हमारे ऋषि-मुनि, भागः 19- ऋषि जमदग्नि

By: Dec 21st, 2019 12:23 am

एक दिन महर्षि जमदग्नि अपने आश्रम में विश्राम कर रहे थे,तभी राजा सहस्रर्जन बड़ी सेना के साथ वहां आ पहंुचे। जमदग्नि ने अपने योग तथा तपोबल से अपनी कामधेनु गाय से सकल पदार्थ द्वारा उन सबकी खूब तृप्ति की। वे सब बहुत संतुष्ट हुए। तब राजा ने महर्षि से ये कामधेनु गाय ही मांग ली। महर्षि विवश थे। इस गाय के बिना उनके यज्ञ कार्य तथा सामग्री आदि उपलब्ध न हो सकती थी। उन्होंने इंकार कर दिया…

राजा गाधि की बेटी थी सत्यवती। महर्षि ऋचीक के आग्रह पर राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उनसे कर दिया। जब बेटी की विदाई हुई, तो उसकी माता ने कहा, भले ही तुम्हारे पति वृद्ध हैं,मगर वह तुम्हें हर प्रकार का सुख देंगे, उसका आनंद लेना। साथ ही उनसे मेरी ओर से प्रार्थना करना ताकि मेरी गोद पुनः भर सके तथा मैं एक पुत्र की प्राप्ति कर सकूं।सत्यवती ने भी समय पाकर अपने पति महर्षि ऋचीक से एक भाई तथा एक पुत्र पाने की कामना कर दी। साथ में कहा कि मेरी मां अकेली रह गई है, इसलिए मुझे एक भाई तो चाहिए ही।महर्षि ने तथाऽस्तु कहते हुए दो चरु मंत्रबल से तैयार किए। सासु मां के लिए क्षात्रधर्म वाली शक्ति डाली तथा पत्नी के लिए ब्रह्मशक्ति। उन्हें कहीं जाना पड़ा। जाते समय वह पूरी बात समझाकर ही गए। मगर सत्यवती की मां ने सोचा क्यों न मैं बेटी वाला चरु सेवन करूं। वह अवश्य बेहतर होगा। अतः मां ने चरु बदलकर खा लिया।इसे अपनी बेटी को भी सच-सच बता दिया। बेटी भी ऐसी कि अपने पति ऋचीक से कुछ भी छिपाती न थी। पति के लौटने पर सच्चाई बता दी। पति ने कहा, अब देखना तेरी माता को ब्राह्मण तेज वाला पुत्र होगा। होना तो तुम्हें चाहिए क्षत्रिय कर्म वाला बेटा, मगर नहीं। तुम्हारा पौत्र ऐसा होगा,दोनों के लिए उलटा,क्योकि चरु बदलकर जो खाए तुम दोनों ने। परिणाम भी वैसा ही सामने आया। माता के घर में जो पुत्र हुआ,वही बड़ा होकर विश्वामित्र मुनि बना। वह जन्म से क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण वृत्ति वाला था। सत्यवती को जो पुत्र हुआ महर्षि जमदग्नि तथा उनके पुत्र हुए परशुराम। वह ब्राह्मण कुल में पैदा होकर भी क्षत्रिय वृत्ति वाले बनें।

जमदग्नि के पौत्र के थे क्षत्रिय कर्म

एक दिन महर्षि जमदग्नि अपने आश्रम में विश्राम कर रहे थे,तभी राजा सहस्रर्जन बड़ी सेना के साथ वहां आ पहंुचे। जमदग्नि ने अपने योग तथा तपोबल से अपनी कामधेनु गाय से सकल पदार्थ द्वारा उन सबकी खूब तृप्ति की। वे सब बहुत संतुष्ट हुए। तब राजा ने महर्षि से ये कामधेनु गाय ही मांग ली। महर्षि विवश थे। इस गाय के बिना उनके यज्ञ कार्य तथा सामग्री आदि उपलब्ध न हो सकती थी। उन्होंने इंकार कर दिया। मगर राजा ने अपनी सेना के बल पर गाय छीन ली तथा इसे अपने साथ ले गए। जब इनका तेजस्वी बेटा परशुराम आया, तो उसे यह सारी जानकारी मिली। क्रोध में लाल-पीला होकर परशुराम ने अपना फरसा उठाया और जाकर राजा सहस्रार्जुन का बध कर दिया। गाय को छुड़ा लाए। इसे जानकर महर्षि जमदग्नि को बड़ा दुख हुआ। उन्होंने कहा, बेटा तुमने यह अच्छा नहीं किया। ब्राह्मणपुत्र हो क्षमा करना हमारा धर्म है, तभी तो हम पूज्य हैं।  

लिया बदला

जब राजकुमारों को पिता के बध का पता चला, तो उन्होंने भी मौका पाकर छिपते-छिपाते, तपस्या में लीन महर्षि जमदग्नि का बध कर डाला। जब परशुराम को इसकी सूचना मिली,तो उन्होंने राजकुमारों के साथ क्ष्त्रियों को समाप्त कर दिया। ऐसा वह अपने जीवनकाल में इक्कीस बार करते रहे।   

                                       – सुदर्शन भाटिया 

 


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