लाभप्रद है विनिवेश की डगर

By: Dec 9th, 2019 12:05 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

सरकार के द्वारा विनिवेश के लिए चयनित किए गए उपक्रमों के लिए लेन-देन और कानूनी सलाहकार नियुक्त करने की प्रक्रिया आगे बढ़ी है। अधिकांश अर्थविशेषज्ञों का मानना है कि इस समय जब अर्थव्यवस्था में सुस्ती का माहौल है और सरकार के राजस्व वसूली के लक्ष्य के समक्ष मुश्किलें हैं, ऐसे में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश से निजी क्षेत्र के निवेशकों से नई तकनीक, नए विचार और नई दिशा के लाभ होंगे…

हाल ही में दो दिसंबर को केंद्र सरकार के निवेश एवं सार्वजनिक उद्यम विभाग ने कहा है कि सरकार विनिवेश की डगर पर आगे बढ़ रही है। सरकार के द्वारा विनिवेश के लिए चयनित किए गए उपक्रमों के लिए लेन-देन और कानूनी सलाहकार नियुक्त करने की प्रक्रिया आगे बढ़ी है। अधिकांश अर्थविशेषज्ञों का मानना है कि इस समय जब अर्थव्यवस्था में सुस्ती का माहौल है और सरकार के राजस्व वसूली के लक्ष्य के समक्ष मुश्किलें हैं, ऐसे में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश से जहां निजी क्षेत्र के निवेशकों से नई तकनीक, नए विचार और नई दिशा के लाभ होंगे, वहीं विनिवेश संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद होगा। गौरतलब है कि 20 नवंबर को केंद्र सरकार ने देश में बढ़ती हुई आर्थिक सुस्ती को रोकने और राजकोषीय घाटे की चुनौती के मद्देनजर विनिवेश ‘डिस्इन्वेस्मेंट’ यानी निजीकरण का सबसे बड़ा कदम उठाया है।

विनिवेश के लिए किए नए-नए फैसले के अनुसार सरकार भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड ‘बीपीसीएल’, कंटेनर कारपोरेशन ऑफ इंडिया ‘कॉनकॉर’, टिहरी हाइड्रो डिवलपमेंट कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड ‘टीएचडीसीआईएल’, शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया ‘एससीआई’ और नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कार्पोरेशन लिमिटेड ‘नीपको’ में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी। सरकार के द्वारा लिया गया यह निर्णय भी महत्त्वपूर्ण है कि अब वह चुनिंदा सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम करेगी।  उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 में 1.05 लाख करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है। सरकार को चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से अक्तूबर 2019 तक 17,400 करोड़ रुपए प्राप्त हुए। ऐसे में 20 नवंबर को सरकार ने 5 बड़े सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश का जो बड़ा कदम उठाया है उससे वर्ष 2019-20 के लिए जो विनिवेश लक्ष्य रखा गया है, वह पूरा होने की संभावना रहेगी।

गौरतलब है कि सार्वजनिक यानी सरकारी क्षेत्र की कंपनियों अथवा उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी को बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है। दरअसल इस प्रक्रिया के तहत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों या उपक्रमों की कुछ हिस्सेदारी को शेयर या बांड के रूप में बेचती है। इस प्रक्रिया के तहत मिलने वाले धन का उपयोग सरकार या तो उस कंपनी को बेहतर बनाने में करती है या किसी अन्य दूसरी योजनाओं में इसको लगाती है। किसी कंपनी के विनिवेश का मकसद कंपनी का प्रबंधन बेहतर बनाना होता है। सार्वजनिक क्षेत्र में करीब एक दर्जन ऐसे उपक्रम हैं जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी और 99 फीसदी के बीच है। 

दरअसल विनिवेश की प्रक्रिया और इसकी शुरुआत साल 1991 में नई आर्थिक नीति को लागू किए जाने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी घटाने अर्थात विनिवेश की शुरुआत की गई। इसकी वजह ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का लंबे समय से घाटे में जाना रहा है। क्योंकि सरकार अपने दम पर इन उपक्रमों पर किया जाने वाला खर्च वहन नहीं कर सकती। दरअसल घाटे में जा रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की वजह से बजट घाटा बढ़ता है और जिसका सीधा बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है। मोदी सरकार ने अपने आने के बाद कोई दस वर्ष से रुके हुए विनिवेश कार्यक्रम को फिर से आगे बढ़ाया। राजकोषीय घाटे को कम करने और सरकारी निवेश को बढ़ाने और बिना कर्ज के पूंजी जुटाने के लिए विनिवेश कार्यक्रम को रफ्तार देना शुरू किया।

