आतंकवाद का सूत्रधार या मोहरा

By: Jan 16th, 2020 12:05 am

हमारे देश में ‘गद्दारों’ का इतिहास रहा है। पहले भूमिकाएं कुछ और होती थीं, लिहाजा ‘जयचंद’ का नाम आज तक बिसरा नहीं पाए हैं। मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था में गद्दारों के चेहरे और शख्सियत पूरी तरह बदल चुके हैं। नया नाम और चेहरा जम्मू-कश्मीर पुलिस के बर्खास्त पूर्व डीएसपी देविंदर सिंह का है। प्रथमद्रष्ट्या वह ‘गद्दार’ लगता है। उसने देश, पुलिस बल, वर्दी और नैतिकता से गद्दारी की है। उसकी दो घोषित आतंकियों के साथ धरपकड़ हुई है। उन्हें ‘पगड़ी’ पहना कर सुरक्षा एजेंसियों को गच्चा देने की कोशिश की गई है। यह भी एक किस्म की गद्दारी है, लेकिन एकदम किसी निष्कर्ष पर पहुंचना भी नैतिक नहीं होगा। आतंकवाद के दौर में कई ऐसे नाम और चेहरे सामने आते रहे हैं, जिन्हें 20-25 सालों तक जेल की सलाखों के पीछे रखा गया। अंततः सर्वोच्च अदालत ने उन्हें गद्दार या आतंकी नहीं माना, बल्कि मासूम और गैर-अपराधी करार देते हुए बाइज्जत बरी कर दिया। वे चेहरे लौट कर घर को गए, तो एक पूरा बर्बाद और बिखरा संसार मिला। कश्मीर में आतंकवाद के 30 साल से ज्यादा के दौर में ऐसा सामान्य तौर पर देखा गया है। आतंकवाद पर निष्कर्ष वही नहीं होते, जो सरकारें ब्रीफ  करती आई हैं, लिहाजा पूर्व डीएसपी के संदर्भ में हमने चेताया है। बहरहाल देविंदर सिंह के साथ प्रथमद्रष्ट्या हमारी कोई सहानुभूति नहीं है, लेकिन कुछ संवेदनशील और नाजुक सवाल जरूर हैं। देविंदर कश्मीर में आतंकवाद का सूत्रधार रहा है या किसी का मोहरा बनाया गया है? यदि वह ‘भेदिया’ था, तो सुरक्षा के स्पेशल आपरेशन ग्रुप में करीब 10 साल तक कैसे रहा? और एंटी हाईजेकिंग ग्रुप में शामिल कर अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर उसकी तैनाती कैसे और किसने की? उसके आतंकियों से क्या रिश्ते रहे हैं? क्या वह अपने वकील इरफान अहमद के जरिए पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में रहा है? इरफान के बारे बताया जाता है कि उन्होंने हालिया दौर में पाकिस्तान के  5 चक्कर लगाए हैं और उन्हें आईएसआई का स्रोत माना जाता रहा है। क्या देविंदर सिंह किसी साजिश का हिस्सा रहे हैं और कश्मीर में उन्हें ‘मोहरे’ की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है? देविंदर के साथ कश्मीर पुलिस के कुछ और सिपाही या अफसर भी संलिप्त हैं? अफजल गुरू से उसके क्या संबंध थे और क्या गुरू की चिट्ठी पर भरोसा किया जा सकता है? क्या देविंदर हवाला कारोबार का भी एक हिस्सा रहा है? क्या किसी बेगुनाह को फंसा कर उसने फांसी तक पहुंचा दिया है? बहरहाल बर्खास्त पूर्व डीएसपी से जुड़े ऐसे कई सवाल हो सकते हैं। अब उनकी सम्यक जांच राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (एनआईए) करेगी। उसकी टीम कश्मीर पहुंच चुकी है। अभी सभी आरोपित वहां की जेल में ही हैं। उन्हें दिल्ली लाने का फैसला भी हो सकता है। देविंदर हिजबुल मुजाहिदीन के दो आतंकियों-नवीद बाबू और रफी के साथ पकड़ा गया है। बताया गया है कि श्रीनगर के 15, कॉर्प्स मुख्यालय से करीब 300 मीटर की दूरी पर जिस हवेलीनुमा मकान में पूर्व डीएसपी किराए पर रहता था, आतंकी वहां आते-जाते रहते थे। पकड़े गए आतंकी भी उसी मकान में रहे थे। यह एक और गद्दारी हुई कि पुलिस बल का अधिकारी ही आतंकियों को संरक्षण दे रहा था। वैसे अभी हाल ही में सेना, सुरक्षा बल और पुलिस के साझा आपरेशन में कश्मीर हिजबुल के शीर्ष कमांडर हम्माद को ढेर कर दिया गया। नए साल 2020 में ही कश्मीर घाटी में 9 आतंकी मार दिए जा चुके हैं, लेकिन देविंदर और दो आतंकियों की गिरफ्तारी ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था को हिला दिया है। पूर्व डीएसपी के तार पुलवामा आतंकी हमले से भी जुड़े बताए जाते हैं। सवाल यह भी है कि वह आतंकियों को चंडीगढ़ के रास्ते दिल्ली तक क्यों लाना चाहता था? क्या किसी आतंकी हमले की साजिश थी या कोई शख्स निशाने पर था? इनसे भी नाजुक सवाल यह है कि श्रीनगर में सेना मुख्यालय की दीवार से सटे देविंदर का मकान बनाने की इजाजत किसने दी? मकान अब भी निर्माणाधीन है और उस पर करोड़ों रुपए खर्च होंगे, लिहाजा देविंदर के आर्थिक स्रोतों की भी जांच की जानी चाहिए। विडंबना यह है कि ऐसे पुलिस अफसर को राज्य सरकार ने 2018 में ‘वीरता पदक’ से सम्मानित कैसे कर दिया? आरोपित तो तब भी था वह। रंगदारी, फिरौती, घूस, ब्लैकमेलिंग के आरोप देविंदर पर पहले भी लगते रहे हैं। बहरहाल आतंकवाद के दौर में यह ‘काली भेड़’ का एक मामला है। बीते 30 सालों के दौरान, विभिन्न आतंकी हमलों में कश्मीर पुलिस के 1700 से ज्यादा जवानों और अफसरों ने शहादत भी दी है। यह केस इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि एक पूर्व डीएसपी दो आतंकियों के साथ रंगे हाथों पकड़ा गया है।


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