श्री गोरख महापुराण

By: Dec 21st, 2019 12:23 am

गतांक से आगे…

हनुमानजी बोले, प्रभु बहुतेरे साधन संपन्न उपासक  हरि भक्त तपस्वी के आगे यह सभी सामर्थ हीन हैं। क्या तपस्वी का दर्जा सबसे ऊंचा है। प्रभु राम बोले,पवनसुत बात कुछ ऐसी ही है। परंतु गोरखनाथ का अभिप्राय तुम्हारा अपमान करने का नहीं। वह तो इस त्रिया राज्य की कीचड़ से अपने गुरु का उद्धार करना चाहता है। इसलिए आपको चमत्कार दिखाकर सूचित किया है कि आप उनके कार्य में बाधा न बनें। प्रभु श्रीराम की बात सुनकर हनुमान बोले, मछेंद्रनाथ तो मेरी आज्ञा से ही इस त्रिया राज्य में रह रहा है। मैंने ही मैनाकिनी रानी को उसकी सेवा करने का निर्देश दिया है प्रभु, अगर गोरखनाथ त्रिया राज्य से अपने गुरु को निकालने में सफल हो गया, तो कठिन समस्या उत्पन्न हो जाएगी। श्रीराम बोले, उपाय भी तो कुछ नजर नहीं आता। वह तो अपने गुरु को निकालने के लिए ही यहां आए हैं। हनुमान जी बोले, प्रभु आप उन्हें समझा तो सकते हैं। शायद आपकी बात वह मान जाएं। कृपया आप मेरे साथ चलकर उन्हें समझाकर तो देखें। अगर वह मान गए, तो मेरी बात खराब नहीं होगी। प्रभु राम ने अपने भक्त की बात मान ली और दोनों ने ब्राह्मण भेष बनाकर चिन्नापट्टन की तरफ प्रस्थान किया। जहां कलिंगा सुंदरी अपनी सखियों के साथ गहरी निद्रा का आनंद ले रही थी। रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। जल जीवों के शब्द साफ सुनाई पड़ रहे थे। तभी गोरखनाथ ने दो ब्राह्मणों को अपने निकट आते देखा। गोरखनाथ को बड़ा आश्चर्य हुआ। एक तो रात का समय,दूसरे उनके शस्त्रों की व्यवस्था,तीसरे राज्य में पुरुष प्रवेश निषेध। यह कौन हैं? जो किसी ने इन्हें सीमा में घुसने से नहीं रोका। गोरखनाथ अभी विचार कर ही रहे थे कि तब तक दोनों ब्राह्मण उनके सामने आ पहुंचे।गोरखनाथ ने उठकर उन दोनों का अभिवादन किया और उन्हें अपने पास बिठाकर पूछा, ब्राह्मण देवता आप दोनों कौन हैं और कहां से पधारे हैं? आप लोग आधी रात के बाद मेरे पास किस उद्देश्य से आए हैं? मुझे बताने की कृपा करें। ब्राह्मण भेषधारी श्रीराम बोले, हम दोनों एक विशेेष उद्देश्य से आपके पास आए हैं। यदि आप हमारा उद्देश्य पूरा करने का वचन दें, तो सभी वृत्तांत आपको बताया जाए। गोरखनाथ सोचने लगे कि इन ब्राह्मणों का रहस्य जाने बिना वचन देने से लाभ तो कुछ होना नहीं। हानि अवश्य हो सकती है। यह सोचकर गोरखनाथ बोले, हे विप्र देव बिना परिचय प्राप्त किए वचन भरने की नीति मेरी समझ में तो नहीं आती इसलिए पहले अपना परिचय दें। भगवान राम बोले, योगीराज मेरा नाम श्रीराम है और इनका हनुमान। अपने भक्त के कारण मुझे आपके पास आना पड़ा। इतना सुनकर गोरखनाथ ने दोनों महापुरुषों को प्रणाम करके उनके चरण छुए। प्रभु राम बोले, अब तो परिचय मिल गया। अब वचन देने में कोई हानि नहीं होगी। गोरखनाथ बोले, वचन देने से पहले आपकी आज्ञा का विषय भी जानना चाहता हूं।  प्रभु श्रीराम बोले, बैठो सब बताए देते हैं। पवन पुत्र हनुमान योगीराज को अपना उद्देश्य बताओ। हनुमान जी बोले, योगीराज मुझे पता चला है कि मछेंद्रनाथ आपके गुरु हैं और आप उन्हें त्रिया राज्य से निकाल कर ले जाना चाहते हैं। परंतु मछेंद्रनाथ मेरी आज्ञा से यहां आए थे,इसलिए उन्हें यहीं रहने दो। गोरखनाथ बोले, पवनसुत मुझे आपकी आज्ञा न मानने का अपार दुःख है। पर जरा आप ही विचार करें कि अपने गुरुदेव को भी इस नरक कुंड से निकालना मेरा कर्त्तव्य नहीं है। क्या उन्हें इस नरक कुंड में गोते खाने के लिए छोड़ देना चाहिए। यहां रहने से क्या उनकी योग साधना में विघ्न नहीं पड़ रहा है। क्या उनके यहां रहने से नाथ पंथ की नाक नहीं कटी है आपको तो इस शुभ कार्य में मेरी मदद करनी चाहिए।                                              – क्रमशः

 

 


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