अपने दम पर इनकम डबल करने वालों को सलाम

By: Jan 12th, 2020 12:08 am

सरकार से पहले टारगेट छूकर हिमाचल में रोल मॉडल बने 500 परिवार

हिमाचल सरकार ने साल 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का टारगेट रखा है, लेकिन यह कम लोगों को ही पता है कि कांगड़ा जिला की धरेड़ पंचायत के 500 परिवारों ने यह कारनामा अभी कर दिखाया है। बैजनाथ एरिया के तहत आने वाली इस पंचायत ने भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा संचालित किसान प्रथम कार्यक्रम के तहत पूरे हिमाचल के लिए रोल माडल कायम कर दिया है। पंचायत के लोग धान-गेहूं और मक्की की खेती के अलावा मशरूम, मुर्गी  व मौन पालन पर जोर दे रहे हैं। ये तमाम कार्य 60 लाख के प्रोजेक्ट के तहत कृषि विवि पालमपुर की देखरेख में हो रहे हैं। महज तीन साल में किसानों ने जबरदस्त रिजल्ट हासिल किए हैं। धरेड़ में तड़ा गांव की शैलजा कुमारी के पास मशरूम के 100 बैग हैं तथा अब तक वह 110 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से 100 किलोग्राम मशरूम बेच चुकी है । शैलजा कुमारी कहती हैं कि वह और उसके पति खेतीबाड़ी करते थे परंतु उससे उनका घर का खर्च ठीक ढंग से नहीं चलता था, लेकिन मशरूम पालन से उनके घर का खर्च और बच्चों का खर्चा भी ठीक ढंग से हो रहा है। वहीं सुषमा देवी और कुलती देवी ने कहा कि उन्होंने ने भी मशरूम के बैग रखे हैं तथा इससे अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।  दूसरी ओर मुर्गी पालन कर रहे गांव कंड कोसरी के कुलदीप सिंह ने कहा कि वह खेतीबाड़ी करते हैं परंतु कृषि विवि पालमपुर द्वारा उन्हें अच्छी नसल के 50 मुर्गे और मुर्गियां दी गई थीं। जिस कारण उन्हें अच्छी कमाई हो रही है।

जयदीप रिहान,पालमपुर

 क्या कहते हैं प्रसार निदेशक

 कृषि विवि पालमपुर के प्रसार निदेशक डा. यशपाल ठाकुर ने कहा बैजनाथ उपमंडल की धरेड़ पंचायत के लोग परंपरागत खेती से जुड़े हुए थे । कृषि विवि पालमपुर द्वारा में भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा संचालित किसान प्रथम कार्यक्रम के अंतर्गत धरेड़ पंचायत के  500 किसानों का चयन किया गया है । मशरूम के अलावा कुछ किसानों को मुर्गी पालन, मौन पालन के साथ-साथ सब्जी उत्पादन में सहायता की गई है जिससे उन्हें बहुत अच्छी आय प्राप्त हो रही है।

बल्ह के किसान अमर सिंह बने जीरो बजट के माहिर

बल्ह उपमंडल के तहत मांडल पंचायत के छोटे से गांव नाउरु के किसान अमर सिंह ने अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर प्राकृतिक व मिश्रित खेती उगाने का ऐसा हुनर सीखा जो दूसरे किसानों के लिए एक मिसाल बन गया। किसान ने अपनी पांच बीघा भूमि पर जहरमुक्त सब्जियों उगाने के लिए खेती का ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिसे देखने व सीखने के लिए मंडी जिला ही नहीं बल्कि अन्य जिलों से संबंधित किसान भी आ रहे हैं। किसान अमर सिंह का कहना है कि आत्मा प्रोजेक्ट के माध्यम से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण वर्ष 2018 में पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त किया था। जिसके बाद कृषि विभाग के एटीएम व बीटीएम की देखरेख में प्राकृतिक व मिश्रित खेती कर अच्छा मुनाफा कमाया है। अमर सिंह आज दूसरे किसानों को प्रशिक्षित करते हुए बताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले देशी गाय साहीवाल खरीद कर लाई थी, जिसके गोबर व गौमूत्र से प्राकृतिक खेती में उपयोग होने वाले घटकों जीवामृत, घनजीवामृत, विजामृत व अन्य कीटनाशक व रोगनाशक का निर्माण किया है। आज शून्य लागत प्राकृतिक खेती कर उनके परिवार की आर्थिकी मजबूत हुई है।

रिपोर्ट: लक्ष्मी दत्त, रिवालसर

सराज में क्या गुल खिलाएगी यह बर्फ

मंडी जिला के सराज घाटी में बर्फबारी का दौर जारी किसान और बागबान हुए खुश। मंडी जिला के सराज घाटी के माता शिकारी, शैटाधार, जंजैहली, हुलास, कुथाह, छतरी,मगरुगला,चिउणी, लंबाथाच, थुनाग, आदि में बर्फबारी हुई है। पूरी घाटी एक बार फिर कड़ाके की ठंड की चपेट में आ गई है। बर्फबारी के चलते किसानों को बागबानों के चेहरे खिल उठे हैं। बर्फबारी सेब की फसल के लिए संजीवनी बनकर बरस रही है। इसी के साथ अन्य फसल गेहूं, जौ व मटर के लिए भी यह लाभदायक है।

