हानिकारक है बढ़ता मोबाइलेरिया

By: Dec 4th, 2019 12:05 am

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक, घुमारवीं से हैं

जी हां ‘मोबाइलेरिया’। यह कोई चिकित्सकों द्वारा दिया गया नाम नहीं है और न ही यह चिकित्सीय शब्दकोश की शब्दावली में आता है। यह शब्द सामान्य विश्लेषण तथा अवलोकन से उत्पन्न हुई एक अभिव्यक्ति है, जिसे परिभाषित करना एवं समझना बहुत ही आवश्यक है। सेल्यूलर प्रौद्योगिकी द्वारा आविष्कृत मोबाइल मनुष्य के लिए एक वरदान है जो कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए पूरी दुनिया में किसी से भी वार्तालाप करने का बहुत ही सशक्त माध्यम है। मोबाइल प्रत्येक व्यक्ति की जेब की आवश्यकता है। इस प्रभावशाली संचार माध्यम ने पूरी दुनिया का आकार सीमित कर मुट्ठी में समेट दिया है। निश्चित रूप से अब दुनिया अंगुलियों से चलती है। संचार क्रांति से उत्पन्न मोबाइल मनुष्य को एक वरदान रूप में प्राप्त हुआ है।  मोबाइल के अत्यधिक उपयोग के परिणाम मनुष्य के लिए अभिशाप की तरह भी सामने आने लगे हैं। इसका अत्यधिक इस्तेमाल बर्बादी का कारण बनने लगा है। अब ड्रग्स के एडिक्शन से भी खतरनाक मोबाइल का एडिक्शन बन गया है। अगर भूल से आपका मोबाइल घर पर रह गया है या आपको याद नहीं कि यह किसी के घर, दुकान या कार्यालय में रह गया है, आपका मोबाइल चार्ज नहीं है या आप अपना चार्जर कहीं भूल गए हैं और उसके बिना आप में असुरक्षा की भावना पैदा हो रही है। आप असहज या असुविधापूर्ण महसूस कर रहे हैं तो निश्चित रूप से आप यह समझें कि आप में ‘मोबाइलेरिया’ के लक्षण हैं तथा शीघ्र ही आप इस भयंकर बीमारी की जकड़ में आने वाले हैं। यदि आप सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप या ट्विटर पर अपने द्वारा अपलोड किए गए चित्रों, वीडियोस, ब्लॉग, जीआईएफ, समाचारों तथा विचारों के बदले में अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या लोगों की प्रतिक्रियाओं को जानने या उनके द्वारा लाइक संख्या का ग्राफ  देखने के लिए बार-बार अपना मोबाइल देखते या चेक करते हैं, तो आप मोबाइल के नशे में हैं तथा आपको ‘मोबाइलेरिया’ ने जकड़ रखा है। इस बीमारी को महसूस करना तथा स्वीकार करना सहज तथा आसान नहीं है। धीरे-धीरे यह आदत हमारे मन- मस्तिष्क में मीठे जहर की तरह घुसती चली जाती है तथा यह हमारे आधुनिक जीवन व दिनचर्या का अटूट अंग बन जाती है। मोबाइल का प्रयोग जहां संचार प्रौद्योगिकी में एक क्रांति है वहीं पर इसका अत्यधिक प्रयोग हमारी ज्ञानेद्रियों में धीरे-धीरे स्थान बनाकर हमें पंगु बना रहा है। संचार क्रांति के इस युग में हम विभिन्न टेलकम आपरेटर कंपनियों की आकर्षक योजनाओं की झांसे में आते हैं। बहुत से लोगों को इन कंपनियों की योजनाओं, डाटा पैकेज तथा शुल्क संबंधी आकर्षण लुभाते हैं तथा आमतौर पर उनको इस बारे में चर्चा करते हुए देखा जा सकता है। उनको यह पता नहीं होता कि इन संचार योजनाओं की जानकारी होने के साथ-साथ वे मोबाइल के गंभीर नशे में हैं। यह नशा अन्य नशीले पदार्थों से भी भयंकर है। जब हमें यह समझ न आए कि हमें क्या हो रहा है तथा हम उसे व्यक्त करने में असमर्थ हों तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि हम अपनी सुध-बुध में नहीं हैं तथा शून्य की स्थिति में ही बिना सोचे-समझे कार्य कर रहे हैं। कई बार बच्चों को मोबाइल पर कार्य करते हुए, बातचीत करते-करते खाना खाते हुए देखा जा सकता है। जिसमें आपका मन नहीं वह भोजन भी शरीर व मस्तिष्क में क्या असर करेगा? फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप