कचरे के पहाड़ तले दबते देश

By: Jan 15th, 2020 12:05 am

कुमार सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक

अपने देश में  ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के नाम पर देशव्यापी ‘हो-हल्ला’ मचा हुआ है। वर्ष 2015 में शुरू हुए इस अभियान का मकसद तो देश को साफ-सुथरा बनाए रखने का था, लेकिन इसकी नींव ‘विश्व बैंक’ से लिए गए कर्ज के आधार पर रखी गई थी। ‘विश्व बैंक’ के डेढ़ अरब डालर के कर्जे से वर्ष 2019 तक नागरिकों को बेहतर साफ-सफाई व्यवस्था उपलब्ध कराने तथा खुले में शौच को समाप्त करने का मंसूबा बांधा गया था, लेकिन ‘आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय’ ने पिछले पखवाडे़ संसद में कचरा प्रबंधन को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की है…

मौजूदा समय में दुनिया के तकरीबन सभी देश ठोस कचरा प्रबंधन की समस्या से जूझ रहे हैं। ‘वर्ल्ड बैंक’ की ‘व्हाट अ वेस्ट’ रिपोर्ट आगाह करती है कि वर्ष  2050 तक दुनिया भर के लोग हर साल 340 करोड़ टन कचरा पैदा करेंगे। फिलहाल साल भर में 201 करोड़ टन कचरा निकलता है। एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि शहरी अमरीकी प्रतिदिन 6,24,700 टन कचरा पैदा करता है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। दूसरा सबसे बड़ा शहर चीन है, जहां 5,20,548 टन कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होता है। हमारे देश की शहरी आबादी प्रतिवर्ष तीन-साढे़ तीन प्रतिशत की दर से बढ़ती रहने के साथ-साथ शहरी कचरा भी प्रतिवर्ष पांच प्रतिशत की दर से बढ़ता जा रहा है। ऐसे में वर्ष 2025 तक भारत का अपशिष्ट कचरा 3,76,639 टन प्रतिदिन तक पहुंच जाएगा। उस समय तक शहरी भारत की आबादी 53 करोड़ 80 लाख तक बढ़ने की उम्मीद है। बढ़ते कचरे की भयावह स्थिति के चलते महसूस होता है कि शहरों के पास इस तरह के कचरे के निपटान के लिए कोई जगह या साधन ही नहीं रहेंगे। यह चुनौती आने वाले समय में और गंभीर होने वाली है। अपने देश में भी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के नाम पर देशव्यापी ‘हो-हल्ला’ मचा हुआ है। वर्ष 2015 में शुरू हुए इस अभियान का मकसद तो देश को साफ-सुथरा बनाए रखने का था, लेकिन इसकी नींव ‘विश्व बैंक’ से लिए गए कर्ज के आधार पर रखी गई थी। ‘विश्व बैंक’ के डेढ़ अरब डालर के कर्जे से वर्ष 2019 तक नागरिकों को बेहतर साफ-सफाई व्यवस्था उपलब्ध कराने तथा खुले में शौच को समाप्त करने का मंसूबा बांधा गया था, लेकिन ‘आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय’ ने पिछले पखवाडे़ संसद में कचरा  प्रबंधन को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की है। मंत्रालय ने कचरा निस्तारण के संबंध में राज्यवार जो ब्यौरा जारी किया है, वह ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की हकीकत को उजागर करने के लिए काफी है। यह रिपोर्ट बताती है कि देश में रोजाना करीब डेढ़ करोड़ टन कचरा निकलता है, जिसमें से करीब सत्तावन फीसदी कचरा ही ऐसा होता है जिसे प्रसंस्कृत कर उपयोग में लाया जा सके। शेष कचरा संबंधित राज्यों में डंपिंग ग्राउंड में भेजा जाता है। इसी वजह से महानगर, शहर, गांव-कस्बे भी कूड़े के ढेरों से पटे जा रहे हैं और लोग इसी गंदगी और बदबू में रहने के लिए अभिशप्त हैं। ‘केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय’ की रिपोर्ट बताती है कि कचरा निस्तारण में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक सहित 14 राज्यों में कचरा एकत्र करने के लक्ष्य को पूरा किया गया है।

