आशाओं का लंगर

By: Jan 18th, 2020 12:05 am

मंत्रिमंडलीय बैठकों में हिमाचल की तकदीर के आईने को देखें या यह तसदीक करें कि यहीं से कारवां पता पूछता रहेगा। हिमाचल की खुशी, सरकारों की प्रगति और आशाओं के लंगर में खुद से रिश्ता ढूंढता प्रदेश आखिर कब तक इस भ्रम को कबूल करता रहेगा कि सरकारी नौकरी की पोशाक के भीतर ही इनसान जिंदा रह सकता है। गुरुवार को हिमाचल मंत्रिमंडल के फैसलों में सफलता को देखना है, तो साधुवाद के तरानों में हर रोजगार कार्यालय की प्रासंगिकता तन गई होगी। कुल पच्चीस सौ नौकरियों का प्रबंध करके सरकार सैकड़ों अर्जियां जीवित करती है। यह दीगर है कि कुछ ही दिन पहले जेबीटी भर्ती के फार्म और परीक्षा अपने अंजाम पर शून्य हो गई। एक पूरी प्रक्रिया के साथ हजारों दरख्वास्तें और प्रतियोगी परीक्षा में उतरते जुनून के छिलके उतर गए। दरअसल हिमाचल में सबसे बड़ा सपना सरकारी नौकरी के इर्द-गिर्द बुना जाता है और ऐसे हालात के पक्ष में खडे़ सभी पात्र दोषी हैं। आरंभिक शिक्षा केवल छात्रों को आगे सरकाने की मुहिम बन जाए या मिड-डे मील के स्वाद में पलती पीढ़ी के लिए शिक्षा एक नजराना बन जाए, तो जीवन का विघ्वंस केवल एक चाहत को आजमाने का सुरूर ही होगा। अगर किसी अदालत के चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए एक रिक्ति के सामने चार सौ आवेदक खड़े होंगे या एम टेक, एमबीए, एमएससी या कोई अन्य डिग्री हासिल किए युवा सरकारी चौकीदार बनने को तैयार होंगे, तो डिग्री या नौकरी की काबिलीयत में किसे सफल मानेंगे। बहरहाल अढ़ाई हजार पदों के भीतर हिमाचली बेरोजगार की महत्त्वाकांक्षा, शिक्षा की उत्कंठा और राजनीतिक विजन की पराकाष्ठा दिखाई देती है। हिमाचली युवा को कतारबद्ध खड़ा करने के लिए सरकारी नौकरी के पैगाम फिलहाल सर्वोपरि हैं, जबकि अपनी क्षमता, प्रतिस्पर्धा, मूल्यांकन तथा भविष्य की रखवाली में निजी क्षेत्र की साहसिक पटकथा का पात्र बनना, वर्तमान युग की निरंतरता है। ऐसे में हिमाचल मंत्रिमंडल की बैठक के बिलकुल सामने आकर राज्य एकल खिड़की स्वीकृति एवं निगरानी प्राधिकरण की गूंज, रोजगार के कई कोहरे मिटा कर संभावना का आकाश दिखाती है। कुल 440.34 करोड़ के निवेश से रोजगार के बीज अंकुरित होते हैं। सरकारी नौकरी का सृजन राज्य की वित्तीय व्यवस्था के प्रतिकूल राजनीतिक मजबूरी कहीं अधिक है, जबकि निजी निवेश के लक्षण हिमाचल की तस्वीर को बदलने का आश्वासन है। ऐसे में जबकि लगातार ऋण उठाती किस्तें हिमाचल पर पचास हजार करोड़ की उधारी तक पहुंच गई हैं, तो निजी निवेश की किश्ती शायद भंवर से दूर ले जाने का सुखद प्रयास साबित हो। कुल चार सौ चालीस करोड़ के निवेश से 1025 नौकरियों का प्रबंध केवल घिसा-पिटा रोजगार नहीं होगा, बल्कि विविधता दर्ज होते हिमाचली हुनर की नई तासीर है। इन्वेस्टर मीट के बाद निजी क्षेत्र की भागीदारी में देखे जा रहे रोजगार की अहमियत बढ़ाने की आवश्यकता है। प्रदेश में कमोबेश हर महीने सरकार को अपने मंत्रिमंडल की कम से कम एक बैठक केवल निजी क्षेत्र तथा इस पर आधारित निवेश व रोजगार पर करनी होगी ताकि माहौल में विश्वास के अनेक सेतु स्थापित हों। हिमाचल में निजी निवेश की लघु इकाइयां किसी रेहड़ी-फड़ी से होते हुए विभिन्न बाजारों की शक्ल में सक्रिय हैं, सर्विस क्षेत्र नित नए विकल्पों, सुविधाओं और जरूरतों के साथ प्रकट हो रहा है, तो उत्पादन के क्षेत्र में भी  कुछ साहसी निवेशक खड़े हो रहे हैं। जाहिर है रोजगार की एक गैर सरकारी मशीनरी प्रयासरत है। ऐसे में सरकार को स्वरोजगार की नई तहजीब पैदा करने के लिए चिंता व चिंतन करना होगा। यह शिक्षा के वर्तमान ढर्रे से कहीं अलग राज्य की नई प्राथमिकताओं को परिभाषित करने का ऐसा जज्बा होना चाहिए, जिसकी लगातार मानिटरिंग के लिए मंत्रिमंडल खुद मंथन करे। किसी ग्रामीण परिवेश के कालेज में एमएससी या एमबीए जैसे विषयों की शुरुआत का सियासी नजरिया भले ही संतुष्ट हो जाए, लेकिन रोजगार के  लिए ऐसी कवायद का हानिकारक चेहरा ही दिखाई देता है। हिमाचल के बच्चों में आपसी प्रतिस्पर्धा का एक फलक अवश्य ही शिक्षा के उच्चारण से पूरा होगा, लेकिन उचित शिक्षा के प्रांगण की तलाश तो राष्ट्रीय कवायद से ही पूरी होगी। हिमाचल से कितने बच्चे आईआईटी, आईआईएम, ट्रिपल आईटी, एम्स, इसरो, नासा तथा विश्व  के श्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में पढ़ने की राह पकड़ना चाह रहे हैं, इस पर भी तो सरकार से प्रोत्साहन की अपेक्षा रहेगी।     


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