कड़ी मेहनत ने पहले ही प्रयास में बना दिया एचपीएस

By: Jan 29th, 2020 12:23 am

प्रोफाइल

नाम  : डा. शिव कुमार शर्मा

जन्मस्थान : दधोल (घुमारवीं)

एचपीएस बैच : अगस्त, 2007

पिता : प्रकाश चंद

माता : स्व. बिमला देवी

शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा राजकीय प्राइमरी स्कूल दधोल, उच्च शिक्षा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला दधोल और बीएससी राजकीय कालेज घुमारवीं से।

अब तक इन-इन पदों पर दी सेवाएं..

वर्ष 2007 में डरोह में टे्रनिंग के उपरांत एचपीएस में , 2010 में बतौर सब-डिवीजनल पुलिस अफसर रोहडू,  2012-13 में एसडीपीओ परवाणू, दिसंबर 2013 में डीएसपी हैडक्वार्टर हमीरपुर, दिसंबर 2013 में प्रोमोशन हुई और पहली पोस्टिंग बतौर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में धर्मशाला, जिला कांगड़ा, इसके बाद 2017 में एएसपी हमीरपुर , फरवरी 2018 तक दोबारा एएसपी धर्मशाला के तौर पर सेवाएं देने के बाद वर्तमान में सोलन में इसी पद पर कार्यरत ।

माता-पिता को बेटे की काबिलीयत पर पूरा भरोसा था, बेटे ने भी जब होश संभाला, तो घरवालों की उम्मीदों पर खरा उतरना शुरू कर दिया था। इन उम्मीदों की नींव बेटे ने छठी से नवमी कक्षा तक लगातार अव्वल रह कर रख दी थी। बेटे ने शुरुआती पढ़ाई से ही माता-पिता की आंखों में वह सपना जगा दिया, जिससे यह मुहर लग गई कि भविष्य में कुछ न कुछ बनकर दिखाएगा। क्या बनेगा, यह बात न तो माता-पिता को पता थी और न ही इसकी समझ बेटे को थी। कहते हैं न यदि मन साफ हो, काम के प्रति वफादारी हो, मेहनत की ललक हो, तो ईश्वर राह अपने आप बना देता है। आज हम ऐसे व्यक्तित्व की बात कर रहे हैं, जिनकी राह में कांटे अनेक थे, लेकिन दृढ़ निश्चिय और मेहनत के आगे वे सब कांटे फूलों में तबदील हो गए।

जिस शख्स ने एचपीएस बनने से पहले पुलिस थाना न देखा हो, वहां की कार्यप्रणाली से वाकिफ न हो, आज वह एक काबिल पुलिस अफसर है। यह तब संभव हो पाया, जब कठिनाइयों को उसने रास्ते का रोड़ा नहीं बनने दिया और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते गया। हम बात कर रहे हैं, सोलन में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात डा. शिव कुमार शर्मा की। डा. शिव कुमार शर्मा समाज के लिए वह सशक्त उदाहरण हैं, जिनसे वाकई में सीखा जा सकता है कि यदि कुछ कर गुजरना है, तो विपरित परिस्थितियां भी कोई मायने नहीं रखती। वैसे तो पढ़ाई में पैसों की तंगी आड़े आ ही रही थी, लेकिन विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान एक समय ऐसा भी आया, जब पिता ने बेटे की पढ़ाई के लिए जमीन का एक टुकड़ा बेच दिया। यही नहीं, डा. शिव कुमार शर्मा ने अपने विद्यार्थी जीवन में वे दिन भी देखे हैं, जब नई किताब खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे तो वह दूध बेचने के बाद जो कमाई होती थी, उससे नई किताबें खरीदते थे। यहां तक कि उन्हें नई किताब के लिए कई बार एक से दो माह का इंतजार भी करना पड़ता था। बिलासपुर जिला की तहसील घुमारवीं के दधोल गांव में वर्ष 1982 में पिता प्रकाश चंद और माता स्व. बिमला देवी के घर जन्मे डा. शिव कुमार शर्मा ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई दधोल से शुरू की। इसके बाद राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला दधोल से ही 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। डा. शिव कुमार शर्मा का एक भाई और एक बहन थीं। बहन ने बचपन में ही इनका साथ छोड़ दिया और वर्ष 2015 में माता बिमला देवी का भी स्वर्गवास हो गया। छोटा भाई इन दिनों मंडी जिला के गोहर में  पंचायत इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत है।

