रैफरल अस्पताल बना नेरचौक मेडिकल हास्पिटल

नेरचौक – मुख्यमंत्री के गृह जिला का एकमात्र मेडिकल कालेज एवं अस्पताल लोगों की उम्मीदों के अनुरूप नहीं उतर पाया है। मात्र डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में ही स्वास्थ्य संस्थान की समस्त सेवाएं चरमरा गई हैं। अस्पताल शुरू होने के समय रोजाना जहां 1200 से 1500 की ओपीडी हुआ करती थी, वह अब घटकर मात्र 700 से 800 पहुंच गई है। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अस्पताल अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है।  क्षेत्रवासियों का कहना है कि रत्ती हास्पिटल या अन्य जोनल हास्पिटल से जिस तरह से मरीजों को पूर्व में रैफर किया जाता था, वैसे ही अब नेरचौक स्थित श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज एवं अस्पताल से भी किया जा रहा है। जिला मंडी और साथ लगते जिलों की जनता में उम्मीद थी कि ऊंचे स्तर का यह स्वास्थ्य संस्थान होने  पर गंभीर बीमारियों का इलाज यहां आसानी से होगा, मगर एक्सीडेंट, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक आदि सभी केस शिमला या चंडीगढ़ रैफर किए जा रहे हैं। शिमला और चंडीगढ़ का पांच-छह घंटे का सफर तय करते समय गंभीर मरीज दम तोड़ रहे हैं।

प्रिंसीपल-मेडिकल सुपरिंटेंडेंट दे रहे ड्यूटी

श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज के एमर्जेंसी विभाग में चिकित्सकों की कमी के चलते कालेज प्रिंसीपल और मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को ही सेवाएं देनी पड़ रही हैं, जबकि एमर्जेंसी डिपार्टमेंट में चिकित्सकों के छह पद स्वीकृत हैं, लेकिन उनमें से दो चिकित्सक ही सेवाएं दे रहे हैं।

नहीं हो रहे एमआरआई-सीटी स्कैन       

डेढ़ वर्ष पूर्व शुरू हुए मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में अभी तक एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कवाने में सरकार और अस्पताल प्रबंधन असफल रहा है। जिला मंडी के अलावा साथ लगते जिलों के अधिकतर मरीज अपना इलाज यहां करवाना चाहते हैं। अस्पताल में स्थापित नई नवेली अल्ट्रासाउंड की मशीनों में खराबी आ जाने और स्टाफ  की कमी के चलते जनता को डेढ़ दो महीने बाद की डेट अल्ट्रासाउंड जैसे आसान से टेस्ट के लिए दी जा रही है, जिस कारण लोग निजी लैब में अल्ट्रासाउंड करवाने को मजबूर हैं। लोगों में रोष है मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में जब मूलभूत सुविधाएं ही सुचारू रूप से उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं तो इतने बड़े संस्थान को खोला ही क्यों गया है।