अपने अंदर की काबिलीयत को पहचानें युवा

By: Jan 29th, 2020 12:22 am

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-23

करियर काउंसिलिंग कर्नल (रि.) मनीष धीमान

सेना जिंदगी जीने का एक तरीका है, जिसमें काम, खेल, पार्टी, मनोरंजन आदि हर चीज के लिए समय निर्धारित होता है और  यह सब दिनचर्या का हिस्सा होते हैं। कैंटोनमेंट के बाहर की दुनिया से अछूते सैनिक चारदीवारी के अंदर एक हैल्दी  एंड पॉजिटिव जीवन यापन करते हैं। एक बार मैं शाम को गोल्फ  खेलने के लिए गया, गोल्फ  कोर्स में कार खड़ा करते ही, एक अच्छी डील-डौल तथा कद-काठी का 20-22 साल का लड़का मेरे साथ कैडी यानी गोल्फ  खेलते वक्त सहायता करने के लिए आया।

गोल्फ  खेलते-खेलते उससे कुछ बातें हुईं तो उसने बताया कि वह एक बहुत ही गरीब परिवार से संबंध रखता है। घर में उसके पापा दिहाड़ी मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। उसने गांव में कभी मजदूरी, तो कभी ट्यूशन पढ़ा कर ग्रेजुएशन तो कर लिया है, पर उसके बाद कोई प्रोफेशनल कोर्स करने के लिए या टेस्ट देने के लिए पैसे नहीं थे, तो गांव के ही एक दूर के चाचा के साथ फौज में भर्ती होने के लिए उनके साथ आ गया। उन्होंने मुझे अधिकारी मैस में मैस स्वाय रखवा दिया। मैं मैस के गार्डन का घास वगैरह काटकर उसे मेंटेन रखता हूं तथा मैस में साफ.-सफाई तथा बरतन आदि का काम भी करता हूं। चाचा का कहना है कि अधिकारियों के साथ पहचान होने से फौज में भर्ती होने में आसानी होगी। फिर कुछ दिन मेरे साथ ही कैडी करने से जब थोड़ी पहचान हो गई तो एक दिन वह बोला कि साहब आपसे विनती है कि आने वाली भर्ती में मेरी मदद कर देना। मैं रोज सुबह दौड़ लगाता हूं तथा लिखित परीक्षा में भी पास हो जाऊंगा। मैं भर्ती होने की पूरी काबिलीयत रखता हूं, पर फिर भी आप मेरी सिफारिश लगा देंगे तो फौज में भर्ती हो जाऊंगा । तब मैंने उसके बारे में पूरा जाना तो पता चला कि उसने ग्रेजुएशन 68 परसेंट नंबर से पास किया था। उसकी उम्र मात्र 21 साल थी। मैंने उसको शाम को मैस में मिलने को कहा, उससे  डिटेल में बात करने पर मैंने उसे बताया कि उसने स्नातक की डिग्री की है और वह फौज में सिपाही नहीं रखता है बल्कि अधिकारी बनने की भी काबिलीयत रखता है। इस पर उसने मुझे बताया कि साहब अधिकारी तो बड़े दूर की बात है। वह बोला अगर आप मुझे मैस वेटर भी भर्ती करवा दो, तो भी मैं आपका पूरी उम्र एहसान नहीं भूलूंगा। उसके बाद मैंने उससे हर रोज 10 मिनट बात करना शुरू की और उसमें विश्वास जगाया कि वह अधिकारी बनने के काबिल है। अगर मेहनत करेगा तो अधिकारी बन सकता है। मैंने उसको अधिकारी टेस्ट की किताबें खरीद कर उपलब्ध करवाईं और रोज शाम को लाइब्रेरी में आने की बात कही। कैंटोनमेंट के बाकी अफसरों को भी जब उसके बारे में पता चला तो सभी उसको तैयारी करने में मदद करने लगे और जब टेस्ट हुआ तो दिल से की मेहनत का उसको परिणाम मिला और वह टेस्ट में पास हो गया। एसएसबी इंटरव्यू की तैयारी के लिए मैंने उसे 10 दिन के लिए एक कोचिंग इंस्टीच्यूट में भेजा। वहां से आने के बाद मैस में हर अधिकारी के साथ उसको इंटरव्यू की तैयारी करवानी शुरू करवा दी और जैसे ही इंटरव्यू के लिए गया तो किस्मत और भगवान ने उसकी मेहनत को देखते हुए उसका साथ दिया और वह इंटरव्यू में पास हो गया। कल तक एजुकेशन होने के बावजूद भी अपनी काबिलीयत का अंदाजा न होने पर जो लड़का वेटर या माली की नौकरी करने को तैयार था, वह सेना में अधिकारी सिलेक्ट हो चुका था। उसके उदाहरण से मुझे इस बात का पूर्ण विश्वास हो गया कि अगर किसी भी बच्चे का सही मार्गदर्शन किया जाए तो वह अपनी काबिलीयत के अनुसार बड़े से बड़ा लक्ष्य भी हासिल कर सकता है। आज भी जब मैं देखता हूं कि हमारे हिमाचल में बहुत सारे लड़के-लड़कियां जो कि ग्रेजुएशन पास हैं, सिपाही या  क्लर्क की नौकरी के लिए मेहनत करते हैं। मुझे ऐसे लगता है कि अगर अधिकारी बनने की एजुकेशनल क्वालिफिकेशन और लिजिबिलिटी उनके पास है, तो उनको पहली कोशिश अधिकारी बनने की करनी चाहिए। मैं अपनी बातचीत के दौरान हमेशा स्कूल एवं कालेज के छात्रों से बड़े सपने देखने तथा अपनी काबिलीयत पहचानने की बात करता हूं। मुझे लगता है अध्यापक एवं अभिभावकों के साथ-साथ नई पीढ़ी में आत्मविश्वास भरना तथा सही मार्गदर्शन करना हम सबका दायित्व है।


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