इंटरनेट पर पाबंदी भी जरूरी

By: Jan 20th, 2020 12:04 am

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 2019 में धारा 370 हटाने के समय सरकार ने कुछ समय के लिए वहां इंटरनेट को बंद कर दिया था, इस पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि इंटरनेट संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है, अर्थात यह जीने के हक जैसा ही जरूरी है। अनुच्छेद-19 में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा जिसके तहत वह किसी भी तरह के विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को स्वतंत्र होगा। इसलिए शायद सुप्रीम कोर्ट ने कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए पाबंदी लगाना उचित नहीं समझा, लेकिन हमारे देश में जिस तरह कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग भी करते हैं, लगभग हर मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियां राजनीति की रोटियां सेंकने की कोशिश सोशल साइट्स पर भी करती हैं और इस पर कुछ शरारती तत्त्व सोशल साइट्स पर लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए अफवाहें फैलाने की कोशिश करते हैं, उसके लिए जरूरी हो जाता है कि जब सरकार किसी संवेदनशील मुद्दे पर फैसला ले तो इंटरनेट पर पाबंदी लगा दे, ताकि शरारती तत्त्वों और अन्य लोगों को देश के किसी भी कोने में अफवाहें फैलाने का मौका न मिले। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाना बहुत ही संवेदनशील मुद्दा था, अगर सरकार वहां इंटरनेट पर पाबंदी नहीं लगाती तो शायद शरारती तत्त्व, देश विरोधी ताकतें और नापाक पाकिस्तान के लालच में आने वाले इंटरनेट के जरिए जम्मू-कश्मीर का माहौल तो खराब करते ही, साथ ही सारे देश में भी माहौल खराब करने की कोशिश करते। इसलिए यह कहा जा सकता है कि सरकार का जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने के समय वहां इंटरनेट पर पाबंदी का फैसला उचित था। इंटरनेट पाबंदी से जो देश को आर्थिक नुकसान होता है उसकी भरपाई होना तो मुश्किल होता है, लेकिन देश में शांति बनाए रखने के लिए कभी-कभार इंटरनेट पर पाबंदी भी जरूरी होती है।

                                                                

 


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