हिमपात के बाद: सेब के लिए संजीवनी बनी बर्फ

By: Dec 22nd, 2019 12:09 am

बागबानों को समय से पहले चिलिंग आवर्ज पूरा होने की उम्मीद

हिमाचल में सीजन के पहले बड़े हिमपात ने बागबानों को बाग बाग कर दिया है। शिमला,किन्नौर, सिरमौर, मंडी-कुल्लू और चंबा में ताजा बर्फबारी ने संजीवनी का काम किया है। बागबानों को उम्मीद हैं कि इस बार समय से पहले चिलिंग आवर्ज पूरे हो जाएंगे। कहीं चार तो कहीं अढ़ाई फीट तक हिमपात दर्ज हुआ है। शिमला जिला के ठियोग, रोहड़ू,नारकंडा में सेब के पेड़ बर्फ से लकदक हो गए हैं। इसी तरह मतियाना, कमलोड़ी पीक और नाग टिंबा पर नजर आ रही बर्फ सेब के लिए बेहतर संदेश दे रही है।  दूसरी और मंडी जिला के शिकारी देवी,चंबा के भरमौर-पांगी व सिरमौर के नौहराधार में बागीचों में हिमपात के बाद नई जान आ गई है। करसोग के बागबान टीसी ठाकुर के अनुसार चवासीगढ़ की पहाडि़यों में लगभग डेढ़ से 2 फुट तक हिमपात हुआ है । माहूूंनाग से धर्म घासटा ने बताया कि इस क्षेत्र में भी शानदार हिमपात हुआ है । सेरी बंगलो रामगढ़ क्षेत्र से बागबान हुकम ठाकुर ने बताया कि उनके क्षेत्र में भी गत रात्रि अच्छा हिमपात हुआ है।  चिराग से घनश्याम कौशल ने बताया कि गजब का हिमपात हुआ है। जहां किन्नौर की बात है, तो यहां सेब सीजन के खत्म होते ही हुए हिमपात ने रामबाण का काम किया है। बागबानी विशेषज्ञ भी हिमपात को फायदेमंद बता रहे हैं।

रिपोर्ट प्रतिमा चौहान, नरेंद्र शर्मा, सुधीर शर्मा, संजीव ठाकुर

वाह हिमाचल! बर्फ ने पत्ते तो गिरा दिए मगर सेब का कुछ न बिगाड़ पाई

किन्नौर में सेब सीजन खत्म हो गया है, लेकिन कहीं-कहीं सेब तुड़ान नहीं हुआ था। इन इलाकों में  कल्पा का क्षेत्र भी शामिल था। तुड़ान होना ही था कि ऐन मौके पर भारी बर्फबारी हो गई। बर्फ इतनी कि सारे इलाके में इसने सेब की पत्तियां तक झाड़ डालीं, लेकिन इन पेड़ों को देख लीजिए। बेशक, पत्तियों को तो बर्फ ने नीचे गिरा दिया है, लेकिन सेब पेड़ों पर कायम हैं। हर कोई इस नजारे को देखकर हैरान और अचंभित है। डेढ़ और दो फीट तक गिरी बर्फ भी सेब को हटा नहीं पाई। दूसरी ओर उद्यान विकास अधिकारी किन्नौर डा. जगत नेगी ने अपनी माटी टीम को बताया कि इस वर्ष किनौर करीब 28 लाख 500 के करीब सेब की पेटियां देश के विभिन्न मंडियों अब तक भेजी जा चुकी हैं।