मध्य प्रदेश में कुल 6,999 नगरपालिका क्षेत्रों में शत-प्रतिशत घरों से कचरा एकत्र कर जुटाए गए 6,424 मीट्रिक टन कचरे में 84 प्रतिशत और गुजरात में 82 प्रतिशत कचरे का निस्तारण प्रतिदिन हो रहा है। वहीं महाराष्ट्र में सर्वाधिक 23,450 मीट्रिक टन कचरा प्रतिदिन एकत्र होता है और इसके 57 प्रतिशत हिस्से का ही निस्तारण हो पाता है जबकि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में प्रतिदिन 15,500 मीट्रिक टन कचरा एकत्र होता है। इसमें उत्तर प्रदेश में 58 और तमिलनाडु में 62 प्रतिशत कचरे का निस्तारण हो पा रहा है। दूसरी ओर, कुछ माह पूर्व ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (एनजीटी) ने देश के सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन के उपायों की समीक्षा के आधार पर चौंकाने वाली टिप्पणी करते हुए सभी राज्यों से छह माह के भीतर स्थिति में सुधार लाने के निर्देश दिए थे। एनजीटी ने अपने निर्देश में कहा था कि देश का कोई भी राज्य, स्थानीय निकायों के स्तर पर ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, मेडिकल कचरा और निर्माण कार्यों के कचरे के निस्तारण से संबंधित ‘कचरा प्रबंधन नियम-2016’ का पालन नहीं कर पा रहा है। राज्यों की रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी ने फटकार लगाते हुए कहा था कि लगभग सभी शहरों और कस्बों में कचरा निस्तारण के व्यवस्थित उपाय नहीं किए जाने के कारण स्थानीय लोगों और पर्यावरण के लिए खतरा लगातार बढ़ रहा है। इतना ही नहीं ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत किए जा रहे कामों को भी कचरा प्रबंधन नियमों के साथ तालमेल कायम करके पूरा नहीं किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के अंतर्गत केंद्र सरकार ने ठोस कचरा प्रबंधन के लिए सभी राज्यों को करीब 5023 करोड़ रुपए जारी किए थे, लेकिन संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट और एनजीटी के निर्देशों से साफ  है कि पिछले वर्षों के दौरान इस अभियान के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद इसका भी वही हश्र हुआ जो दूसरी सरकारी योजनाओं और इस तरह के प्रयासों का होता है। इसकी वजह है कि हमारे देश में अपशिष्ट प्रबंधन का दायित्व स्थानीय नगरीय निकायों पर है। ऐसे में बड़ी मात्रा में अपशिष्ट निस्तारण की लागत प्रायः शहरी स्थानीय निकायों की आर्थिक क्षमताओं से अधिक होती है। इस समस्या पर ध्यान न दे पाने के कारणों में कमजोर संस्थागत क्षमता और कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति भी हैं। स्वच्छता अभियान से देश के कई शहरों में स्थानीय नगरीय निकायों ने घर-घर से कचरा उठाने की दिशा में काम जरूर शुरू किया है और इस दिशा में उन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिली है, लेकिन इन स्थानीय नगरीय निकायों के सामने बुनियादी समस्या एकत्रित किए गए कचरे को ठिकाने लगाने की है। बेहतर कचरा प्रबंधन न होने का नतीजा यह होता है कि शहरों के बाहर कूड़े के पहाड़ खड़े होते जाते हैं। कचरा प्रबंधन का काम सरकार और जन-भागीदारी दोनों का है। पिछले दो साल में मध्य प्रदेश के शहर इंदौर ने कचरा प्रबंधन की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल करके यह साबित किया है कि शहर को साफ-सुथरा रखना और कचरे का निस्तारण कोई मुश्किल काम नहीं है। देश में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के उद्देश्यों को तब ही प्राप्त किया जा सकता है, जब आम जन द्वारा कचरे की मात्रा कम करने की आदतों को अपनाया जाए। जैसे कि पुनःप्रयोग, पुनःचक्रण, पृथक्करण की उचित तकनीक अपनाना व कम कचरा उत्पन्न करना आदि के अलावा आम नागरिकों को अपनी जीवन शैली और रहन-सहन का आकलन करने की भी जरूरत होगी।


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