रामटेक मंदिर

By: Dec 14th, 2019 12:23 am

राम के जीवन का एक बड़ा हिस्सा सांसारिक कल्याण में बीता, जिनमें वह वन-वन भटकते हुए मनुष्यों का जीवन सुरक्षित बनाने के लिए असुरों का संहार करते रहे। वन में भटकते हुए भगवान राम देवी सीता और लक्ष्मणजी के साथ जिन स्थानों से गुजरे उनमें से कई स्थान आज भी उनकी यात्रा की गवाही देते हैं, इनमें से ही एक स्थान है नागपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित रामटेक किला। आइए जानें इस किले का क्या महत्त्व है। देवी सीता के लिए भी यह स्थान बेहद महत्त्वपूर्ण है।

इसलिए यह स्थान कहलाता है रामटेक-

रामटेक किले के बारे में जानने से पहले आइए जानते हैं इस जगह के नाम के विषय में। कहते हैं प्रभु श्रीराम ने वनगमन के दौरान इस जगह पर चार माह व्यतीत किए थे। यानी कि वह टिके थे,तो इसीलिए इस जगह का नाम रामटेक पड़ गया। इसके अलावा इसी स्थान पर माता सीता ने पहली रसोई बनाई थी और सभी स्थानीय ऋषियों को भोजन कराया था। इस स्थान का जिक्र पद्मपुराण में भी मिलता है।

कमाल का मंदिर, यह खूबी –

रामटेक किले के निर्माण में किसी भी तरह के रेत का प्रयोग नहीं किया गया है। इसे पत्थरों से बनाया गया है। एक के ऊपर एक पत्थर रखकर इस मंदिर को बनाया गया है। यह बात पढ़कर आपको हैरानी जरूर होगी,लेकिन यही सत्य है। साथ ही यह भी चौंकाने वाली बात है कि सदियां बीत गई हैं, लेकिन इस किले का एक भी पत्थर टस से मस नहीं हुआ। स्थानीय लोग इसे श्रीराम की कृपा मानते हैं।

मंदिर का अद्भुत है तालाब

रामटेक मंदिर की संरचना ही नहीं, बल्कि इसी परिसर में स्थापित तालाब भी अद्भुत है। मान्यता है कि इस तालाब में जल कभी कम या कभी ज्यादा नहीं होता। इसमें जल स्तर हमेशा ही सामान्य बना रहता है। तलाब की यह खूबी लोगों को हैरत में डाल देती है।

श्रीराम का मिलता है अक्स –

रामटेक मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है। इसकी भव्यता के चलते ही इसे मंदिर की बजाय किला कहा जाता है। रामटेक का यह किला पहाड़ी पर बना है, इसलिए इसे गढ़ मंदिर भी कहते हैं। मान्यता है कि यहां जब भी बिजली चमकती है, तो मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है। जिसमें श्रीराम का अक्स दिखाई देता है।

ऋषि अगस्त्य से मिले थे श्रीराम यहां

रामटेक में मर्यादा पुरुषोत्तम राम महर्षि अगस्त्य से मिले थे, उनसे शस्त्र ज्ञान लिया था। कहा जाता है कि रामटेक में जब श्रीराम ने हर जगह हड्डियों का ढेर देखा, तो उन्होंने ऋषि से इस बारे में पूछा। तब उन्होंने बताया कि यह हड्डियां उन ऋषियों की हैं, जो यहां पर यज्ञ-पूजन करते थे। राक्षस उनके यज्ञ में विघ्न डालते थे। इसके बाद ही श्रीराम ने यह प्रतिज्ञा ली कि वह सभी राक्षसों का अंत करेंगे।

रावण के अत्याचारों की दी जानकारी

ऋषि अगस्त्य रावण के चचेरे भाई थे। उन्होंने रामटेक में ही श्रीराम को रावण के अत्याचारों के बारे में बताया। साथ ही रावण के शस्त्रज्ञान की भी जानकारी दी। इसके बाद भगवान राम को ब्रह्मास्त्र भी प्रदान किया। यह वही ब्रह्मास्त्र था, जिससे श्रीराम ने रावण का वध किया था।

महाकवि ने की महाकाव्य की रचना-

रामटेक ही वह स्थान है, जहां पर महाकवि कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत की रचना की थी। इसमें रामटेक का जिक्र रामगिरि शब्द के रूप में मिलता है। यहां पर रामगिरि से आशय उस पत्थर से है, जहां पर श्रीराम ने निवास किया था। कालांतर में इसका नाम रामटेक हो गया।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App