रिपोर्ट मोहिंद्र नेगी, रिकांगपिओ

किसान का प्याज तीन रुपए में, बाजार का 150 में

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं

23 दिसंबर, किसान दिवस पर विशेष

135 करोड़ की आबादी को पालने वाले अन्नदाता की हालत आजादी के बाद भी पतली किसानों को सीढ़ी बनाकर कई नेता बने, पर मेहनतकश लोग बनते रहे ‘मतदाता’ और कर्जदाता । जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान का नारा लगाने वाले भारत में आजादी के सात दशकों बाद भी किसानों की हालत बेहद पतली है। आज भी किसान का काम फसल उगाने तक सीमित है। अन्नदाता का तमगा हासिल किसान की उपज का रेट अब भी बाजार तय करता है। तभी तो किसान से महज तीन रुपए में खरीदा गया प्याज दुकानों में 150 रुपए में बिक रहा है। बड़े दुख की बात है कि जिस देश में  विश्व की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, उसमें किसान को सिर्फ वोट बैंक समझा जाता है। बात चाहे देश की हो या फिर हिमाचल की, दुग्ध पदार्थों से लेकर खाद्य सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा कहर बरपाती धूप-बारिश झेल रहे  किसानों के कंधों पर है। बेशक, आज भी देश में 60 फीसदी लोग कृषि व्यवसाय से जुडे़ हैं, लेकिन अब इन आंकड़ों में तेजी से कमी दर्ज हो रही है। देश का 22.5 प्रतिशत कृषक समाज गरीबी रेखा से नीचे हैैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि किसानों के लिए नीतियां तथा योजनाओं का मसौदा एयरकंडीशन कमरों में तैयार होता है। जहां तक हिमाचल की बात है, तो  पहाड़ की कठिन  चुनौतियों के बावजूद कृषि व बागबानी यहां गावों में निवास कर रही राज्य की 90 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी है। कृषि व डेयरी व्यवसाय में महिलाओं की भागीदारी अधिक है । राज्य के महाविद्यालयों में कृषि विषय में भी लड़कियों की सख्यां का आंकड़ा 58 प्रतिशत है। कृषि से जुडे़ व्यवसाय का राज्य के घरेलु उत्पादन में 22 प्रतिशत तक योगदान है। फल उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि दर्ज हो रही है। राज्य में 10.4 प्रतिशत क्षेत्र ही कृषि के लिए उपयुक्त है जिसमें 18 फीसदी कृषि क्षेत्र ही सिंचाई के दायरे में आता है। बाकि मौसम के मिजाज पर निर्भर है।  खरीफ की मुख्य खाद्यान्न फसल मक्का के उत्पादन में राज्य देश के पांच बड़े राज्यों में शुमार करता है। मगर औसत पैदावार में राज्य शीर्ष पर काबिज है। आधुनिकता की चकाचौंध में यहां किसान मक्की प्रजाति की कंचन, सूर्या, गंगा, सरताज या पूसा एचएम-8 जैसी हाईब्रिड व संकर किस्मों की काश्त जरूर करते हैं, लेकिन पहाड़ की विरासत परंपरागत शुद्ध देसी किस्म की उत्कृष्ट मक्की का स्वस्थ्य मानकों की कसौटी तथा गुणवता व पौष्टिकता के आधार पर कोई विकल्प नहीं हैं। ऐसे में सरकारों तथा कृषि विभागों को उन्नत किस्म की पहाड़ी मक्की का समर्थन मूल्य अलग से निर्धारित करना चाहिए। आज हिमाचल के सामने क्वालिटी बीज, खाद के अलावा नकली बीजों से किसानों को बचाने की चुनौती है। गौर रहे देश में 45 फीसदी बीज कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बेचा प्रमाणित होता है तथा 55 प्रतिशत बीज निजि कंपनियों द्वारा बेचा जाता है जो अधिकतर प्रमाणित नहीं होती। कृषि तथा किसान के बीच असमंजस की स्थिति बनने से किसान अन्नदाता से कर्जदाता व मतदाता बनकर रह गया है। उम्मीद है देश की मोदी सरकार और हिमाचल की जयराम सरकार किसान को कर्जदाता नहीं बनने देगी और अन्नदाता बनाकर  मेहनतकश लोगों का मान सम्मान बढ़ाएगी।

किसानों का हल्ला!

चंगर प्रोजेक्ट को अंडरग्राउंड करो या बंद करो।

बैजनाथ में सेहल पंचायत के सैकड़ों ग्रामीणों ने किसान सभा सेहल के साथ एसडीएम आफिस में धरना-प्रदर्शन किया। इस दौरान सरकार व बैजनाथ प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। सेहल पंचायत के प्रधान रविंद्र कुमार की अध्यक्षता में आए सैकड़ों ग्रामीणों का कहना था कि सेहल में चंगर विद्युत क्रांति कंपनी द्वारा संचालित पन विद्युत परियोजना के नहर से बड़े पैमाने पर पानी का रिसाव हो रहा है। इससे किसानों की जमीन दलदल होने के कारण बर्बाद हो रही है। प्रधान रविंद्र कुमार का कहना था है कि दस साल से किसान इस समस्या को लेकर कंपनी प्रबंधन और जिला प्रशासन के पास गए, लेकिन किसानों की समस्या का कोई हल नहीं किया गया। वर्ष 2011 में एक व्यक्ति की उसी कूहल में डूबने से मौत हो गई थी। सैकड़ों पशु और जंगली जानवर भी कूहल में मर चुके हैं। कई बार एसडीएम कार्यालय में कंपनी ने माना कि हम पाइप डाल देंगे, लेकिन कुछ नहीं किया। इसलिए किसानों ने यह मांग की है जब तक कूहल को भूमिगत नहीं किया जाता, तब तक इस विद्युत परियोजना को बंद किया जाए। किसानों का कहना है कि अगर प्रशासन की ओर से कंपनी प्रबंधन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती, तो किसान खुद परियोजना को बंद कर देंगे। अगर किसी ने सुनवाई नहीं की, तो किसान इस आंदोलन को और तेज करेंगे।       

