अच्छी किताबों संग बीता साल

By: Jan 5th, 2020 12:04 am

आत्मा रंजन

मो.-9418450763

पढ़ने-लिखने की दृष्टि से देखें तो गुजरा वर्ष ठीक-ठाक रहा। विभिन्न विधाओं की दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। …और बहुत सारी पत्रिकाओं के अनेक अच्छे अंक भी। अपना लिखना भी धीमी गति के अपने सहज प्रवाह में जारी रहा। कुछ महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं जैसे समकालीन भारतीय साहित्य, प्रसंग, बया, कथन, प्रभात खबर (साहित्य वार्षिकी) आदि में  रचनाएं छपीं। दिव्य हिमाचल, गिरिराज, हिमाचल दस्तक आदि में कुछ आलेख आदि भी। इस वर्ष पढ़ी गई पुस्तकों में विशेष की बात आती है तो कविता में नगर में बर्बर (कविता कृष्णापल्लवी), कहानी में कीलें (एसआर हरनोट), उपन्यासों में समय मेरे अनुरूप हुआ (चंद्ररेखा ढडवाल), आलोचना में सभ्यता की यात्रा-अंधेरे में (अमिताभ राय) जैसी पुस्तकों ने विशेष रूप से प्रभावित किया!

‘नगर में बर्बर’ और ‘कीलें’ जहां अपने समय के बड़े प्रश्नों और जरूरी चिंताओं से सीधे मुठभेड़ करती हुईं सशक्त प्रतिरोध दर्ज करती हैं, वहीं ‘समय मेरे अनुरूप हुआ’ प्रभावी और सधे भाषा शिल्प में स्त्री जीवन और संघर्ष को महीन बुनावट में दर्ज करता है। आलोचना पुस्तक ‘सभ्यता की यात्रा-अंधेरे में’ में युवा आलोचक अमिताभ राय मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ का उम्दा अंतर्पाठ प्रस्तुत करते हैं। इस वर्ष भी अनेक आयोजनों में जाने का अवसर मिला और कई आयोजनों में नहीं भी शामिल हो पाया! सभी आयोजनों ने अपने-अपने स्तर पर रचनात्मक माहौल को बेहतर बनाने का प्रयास किया! हां, दो आयोजनों का विशेष जिक्र  करना चाहूंगा। कंडाघाट महाविद्यालय में अंग्रेजी प्राध्यापिका सुनीला जी के संयोजन में कविता कार्यशाला और सरस्वती नगर महाविद्यालय में युवा लेखक राजेश अचल जी के संयोजन में विद्यार्थियों के बीच साहित्य संवाद और कार्यशाला। ये दोनों आयोजन विद्यार्थियों के बीच सृजन संस्कार विकसित करने की जमीनी पहल की तरह रहे। इस वर्ष हिमाचल के सर्वाधिक प्रभावित करने वाले लेखक और कृति के संदर्भ में पहला नाम कथाकार एसआर हरनोट जी का जहन में आता है। निश्चित रूप से यह नाम  मैत्रीवश नहीं, बल्कि उत्तरोत्तर जारी उनके बेहतर लेखन की वजह से ले रहा हूं।

इस वर्ष आए उनके ‘कीलें’ कहानी संग्रह में उम्दा कहानियां हैं। मसलन ‘फ्लाई किलर’ जैसी सशक्त कहानी जहां राजनीति की अधिनायकवादी दमनकारी प्रवृत्तियों का पटाक्षेप करती है, वहीं ‘भागादेवी का चायघर’ कहानी इकोफेमीनिज्म जैसी अवधारणा की हिंदी में दुर्लभ कहानी के रूप में हमारे सामने आती है। इसी वर्ष चंद्ररेखा ढडवाल जी की उम्दा औपन्यासिक कृति ‘समय मेरे अनुरूप हुआ’ भी छपी। यह उनके लेखकीय जीवन की उपलब्धि की तरह सामने आती है। परंपरागत स्वीकृत दमित स्त्री छवि के बरक्स एक स्त्री की मानवीय गरिमा की आकांक्षा को संवेदनशील ढंग से महीन बुनावट में पेश करता एक महाख्यान। एक और उम्दा पुस्तक वरिष्ठ कवि कथाकार केशव जी की ‘केशव की लोकप्रिय कहानियां’ के रूप में सामने आती है जिसमें अपने शिल्प वैशिष्ट्य के साथ उनकी बारह उम्दा कहानियां एक साथ पढ़ने को उपलब्ध हैं, जो हिंदी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में छप कर चर्चित रही हैं।

 


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