दसवीं के बाद आया परिवर्तन…पिता को मानते हैं अपना असली गुरु

डा. शिव कुमार शर्मा का कहना है कि उनके जीवन में दसवीं कक्षा के बाद परिवर्तन आया और वह अपने पिता प्रकाश चंद को अपना असली गुरु मानते हैं, जिन्होंने उनका हर कदम पर साथ दिया। पढ़ाई के साथ-साथ दोनों भाई खेतों में बेजोड़ मेहनत करते थे, इससे जो कमाई होती उससे घर-बार चलता और स्कूल की फीस निकल पाती थी। डा. शिव कुमार शर्मा स्कूली दिनों से ही पढ़ाई में इतने तेज थे कि उन्होंने मेडिकल स्ट्रीम में 75 प्रतिशत अंकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद डा. शिव कुमार शर्मा ने वर्ष 1999 में राजकीय डिग्री कालेज घुमारवीं में दाखिला लिया। बता दें कि इस कालेज में उसी वर्ष साइंस की कक्षाएं शुरू हुई थीं और उनका पहला बैच था। यहां पर डा. शिव कुमार शर्मा को कालेज की पढ़ाई के लिए छह किलोमीटर दूर से आना पड़ता था। उनका कहना है कि कालेज में एडमिशन तो गया, लेकिन किताबों की समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। इसके बाद उन्होंने गांव के किसी व्यक्ति से किताबें लेनी चाहीं, लेकिन वह भी किसी और को दे चुके थे। इसके बाद उन्होंने 2005 के एचएएस सुनील शर्मा से किताबें लीं, लेकिन उनके पास भी आधी-अधूरी किताबें ही उपलब्ध हो सकीं। उनका कहना है कि ये उनके जीवन का ऐसा दौर था, जब वह सिलेबस के प्रति भी जागरूक नहीं थे। इस दौरान जब उनसे किसी ने पूछा कि करना क्या है, तो उन्होंने जवाब दिया कि फर्स्ट ईयर में 70 प्रतिशत अंक लेने हैं, लेकिन उन्हें कहा गया कि फर्स्ट ईयर में नंबर नहीं आते हैं। नंबर क्यों नहीं आते, यह बात उनके जहन में बैठ गई और उन्होंने मेहनत करनी आरंभ कर दी। उन्होंने कहा कि जब हाउस इग्जाम हुए तो वे चारों विषय में टॉपर थे और उनके 85 प्रतिशत मार्क्स थे। उनके प्राध्यापक विश्वास ही नहीं कर रहे थे कि डा. शिव के इतने मार्क्स भी आ सकते हैं।    

खेत में भाई लेकर आया खुशखबरी…

जब शिव कुमार शर्मा धान के खेत में धान की निंदाई कर रहे थे, तो उनके भाई ने खुशखबरी दी कि वह पास हो गए हैं, लेकिन उनके दोस्त ने उन्हें बताया कि उन्होंने घुमारवीं कालेज में फर्स्ट ईयर में टॉप किया है। उन्होंने 600 में से 477 अंक प्राप्त किए। तत्पश्चात, अध्यापकों ने बताया कि उन्होंने पूरे प्रदेश में टॉप किया है। यह बात अध्यापकों एवं कालेज के लिए बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि पहली बार कालेज में साइंस की कक्षाएं बैठीं और वहीं से प्रदेश का टॉपर निकल गया।

कालेज ने मुहैया करवाई किताबें…

फर्स्ट ईयर में सफलता के झंडे गाड़ने के बाद कालेज के तत्कालीन प्रिंसीपल एलडी शर्मा ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा कि कोई समस्या है तो वे उन्हें बता सकते हैं। डा. शिव कुमार शर्मा ने बताया कि उन्हें और कोई समस्या नहीं है, उन्हें केवल किताबों की ही समस्या है। इसके बाद द्वितीय और तृतीय वर्ष के लिए कालेज की तरफ से उनके लिए किताबें एवं पढ़ाई से संबंधित अन्य सामान उपलब्ध करवाया गया। उनका कहना है कि पहले वर्ष की सफलता को मेंटेन करना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इस चुनौती को भी स्वीकारते हुए द्वितीय और अंतिम वर्ष में भी पूरे प्रदेश में टॉप कर गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बाद भी उन्होंने मेहनत नहीं छोड़ी और वर्ष 2004 में एमएससी बॉटनी में भी गोल्ड मेडल हासिल किया। डा. शिव कुमार शर्मा वर्ष 2005 में एमफिल में सेकेंड टॉपर रहे हैं।

फैलोशिप से निकाला खुद व भाई की पढ़ाई का खर्च..

ऑल इंडिया लेवल की जेआरएफ नेट की परीक्षा में टॉप-20 में जगह बनाई। इसके लिए उन्हें डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी फेलोशिप लग गई। इस फेलोशिप से उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई, बल्कि अपने छोटे भाई का खर्च भी निकाला।

जून 2006 में शुरू की एचएएस की तैयारी…..

उनका कहना है कि उनका मन था कि एडमिन में जाना था, लेकिन कुछ भी पता नहीं था। 2005 में कालेज लेक्चरर का टेस्ट निकाला, लेकिन इंटरव्यू में बाहर हो गए। उन्होंने इंटरव्यू को बाहर होने का नया चेलेंज लिया और डा. आनंद सागर के मोटिवेशनल स्पोर्ट से वर्ष 2006 में एचएएस की परीक्षा की तैयारी शुरू की और पहले ही वर्ष यह परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। उन्होंने कहा कि इस दौरान छह लोगों ने एचएएस की परीक्षा को उत्तीर्ण किया था, जिनमें वह टॉपर थे। उनका कहना है कि पुलिस उनके लिए एक नया चैलेंज था, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा नहीं था।