रिपोर्ट चमन डोहरू,बैजनाथ

किन्नौर के कल्पा में बर्फ के बीच लहलहाते सेब से लदे पेड़

शनिवार सुबह के वक्त छाए हल्के बदलों के बाद समूचे किन्नौर में मौसम साफ  रहा। शुक्रवार रात को किन्नौर के माध्यम व ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ  पड़ने से अधिकांश संपर्क सड़क मार्ग अबरुद रहे। किन्नौर के 19 संपर्क सड़क मार्गों पर शनिवार दूसरे दिन भी हिमाचल परिवहन निगम की बसे नहीं चल पाई। सिर्फ  उरनी, निचार, कटगांव सहित बड़ा कम्बा संपर्क सड़क मार्गों पर ही शनिवार को निगम की बसे चल पाई है। शनिवार को रिकांगपिओ आदि क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति सामान्य रहने के साथ-साथ लंबी दूरी की बसे भी आती जाती रहीं। पूरे जिला में ठंड का प्रकोप बढ़ने से पूरा जिला शीतलहर की चपेट में आ गया है। अत्यधिक ठंड बढ़ने से कई पेयजल स्त्रोतों के जमाने से कुछ एक ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पेयजल के लिए असुविधाएं भी उठानी पड़ रही है। किन्नौर जिला में इस वर्ष सर्दियों के शुरुआती दिनों में ही बर्फबारी होने से किन्नौर के कुछ एक सेब बागबान अब तक अपनी नकदी फसल सेब का तुड़ान भी नहीं कर पाए है।  यह मंजर किन्नौर जिला के कल्पा में देखा जा सकता है। यहां पर कुछ एक बागबानों के सेब इन दिनों पेड़ो में ही पड़े हैं जबकि इस क्षेत्र में करीब डेढ़ फीट बर्फ दर्ज की जा रही है।  इस संबंध में उद्यान विकास अधिकारी किन्नौर डा. जगत नेगी ने बताया कि इस वर्ष किनौर जिला से करीब 28 लाख 500 के करीब सेब की पैटिया देश के विभिन्न मंडियों अब तक भेजी जा चुकी है। इस समय किन्नौर में सेब सीजन तकरीबन क्लोज हो चुका है। जिन बागबानों के बागीचों में अभी सेब नहीं तोड़ा गया है शायद व बागबान अपने निजी कारणों से अब तक सेब का तुड़ान नहीं कर पाए होंगे।

रिपोर्ट- मोहिंद्र नेगी, किनौर

एक करोड़ मार्केट टैक्स भरने वाले सेब कारोबारी को दिल्ली में सलाम

यूं तो हर हिमाचली टैक्स भरने में आगे रहता है,लेकिन इस बार हम आपको ऐसे सेब कारोबारी से मिलाने जा रहे हैं,जिसने एक साल में एक करोड़ मार्केट शुल्क भरा है। इनका नाम है अनूप चौहान। अनूप शिमला जिला के ठियोग एरिया के रहने वाले हैं। वह पराला मंडी आढ़ती संघ के प्रधान भी हैं। महज 41 साल की उम्र में कई आयाम छूने वाले अनूप को दिल्ली में हाल ही में उत्कृष्टता सम्मान 2019 से नवाजा गया है।  उन्हें यह सम्मान केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रदान किया । अनूप चौहान किसान परिवार से संबंध रखते हैं । पिछले  4 वर्षों से सर्वाधिक मंडी शुल्क अदा करने के लिए गत वर्ष भी सम्मानित किया जा चुका है। हिमाचल को अनूप चौहान जैसे कारोबारियों पर नाज है।

