श्रम के प्रति उपेक्षा

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

श्रम के प्रति उपेक्षा की वृत्ति आज हममें दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जिससे हमारे जीवन में अनेकों विषमताएं और समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। जीवन में असंतुलन पैदा हो गया है। तथाकथित पढ़े-लिखे, शिक्षित कहे जाने वाले वर्ग में तो यह वृत्ति और भी बढ़ती जा रही है। ऐसे लोग श्रम करना अपना अपमान समझते हैं। श्रम के प्रति उपेक्षा के भाव से अभावग्रस्तता, गरीबी को पोषण मिलता है। क्योंकि किसी भी क्षेत्र में उपार्जन उत्पादन का आधार श्रम ही है। जिस समाज में श्रम के प्रति दिलचस्पी न होगी, वहां उपार्जन कैसे बढ़ेगा और इसके फलस्वरूप अभावग्रस्तता का निवारण कैसे होगा? श्रम न करने से शारीरिक प्रणाली असंतुलित अस्त-व्यस्त अक्षम बन जाती है और अस्वस्थता की समस्या उठ खड़ी होती है। श्रम के अभाव में मनुष्य जीवन के सहज स्वाभाविक संतोष, सुख, मानसिक शांति से वंचित रहता है क्योंकि श्रम जीवन का धर्म है स्वभाव है। श्रम और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है। श्रम के साथ जीवन है और जीवन के साथ श्रम। दोनों में से एक को अलग कर देने पर किसी का भी अस्तित्व शेष नहीं रहेगा। किसी भी उपलब्धि का आधार श्रम है। बिना श्रम के किसी भी क्षेत्र में स्थायी और पूर्ण सफलता अर्जित कर लेना असंभव है। उद्यम करने से ही कार्यों की सिद्धि प्राप्त होती है। इच्छा करने या सोचते-विचारते रहने से नहीं। सोते हुए सिंह के मुंह में पशुगण अपने आप ही नहीं चले जाते। इसमें कोई संदेह नहीं कि बिना उद्यम किए, श्रम किए और बात तो दूर है पेट की तृप्ति करना ही कठिन होता है। श्रम से खाद्य पदार्थ उपार्जन करने होंगे फिर उन्हें पकाना पड़ेगा और हाथों से मुंह तक पहुंचाना पड़ेगा तभी क्षुधा शांत हो सकेगी। इसी तरह किसी भी कार्य को श्रम कर मूल्य चुकाए बिना उसकी सफलता प्राप्त न हो सकेगी। संसार में जो कुछ भी ऐश्वर्य, संपदाएं, वैभव, उत्तम पदार्थ हैं केवल श्रम की ही देन है। श्रम में वह आकर्षण है कि विभिन्न पदार्थ संपदाएं उसके पीछे-पीछे खिंचे चले आते हैं। श्रम मानव को परमात्मा द्वारा दी गई सर्वोपरि संपत्ति है। जहां श्रम की पूजा होगी, वहां कोई भी कमी नहीं रहेगी। विनोबा के शब्दों में परिश्रम हमारा देवता है। जो हमें अमूल्य वरदानों से संपन्न बनाता है। परिश्रम ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारी अभाव ग्रस्तता, गरीबी, दीनता का बहुत कुछ कारण पर्याप्त और सही ढंग से श्रम न करना ही है। सामने पड़ा हुआ काम जब श्रम का अंजाम चाहता है और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे सोचते रहते हैं तो काम हमें श्राप देता है और उसके फलस्वरूप उसके लाभ से हम वंचित रह जाते है। प्रतिदिन उगता हुआ सूर्य हमारे लिए सक्रिय जीवन का, श्रमशीलता का संदेश लेकर आता है किंतु हम दिन भर गपशप में, खेल तमाशों में, आलस्य और प्रमाद की तंद्रा में इस संदेश की ओर ध्यान नहीं देते। फलस्वरूप उस दिन मिलने वाली सफलता और उपलब्धियों से हमें वंचित रहना पड़ता है। यह निश्चित है कि बिना श्रम के कोई भी उन्नति प्राप्त नहीं कर सकता।

 


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