  हैंडपंप बने खूंटा, अब तो सुन लो सरकार

अपनी माटी में अब हम आपका ध्यान पानी और सरकारी पैसे की बेकद्री की तरफ दिलाना चाहते हैं। बात हो रही है प्रदेश में कई जगह खूंटा बन चुके हैंडपंपों की। अपने बोट बैंक के लिए  नेताओं ने ऐसी जगहों पर हैंडपंप लगवाए हैं,जहां पानी की बूंद तक नहीं निकली है। नतीजन चप्पे-चप्पे पर लगाए गए हैंडपंप अब केबल मात्र खूंटे बने ही जनता को चिढ़ाते हैं। सवाल यह कि आखिर इन हैंडपंपों की देखभाल करने का जिम्मा किसका है। प्रदेश के बुद्धिजीवी कहते हैं कि जल शक्ति विभाग ने जितनी उत्सुकता ठेकेदारों से मिलकर हैंडपंप की बोरिंग किए जाने में दिखाई,ठीक उससे थोड़ी कम अगर इनके रख रखाब में भी दिखाई होती तो बेशकीमती सरकारी पैसे का बेड़ा गरक नहीं होता। लोग कहते हैं कि इससे तो वह समय अच्छा था,जब लोग मीलों पैदल चलकर पानी लाते थे। अब जब हर जगह हैंडपंप हैं, तो गर्मियों में पानी की दिक्कत और बढ़ जाती है। उम्मीद है कि प्रदेश की जयराम सरकार इस समस्या की तरफ जरूर ध्यान देगी।

                    रिपोर्ट सुखदेव सिंह, नूरपुर

बागों में गड्ढे खोदने वाली मशीन ने आसान किया बागबानों का काम फटाफट हो रहा काम

जबरदस्त हिमपात के बाद बागीचों में काट छांट और नए गड्ढों का काम तेजी से चल रहा है। बागबान पूरी तरह व्यस्त हो गए हैं,लेकिन इस बार बागीचों में हाथ की जगह मशीन से गड्ढे खोदे जा रहे हैं। हाथ से जहां मुश्किल से दिन में 20-25 गड्ढे खोदे जा सकते हैं,वहीं मशीन से 80 होल किए जा सकते हैं। मशीन से जहां से समय बच रहा है,वहीं लेबर की भी बचत हो रही है। बदले ट्रेंड को लेकर अपनी माटी टीम के लिए मतियाना से हमारे सहयोगी सुधीर शर्मा ने कोटखाई के प्रगतिशील बागबान राकेश रियोटा से बात की। राकेश ने बताया कि उन्होंने यह मशीन 28 हजार रुपए में खरीदी है। यह काफी फायदेमंद साबित हो रही है। इससे पैसा और समय  बच रहा है। कई बागबानों ने इसे अपनाया है। दूसरी ओर बागीचों में कांट छांट, खुदान आदि भी ऐसी ही मशीनों से हो रहा है।

रिपोर्ट सुधीर शर्मा,मतियाना

प्याज के रेट अब आने लगे पटरी पर

कृषि उपज एवं मंडी समिति सोलन के सचिव डा. रविंद्र शर्मा का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में प्याज की फसल आ चुकी है। विदेशों से भी प्याज का काफी निर्यात किया गया है। इस कारण कीमतों में कमी आई है। रही बात टमाटर की तो यह तेजी आगामी दिनों में भी देखने को मिल सकती है।

रिपोर्ट: सुरेंद्र ममटा, सोलन

कीवी उगाने में क्यों हम फिसड्डी

प्रदेश में कीवी फल की 1985 में शुरुआत होने पर भी इस फल की महक प्रदेश के कोने-कोने तक नहीं पहुंच सकी है, परंतु एक दशक के बाद हिमाचल के ही बागबानी विशेषज्ञों की तकनीकी जानकारी से उत्तर पूर्वी राज्य कीवी उत्पादन में हिमाचल प्रदेश से 20 गुना आगे बढ़ गए हैं। कीवी का उत्पादन प्रदेश में सन 1985 में शुरू हुआ था। विडंबना यह है कि उस समय मात्र 200 हेक्टेयर भूमि पर कीवी का उत्पादन होता था, जो कि अब भी उतना ही है। इसके विपरीत हिमाचल से ही सीख लेकर अरुणाचल, नागालैंड व मिजोरम जैसे राज्य कीवी फल के उत्पादन से स्थानीय बागबानों की आर्थिकी में चार चांद लगा रहे हैं।  हिमाचल में तीन दशक से भी पूर्व कीवी को उगाने के प्रयास शुरू हुए थे। वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश देश के कुल कीवी उत्पादन का 57 प्रतिशत, नागालैंड 23 प्रतिशत, मिजोरम 10 प्रतिशत तथा सिक्किम करीब 7.5 प्रतिशत भाग पैदा करता है। हिमाचल प्रदेश अपने आप तीन दशक से उसी पायदान पर है। नौणी विवि के पूर्व निदेशक अनुसंधान डा. केके जिंदल का कहना है कि सोलन, कुल्लू से लेकर अन्य कई जिलों में कीवी उत्पादन की आपार संभावनाएं हैं तथा यह सिर्फ सरकार की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है