सेब की पत्तियों को न जलाएं बागबान

सेब के बागीचों में स्कैब व अन्य  संक्रामक रोगों से बचने के लिए बागीचों में इन दिनों जलाई जा रही पौधों की पत्तियों व टहनियों के धुंए से पूरा क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया है।  बागीचों से उठने वाले सफेद धुंए की चादर जहां  हर जगह फैल रही है, वहीं दूसरी ओर ठियोग कस्बे के साथ इलाकों से उठने वाला धुंआ सीधे शहर में पहुंच रहा है। इसके चलते क्षेत्रीय पर्यावरण का तापमान भी प्रभावित हो रहा है। इस प्रदूषित व खतरनाक धुंए के कारण बीमारियों के पनपने की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा इन दिनों सेब के पौधों के लिए तापमान में गिरावट का होना बेहद आवश्यक है,जिससे सेब की चिलिंग जरूरत पूरी हो सके, लेकिन सेब के पत्तों व टहनीय के व्यापक स्तर पर जलाए जाने से क्षेत्रीय पर्यावरण में फैल रहे प्रदूषित धुएं के कारण लोगों को कई तगह की बीमारियों के पनपने की संभावना पैदा हो गई है। उद्यान प्रसार अधिकारी अनिल चौहान का कहना है कि सेब की पत्तियों व टहनीय को जलाने के बजाए बेहतरीन जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल भी किया जा सकता है। इनका कहना है कि बागबान बागीचे में टहनीय को पतले हिस्सों में काटकर सेब की पत्तियों के अलावा घास व गोबर के साथ मिलाकर इसे दबाया जा सकता है। इन्हें जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है।

बंदर प्रभावित क्षेत्रों में जिमीकंद की खेती

जिमीकंद एक कंद वाली सब्जी फसल है। इसकी खेती प्रदेश के निचले व मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा रही है। इसकी खेती बंदरों की समस्या से निजात पाने के वरदान के रूप में सिद्ध हो रही है। जिमीकंद बीज एवं सब्जी कंद के रूप में देश के अन्य जिलों के अलावा आसपास के प्रदेशों में लगातार विक्रय हो रहा है। यह क्रम लागत से अधिक पैदावार देने वाली फसलों में से एक है। इसे सूरन या एलीफेंट फुट याम के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुवर्षीय फसल है। हिमाचल में मुख्यतः बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी, ऊना व कांगड़ा में इसकी खेती कर किसान आगे आ रहे हैं। बिलासपुर के अकेले करोट गांव के किसान इसकी खेती से वर्तमान में लगभग एक करोड़ का वार्षिक व्यवसाय कर रहे हैं। यहां पाई जाने वाली देशी किस्म में कैल्शियम आग्जलेट नामक तत्व काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र के सब्जी विशेषज्ञों के लगातार प्रयास से जिमीकंद की लोकल किस्म के अलावा अन्य किस्में जैसे गजेंद्रा बिद्यान, कुसुम, श्री पदमा की उत्पादन तकनीकी शुद्धिकरण कर पालम जिमीकंद-1 किस्म का अनुमोदन वर्ष 2013 में राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला (सब्जियों पर) में करवाया गया।

उपयुक्त वातावरण एवं भूमि चुनाव:

जिमीकंद की अच्छी पैदावार लेने के लिए उष्ण वातावरण व अच्छी वर्षा वाले क्षेत्र उचित रहते हैं। कंदों की बढ़वार के लिए जमीन में उचित नमी होनी चाहिए। पौधों की बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सैंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है जबकि कंदों के विकास के दौरान ठंडे मौसम व कम आर्द्रता की आवश्यकता होती है। लगातार वर्षा व पानी का ठहराव फसल के लिए हानिकारक होता है। जिन क्षेत्रों में कोहरा (पाला) गिरता हो वहां उसकी काश्त लाभप्रद नहीं होती।

जिमीकंद की किस्में

सामान्यतः जिमीकंद दो प्रकार का होता है। एक चिकने कंद वाला, जिसके मुख्य कंद के ऊपर कलिकाएं (छोटे कंद) नहीं पाए जाते तथा इनकी रोपाई मुख्य कंद का टुकड़ों में काटकर भी की जा सकती है। परंतु ध्यान रहे कि प्रत्येक बीज कंद में कम से कम एक अंकुर अवश्य हो तथा उसका वजन 500 ग्राम का हो। अधिक उपज लेने के लिए बड़े आकार के कंदों का उपयोग किया जाता है, परंतु प्रतिशत बढ़ौतरी के लिए 500 ग्राम के बीज कंद का ही अनुमोदन किया जाता है।

– रिपोर्ट: पूजा चोपड़ा (क्रमशः)

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