वस्तुतः विनिवेश के जरिए सरकार घाटे वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी कम करना चाहती है, ताकि उनके घाटे को कम करके उनको फायदे में लाया जा सके। साथ ही बजटीय घाटे को भी कम किया जा सके और इससे मिलने वाले धन का उपयोग देश के विकास में किया जा सके। मौजूदा विनिवेश नीति के अनुसार सरकार इस फंड की रकम में से लगभग 75 फीसदी आमदनी का इस्तेमाल सामाजिक क्षेत्र और विकास के कामों में लगाती है। इस समय भारत का राजस्व घाटा ‘रेवेन्यू डेफिसिट’ और राजकोषीय घाटा ‘फिजिकल डेफिसिट’ तेजी से बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। वित्तीय वर्ष में राजस्व प्राप्ति और राजस्व व्यय के अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं। जबकि वित्तीय वर्ष के राजस्व घाटे के साथ जब सरकार की उधार तथा अन्य देयताएं जोड़ देते हैं, तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं।

बढ़ते हुए राजस्व और राजकोषीय घाटे ने भारत की क्रेडिट रेटिंग की चिंताएं बढ़ाई हैं। आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल से अक्तूबर 2019 तक बजट अनुमान के 102 फीसदी तक पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2019-20 में अप्रैल से अक्तूबर 2019 की अवधि में राजकोषीय घाटा 7.2 लाख  करोड़ रुपए रहा। यह चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान 7.04 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। ऐसे में बढ़ते हुए घाटे के कारण निवेश और कारोबार की जो नई चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं, उनके कारण विनिवेश महत्त्वपूर्ण हो गया है। हाल ही में वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर सर्विस ने भारत की क्रेडिट रेटिंग ‘स्थिर’ से घटाकर ‘ऋणात्मक’ ‘निगेटिव’ कर दी है। रेटिंग घटाने के पीछे मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती जारी रहने, ग्रामीण परिवारों पर वित्तीय दबाव, रोजगार सृजन कम होने और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में नकदी संकट का हवाला दिया है।

इसमें कोई दोमत नहीं है कि भारत में कारपोरेट टैक्स सहित अन्य करों में लगातार छूट दिए जाने तथा कर संग्रह में कमी के कारण चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में सरकार का राजस्व घाटा बढ़ेगा तथा सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद ‘जीडीपी’ के 3.3 फीसदी के निर्धारित लक्ष्य से बढ़कर 3.7 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है। ऐसे में सरकार के लिए विनिवेश का फैसला इसलिए जरूरी हो गया था क्योंकि सरकार ने पूरे वित्त वर्ष 2019-20 के लिए कर संग्रह का लक्ष्य 24.6 लाख करोड़ रुपए रखा है। निश्चित रूप से 20 नवंबर को सरकार ने विनिवेश की प्रक्रिया को आगे ले जाने तथा नीतिगत निवेश को गति प्रदान करने का प्रशंसनीय कदम उठाया है।

निश्चित रूप से विनिवेश के बड़े कदम से सरकार को पर्याप्त मात्रा में कर्जमुक्त पूंजी प्राप्त हो सकेगी। इससे राजकोषीय घाटा नियंत्रित होने की संभावना रहेगी। राजकोषीय घाटा वर्ष 2019-20 के बजट के तहत निर्धारित किए गए जीडीपी के 3.3 फीसदी तक सीमित रखा जा सकेगा। ऐसा होने पर वित्तीय स्थिरता दिखाई देगी। आर्थिक सुस्ती नियंत्रित होगी। विकास दर बढ़ेगी, देश में विदेशी निवेश में वृद्धि होगी तथा रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। यह जरूरी है कि 31 मार्च 2019 तक विनिवेश के 1.05 लाख करोड़ रुपए के रिकार्ड लक्ष्य को पाने के लिए विनिवेश लक्ष्य और बेहतर मूल्य हासिल करने के बीच उपयुक्त संतुलन बनाना होगा।   


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