शहनाज की सालगिरह पर आए नासिर

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है अठतीसवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

अपने सपनों के राजकुमार के साथ, उस दिन को ज्यादा खास बनाने की उनकी भी अपेक्षाएं थीं। ‘तो वह तुम्हारी सालगिरह पर क्या करने वाले हैं?’ उनकी सहेलियां उत्साह और कुछ जलन से पूछतीं। उन्होंने अपनी सहेलियों को ब्रंच पर बुलाया था। चूंकि वह उनके होने वाले शौहर से मिलने पर भी जोर दे रही थीं, तो शहनाज ने अपनी मां से पूछा कि क्या वह नासिर को बुला सकती हैं। चूंकि निकाह में मात्र एक ही महीना रह गया था, तो सईदा बेगम ने अनिच्छा से हामी भरी ः ‘ठीक है, लेकिन वह ज्यादा देर नहीं रुकेंगे, हद से हद पांच मिनट।’ नासिर शहनाज की सालगिरह से एक दिन पहले आ गए, उनके बैग में एक अंगूठी रखी हुई थी। सोने की अंगूठी, जिसमें रूबी से बने दो हाथ, आपस में मिलकर एक दिल की शक्ल अख्तियार कर रहे थे। दिल पर ‘कुक्कू’ लिखा हुआ था, उनके शुरुआती संबोधनों में से एक। बचपन में मैं अक्सर उस अंगूठी को हाथ में लेकर, अपने मम्मी-पापा के प्यार को हैरानी से देखा करती थी। आज तक भी, वह मम्मी के कीमती सामानों में शुमार है। उस रात, जब पूरा परिवार सो गया, तो नासिर चुपके से उठकर बगीचे में आ गए, और स्टाफ के कुछ मेंबर के साथ मिलकर शहनाज को सरप्राइज देने की योजना बनाने लगे। स्टाफ मेंबर जज के अनुशासित घर में कुछ रोमांचक करने पर बेहद खुश थे। उन्होंने मिलकर कागज की रंग-बिरंगी झंडियों से बगीचे में एक शामियाना तैयार किया। लाल, नीले, हरे, पीले रंग चांदनी में झिलमिला रहे थे। काम हो जाने के बाद उन्होंने खड़े होकर सजावट को देखा, तो उनके संतुष्ट चेहरे पर एक मुस्कान थी। वह सुबह का इंतजार नहीं कर पा रहे थे, जब शहनाज उठकर उनकी मेहनत को देखतीं-रंगों का खूबसूरत मिलन। अगले दिन शहनाज जल्दी उठ गईं, वह उस खास दिन का एक भी पल जाया नहीं करना चाहती थीं। ‘मेरे पास तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है’, नासिर ने उन्हें बगीचे में ले जाते हुए कहा। उन्होंने देखा और किसी बच्चे की तरह, जो कि वह थी हीं, रोने लगीं। नासिर के चेहरे का रंग उड़ गया, दरअसल हुआ यह था कि रात में गिरने वाली ओस की वजह से कागजों की झंडियां भीगकर गल गई थीं, और रंग बह जाने के कारण वे एकदम फीकी दिख रही थीं। ‘ओ माई गॉड, यह क्या हो गया?’ वह बोले। उनकी टीम के साथी लाचारी से वहां खड़े थे। ‘बाबा, पिछली रात को बहुत ठंड और ओस थी, तो कागज बिल्कुल तर हो गए।’ ‘मेरी सहेलियां क्या कहेंगी? वे सब मुझ पर हंसेंगी’, शहनाज रो रही थीं, वह जानती थीं कि थोड़ी ही देर में वे सब वहां पहुंच जाएंगी। ‘मैं फिर से कोशिश करके सब ठीक कर देता हूं’, परेशान नासिर ने प्रस्ताव रखा।                  


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