श्री गोरख महापुराण

By: Dec 14th, 2019 12:16 am

 हनुमानजी के याद करते ही प्रभु राम तुरंत आ गए और हनुमानजी की अजीब अवस्था देखकर बोले, पवनसुत! क्या बात है? हनुमानजी ने अपने ऊपर आए हुए संकट का विवरण सुनाया और बोले, प्रभु आपके अजेय दास की दुर्दशा का क्या कारण है? जब श्रीराम प्रभु ने ध्यानपूर्वक देखा तो हनुमान जी की दुर्दशा का कारण समझते देर न लगी। उन्होंने तुरंत ही गरुड़ास्त्र, इंद्रास्त्र, थिमकास्त्र, ज्ञानस्त्र के प्रयोग से हनुमान जी के बंधन खोले और विपत्ति से मुक्त करवाया। विपत्ति से छुटकारा तो मिल गया,परंतु उन्होंने अपने को बड़ा अपमानित समझा…

 गतांक से आगे…

तभी उनकी समझ में एक उपाय आया। अगर मैं हनुमान जी को राज्य की सीमा में आने ही न दूं तो संभव है समस्या सुलझ जाए। उन्होंने इस प्रकार निर्णय करके मोहनास्त्र, स्पास्त्र, नागास्त्र, बज्रास्त्र और प्रक्षेपास्त्र के द्वारा ऐसी व्यस्था कर दी कि त्रिया राज्य की सीमा के भीतर हनुमान जी घुस ही न सके। श्रीराम हनुमान से भेंट वार्ता एक समय हनुमान जी का निवास सेतुबंध रामेश्वरम में था। वह सुबह के समय रामजी की सेवा में लगे रहते थे और त्रिया राज्य में उनके आगमन का समय अर्धरात्रि बीतने के पश्चात का था। जब तक गोरखनाथ के मंत्रों की व्यवस्था हो चुकी थी। जब हनुमान जी त्रिया राज्य की सीमा में आए और ज्योंही अपना कदम सीमा के भीतर रखना चाहा तभी उनके हृदय पर बज्रास्त्र का अधात लगा, जिसकी वजह से वह मूर्छित हो भूमि पर गिर पड़े। उसके पश्चात स्पास्त्र ने अपना प्रभाव दिखाया जिससे वह भूमि के आकर्षण में बंध गए और उनकी सभी गतिविधियां शांत हो गई।  फिर मोहनास्त्र की बारी आई, इससे वह सम्मोहित हो गए कि किसी भी क्रियाकलाप का विरोध न कर पाएं। ऐसी स्थिति में नागास्त्र ने उन्हें बांध लिया और त्रिया राज्य की सीमा से दूर फेंक दिया। काफी समय बाद जब उनकी चेतना लौटी, तो  उनकी समझ में नहीं आया कि यह सब किस प्रकार हो गया। हार कर उन्होंने अपने स्वामी श्रीराम को याद किया। हनुमानजी के याद करते ही प्रभु राम तुरंत आ गए और हनुमानजी की अजीब अवस्था देखकर बोले, पवनसुत! क्या बात है? हनुमानजी ने अपने ऊपर आए हुए संकट का विवरण सुनाया और बोले, प्रभु आपके अजेय दास की दुर्दशा का क्या कारण है? जब श्रीराम प्रभु ने ध्यानपूर्वक देखा तो हनुमान जी की दुर्दशा का कारण समझते देर न लगी।  उन्होंने तुरंत ही गरुड़ास्त्र, इंद्रास्त्र, थिमकास्त्र, ज्ञानस्त्र के प्रयोग से हनुमान जी के बंधन खोले और विपत्ति से मुक्त करवाया। विपत्ति से छुटकारा तो मिल गया,परंतु उन्होंने अपने को बड़ा अपमानित समझा। वह श्रीराम से बोले, प्रभु मेरी ऐसी दुर्दशा करने वाला कौन है,क्या कोई दानव है? मनुष्य में तो ऐसा कोई बलवान देखने में  नहीं आता।  भगवान राम बोले, प्रिय पवनसुत कोई देव दानव इस प्रकार आप को अपमानित करने का सामर्थ्य नहीं रखता। देवताओं और मनुष्यों में भी आपके समान कोई बलशाली नहीं है। ऐसे साहस का एक ही मनुष्य धरती पर है। हनुमानजी बोले, प्रभु जल्दी बताओ। मैं उस दुष्ट को उसकी करतूतों की सजा देना चाहता हूं। प्रभु मुस्करा कर बोले, हनुमानजी शांत हो जाओ। जो भी कार्य किया जाए, विचार पूर्वक ही करना चाहिए।

बिना विचारे जो करे, सो पीछे पछताय।

कार बिगाड़े अपना, जग में होत हंसाए।।

विरोधी का बल अजमाए वगैर उलझना नादानी है। हनुमानजी बोले, प्रभु जब तक पता न चले, बल की जांच किस प्रकार हो सकती है। प्रभु राम बोले, पवनसुत इस धरती पर इस समय नाथ संप्रदाय के योगीजन ही ऐसे कार्य करने का सामर्थ्य रखते हैं।  योगी मछेंद्रनाथ की प्रदत्त भस्मी द्वारा भगवान हरिहर ने अवतार लिया है। हनुमानजी बोले, प्रभु मछेंद्रनाथ का चेला गोरखनाथ इतना शक्तिशाली हो गया, जिसका गुरु त्रिया राज्य के भोग विलास की दलदल में इतना लिप्त है। श्रीराम बोले, पवनपुत्र आश्चर्य क्यों करते हो? तपस्वी को सब सामर्थ्य है। उससे भिड़ना आसान मत समझो।                                                                      – क्रमशः


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