की इस संचार क्रांति के दौर में हम उन लोगों से जुड़े रहते हैं जिनको न तो हम जानते हैं और न ही पहचानते हैं। घर में चाहे अपने मां-बाप सामने बैठे हों हम उनकी बात पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं देते क्योंकि हम वहां पर मानसिक रूप से नहीं बल्कि केवल शारीरिक रूप से ही उपस्थित होते हैं। मानसिक, भावनात्मक व संवेगात्मक दृष्टि से हम कहीं बहुत दूर होते हैं। वर्तमान मोबाइल क्रांति में हम आज पूरी दुनिया को जानते हैं परंतु अपने पड़ोसी को नहीं पहचानते हैं। मोबाइल का बहुत ज्यादा प्रयोग करने वालों को अकेले में ही हंसते-रोते व गुस्सा करते हुए देखा जा सकता है। ये लक्षण मानसिक व मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ही गंभीर, घातक तथा खतरनाक हैं। गूगल को ज्ञान देवता के रूप में स्वीकार किया जाता है, वहीं पर मानसिक तौर पर आज व्यक्ति बहुत कमजोर हो रहा है उसकी सोचने-समझने वह याद करने की शक्ति क्षीण हो रही है। बच्चों में सृजनात्मकता, रचनात्मकता तथा बुद्धि की प्रखरता कम हो रही है। मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग हमें पागलपन की तरफ  धकेल रहा है धीरे-धीरे मोबाइल एडिक्शन हमें अपने आगोश में ले रहा है। विभिन्न अध्ययनों, शोध तथा चिकित्सीय रिपोर्ट में यह बात सामने आ चुकी है कि मोबाइल के अत्यधिक उपयोग की आदत के कारण लगभग 10 प्रतिशत बच्चों की आंखें टेढ़ी तथा 18 प्रतिशत बच्चों की आंखें कमजोर हो चुकी हैं। स्कूल व कालेज जाने वाले अधिकांश छात्र-छात्राएं मोबाइल एडिक्शन की चपेट में आ चुके हैं। स्कूलों महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में हर हाथ में पुस्तक के स्थान पर मोबाइल देखा जा सकता है। मेडिकल कालेजों व जिला अस्पतालों में मोबाइल एडिक्शन से उपजे कई लक्षणों से ग्रसित व प्रभावित मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। मेडिसन व मनोविज्ञान विभागों में नींद न आने, भूख न लगने, सिर दर्द, आंखों में जलन, मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन, लड़ने-झगड़ने व क्रोधित होने के कई मामले सामने आ रहे हैं। बच्चों में तनाव, चिंता, मानसिक दबाव, चिड़चिड़ापन की वृतियां देखी जा सकती हैं। काम की व्यस्तता के कारण कई माताएं अपने बच्चों को छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल थमाकर कार्टून या वीडियो गेम्स लगा देती हैं जो कि बहुत ही हानिकारक है। ये सभी संकेत खतरे की घंटी हैं। भविष्य में बढ़ते मोबाइल उपयोग से जनित मनुष्य को होने वाले मानसिक मनोवैज्ञानिक व शारीरिक नुकसान की ना तो हम कल्पना कर सकते न ही इसकी भरपाई कर सकते हैं। देश के युवाओं व अपनी पीढ़ियों के भविष्य को बचाने के लिए अभिभावकों, संस्थाओं, विभिन्न विभागों तथा सरकारों को इस दिशा में प्रभावशाली कदम उठाने की आवश्यकता है। घर-परिवार में माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखें। रात के अंधेरे में कहीं आपका बच्चा कंबल और रजाई में छुपकर चैटिंग तो नहीं कर रहा या फिल्में तो नहीं देख रहा? इससे निकलने वाले प्रकाश से रात के अंधेरे में बच्चों की आंखें खराब हो सकती हैं। उन्हें अपने बच्चों को मोबाइल से होने वाली मनोवैज्ञानिक बदलाव, मानसिक वृत्तियों व विकृतियों पर ध्यान देना चाहिए। भौतिकवादी परिवेश में हमारी पीढि़यां ‘मोबाइलेरिया’ से ग्रसित होकर बर्बाद न हो जाएं। अगर समय रहते हमने मोबाइल के बढ़ते उपयोग पर रोक नहीं लगाई तो यह हमारी पीढि़यों के लिए घातक हो सकता है।


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