माहौल होता था, षोढ़षियां नाच-नाच कर उनका दिल बहलाती थीं, और उनके आंगन में सोमरस का दरिया बहता था। इसी दरिया में नहाने के बाद वह मुझे त्याग का महत्त्व समझा रहे थे। ऊपर वाले के साथ सूरत ध्यान लगाने की प्रेरणा दे रहे थे। मैं जानता हूं सूरत तो उनकी भी सदा एक ओर ही लगी रही। जैसे भी हो अपने लिए अधिक से अधिक नोट बटोर लेना। जब तिजोरी भर गई तो कुर्सियों की तलाश में निकले। रास्ता लंबा है। निगम की कुर्सी से हो कर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जाता है। वह न भी मिले तो मंत्री जी की कुर्सी से ही संतोष  कर लेंगे। ‘भई, हम छोटे आदमी हैं। कभी अपनी क्रूर धरती का दामन नहीं छोड़ा। मंत्री की कुर्सी को ही गनीमत जान लिया। क्योंकि इसे अपने बेटे, नाती-पोतों के लिए सुरक्षित करके जाना अधिक सहज होता है।’ हमने देखा अपनी धरती का दामन न छोड़ने का अर्थ उनकी भाषा में अपनी कुर्सी का दामन न छोड़ना था। तब भी जब श्मशानघाट उन्हें आमंत्रण देने लगे, तो वे इसे अपने वंशजों के लिए सुरक्षित कर दे। नेता का बेटा नेता होता है, और घपलेबाज का बेटा घपलेबाज’। बचपन से ही उन्हें यह सब सीखने का अवसर मिला है। इसी से तो उन्हें एक साथ दो चेहरे रखने का प्रशिक्षण मिल गया। एक चेहरा गरीब हितैषी, उदारमना, दूसरों की जिंदगियां सुधार देने का आभास देने वाला। दूसरा, वह जो नशे में मदमस्त हो पंचतारा डिस्को के बाहर पिस्तौल निकाल ले या अपने स्वामी नेता को खुश करने के लिए, सैकड़ों की भीड़ समेटने वाले मैदान में हजारों की भीड़ जुटा दे। बाद में भगदड़ के कारण चंद धूल मिट्टी जैसे लोग अपनी जान से चले जाएं, तो मीडिया के कैमरों के समक्ष आंसू बहाते हुए अपनी बदइंतजामी का ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ने लगे। हमने तो डिस्को के बाहर हथियार लहराने वाले नेता जी को भी कमीज बदल कर सज्जनता से हाथ जोड़ते हुए देखा है। बाद में वह कैमरामैन से पूछने लगे, ‘जनाब, मैं मासूम तो लगा रहा था न?’ हुजूर, यह मंच भी आदमी का कैसा काय-कल्प कर देता है। एक दुराचारी, मंच पर चढ़ते ही समाज सुधारक बन जाता है, और लोगों को अपना आचार-व्यवहार बदलने की प्रेरणा देता है। हम तो कहते हैं, कि मंच पर करिश्मा दिखाने की यह कला ही बंदे को एक साथ दो चेहरे रखने का प्रशिक्षण देती है। एक वह चेहरा, जो देश के गरीबों की दुर्दशा पर आठ-आठ आंसू बहाता है। उन्हें अच्छे दिन ला कर देने का वादा करता है। अपनी युग बदलू नीतियों से हर खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख रुपए देने का वादा करता है। 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App