नौकरी के साथ-साथ की पढ़ाई

नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई को भी जारी रखा। इस दौरान उन्होंने वर्ष 2012 में पीएचडी की थिसिस सबमिट की और 2014 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। इसके बाद वर्ष 2017 में एमए इन पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन और 2019 में मास्टर डिग्री इन मास-कम्युनिकेशन हासिल की।

पुरस्कार

डा. शिव कुमार शर्मा को डीजीपी डिस्क अवार्ड और एशिया एक्सीलेंस अवार्ड के अलावा, हिमाचल रक्षक अवार्ड और अक्तूबर 2019 में आर्कटेक कमांडर द्वारा कमांडर्स कॉमोडेशन अवार्ड से नवाजा गया है। डा. शिव कुमार शर्मा जहां एक कुशल पुलिस अफसर हैं, वहीं एक खिलाड़ी भी हैं। म्यूजिक के शौकीन डा. शिव कुमार शर्मा बैडमिंटन, टेनिस और क्रिकेट के बहुत बढि़या खिलाड़ी हैं और इसके अलावा एक एथलीट भी हैं। कसौली में आयोजित हुई टफमैन मैराथन के अलावा सोलन में होने वाली लगभग सभी प्रकार की मैराथन में भाग लेते हैं और इसके लिए वे रोजाना आठ किमी की दौड़ लगाते हैं।

मुलाकात: मेहनत ही सफलता की कुंजी है…

आपके अनुसार एचपीएस होने का मतलब क्या है?

एचपीएस के बारे में कभी सोचा नहीं था। हालांकि मैं एडमिन में जाना चाहता था। अब बहुत मायने रखता है कि यह एक ऐसा डिपार्टमेंट है, जिसकी लोगों को सीधी सर्विस है।

आपने स्कूली शिक्षा और कालेज व विश्वविद्यालय की पढ़ाई कहां से पूरी की?

प्रारंभिक स्कूली शिक्षा राजकीय प्राइमरी स्कूल दधोल, उसके बाद 12वीं तक की शिक्षा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला दधोल और बीएससी राजकीय कालेज घुमारवीं से की।

 छात्र के रूप में हासिल  उपलब्धियों में आप स्वयं को 10 में से कितने अंक देंगे?

10 में से 10 नंबर

आप प्रशासनिक सेवा में आए, इसके लिए कब सोचा?

प्रशासनिक सेवा में वर्ष 2005 में आया, जब कालेज लेक्चरर के इंटरव्यू से बाहर हो गया। इसको मैंने एक नए चैलेंज के रूप में लिया था।

आपने  सिविल सर्विस परीक्षा में कौन से विषय चुने और क्यों?

सिविल सर्विस के लिए मैंने बॉटनी और जूलॉजी विषय चुना था, क्योंकि मेरा यह फेवरेट सब्जेक्ट है।

एचपीएस बनने के लिए आपको कितने प्रयास करने पड़े। इसके लिए प्रेरणा कहां से मिली?

एचपीएस की परीक्षा मैंने पहली बार ही उत्तीर्ण कर ली थी। इसके लिए मुझे डा. आनंद सागर ने बहुत प्रेरित किया था।

एचपीएस के लिए कितने समय तक तैयारी की और रोजाना कितने घंटे पढ़ाई करते थे?

एचपीएस बनने के लिए मात्र आठ माह तक तैयारी की और प्रतिदिन आठ से दस घंटे तैयारी की।

कंपीटीटिव एग्जाम के लिए आजकल  कोचिंग का चलन बढ़ रहा है। क्या यह उपयोगी है?

कोचिंग तभी कारगर सिद्ध होती है यदि आपका बेसिक क्लीयर हो। यदि बेसिक ही क्लीयर नहीं है तो कोचिंग का कोई फायदा नहीं।

आम व्यक्ति के नजरिए से कहें, तो एसपी की नौकरी में तनाव। क्या सचमुच ऐसा है?

नौकरी में कोई तनाव नहीं है। जितना हो सके, सेवा कीजिए। जिनकी कोई नहीं सुनता, उनकी सुनिए और प्रोफेशनल तरीके से उसका हल कीजिए।

अधिकारी बनने का सपना संजोए युवाओं को किस सोच के साथ सेवा में आना चाहिए?

अपने प्रति ईमानदार रहें तो आपको कोई भी अधिकारी बनने से नहीं रोक सकता।

एचपीएस बनने की सोच रहे नौजवानों को आप तैयारी के लिए क्या टिप्स देना चाहेंगे?

टिप्स यही है कि कोई भी एग्जाम पास करना हो तो जनरल नॉलेज की किताबें अवश्य पढ़ें। प्रतिदिन एक हिंदी और एक अंग्रेजी के अखबार की खबरें पढ़ने की आदत जरूर डालें। इंटरनेट से कोई आईएएस, एचपीएस, एचएएस नहीं बनता। मेहनत के अलावा कोई अन्य स्कोप नहीं है। यदि किसी को गाइडेंस की जरूरत है तो वे मुझसे संपर्क कर सकते हैं।     

सुरेंद्र ममटा, सोलन


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