रिपोर्टः मुकेश कुमार — सोलन

जेरोमाइन सेब पर फिदा बागबान

 इस बार कालेट स्पर, सुपर चीफ किस्म भी खूब डिमांड में

डा. वाइएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में फलों की विभिन्न किस्मों के पौधों का वितरण संपन्न हो गया है। खास बात यह कि इस बार सेब की जेरोमाइन किस्म को खूब पसंद किया जा रहा है। वहीं इस वर्ष सेब की स्कालेट स्पर, सुपर चीफ किस्म भी काफी डिमांड में रही। इस वर्ष सेब, कीवी, पलम, खुरमानी, आड़ू, अखरोट, चेरी, अनार, नेक्टरिन, नाशपाती आदि की ब्रिकी बागबानों व किसानों द्वारा की गई।  इस दौरान प्रदेश के शिमला, सिरमौर, सोलन सहित अन्य जिलों के बागबानों व किसानों ने पौधों की खरीददारी की। इस वर्ष बिक्री के दौरान खास बात यह कि कोई भी किसान निराश होकर नहीं लौटा व खराब मौसम के बावजूद किसानों की पौधे खरीदने की होड़ लगी रही। इस वर्ष नौणी विवि द्वारा उपलब्ध करवाए गए पौधों की बिक्री विश्वविद्यालय परिसर में दो जनवरी से शुरू की गई। विवि के वैज्ञानिकों द्वारा 89,000 पौधे तैयार किए गए थे, जो विश्वविद्यालय परिसर में किसानों के लिए उपलब्ध रहे। नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. परविंदर कौशल ने बताया कि इस वर्ष नौणी विवि द्वारा पंजीकरण के तहत पौधों की ब्रिकी की गई व अगले साल के लिए पौधों की आवश्यकाताओं के बारे में किसानों से सुझाव भी लिए गए, ताकि अगले वर्ष किसानों के लिए पर्याप्त रोपण सामग्री तैयार की जा सके।

सेब पर चांदी, बादाम-अखरोट को भी टॉनिक

जबरदस्त हिमपात ने चुटकियों में खत्म की चिलिंग आवर्ज की टेंशन हिमाचल में स्टोन फ्रूट की भी बंपर फस्ल की उम्मीद…

बागबानों के लिए यह बर्फबारी किसी संजीवनी से कम नहीं है। शिमला जिला में सेब के सालों पुराने बागीचे हैं जिनमें पुरानी पौध है। इस पुरानी पौध के लिए 1200 से 1400 घंटे के चिलिंग ऑवर्स की जरूरत रहती है जोकि सिर्फ बर्फबारी से ही मिल सकती है। जैसे-जैसे बर्फ गिर रही है वैसे-वैसे बागबानों के चेहरे खिल रहे हैं। बागबानों की इच्छा यही है कि ज्यादा से ज्यादा बर्फ गिरे। हालांकि दूसरे लोगों को इससे परेशानी भी है। मगर सेब बागबानी के साथ स्टोन फ्रूट आड़ू, बादाम, प्लम, अखरोट व बेमौसमी सब्जियों के लिए भी यह संजीवनी बनेगी। आने वाले समय में बेमौसमी सब्जियां होंगी तो उनके लिए जमीन की नमी जहां अच्छी होगी वहीं भूमिगत जलस्तर  में भी बढ़ोतरी रहेगी जो फायदेमंद साबित होगा। प्रदेश के शिमला, सोलन, सिरमौर, मंडी, कुल्लू, चंबा व कांगड़ा जिला में स्टोन फू्रट भी काफी मात्रा में होता है और स्टोन फ्रूट के लिए भी बागबान इस बर्फबारी को बेहतर बता रहे हैं। बागबानों के पास सेब के सालों पुराने पौधे हैं और इस पौध से अच्छी पैदावार के लिए ज्यादा बर्फबारी चाहिए। यह बर्फबारी बागीचों में कीड़े-मकौड़ों को मारने के लिए भी काम आएगी इससे जमीन के रहने वाले कीड़े मर जाएंगे जो पौधों को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। वहीं पौधों में रोग भी खत्म होगा जिससे बागबानों को दवाइयों का ज्यादा छिड़काव नहीं करना पड़ेगा।   

          विशेष संवाददाता, शिमला

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