किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

By: Jan 25th, 2020 12:20 am

लेकिन कर्ण एक सूत का पुत्र था, फिर भी यह जानते हुए कि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही अपनी विद्या दान करते हैं, कर्ण ने छल करके परशुराम से विद्या लेने का प्रयास किया। परशुराम ने उसे ब्राह्मण समझ कर बहुत सी विद्याएं सिखाईं, लेकिन एक दिन जब परशुराम एक वृक्ष के नीचे कर्ण की गोदी में सिर रखके सो रहे थे, तब एक भौंरा आकर कर्ण के पैर पर काटने लगा। अपने गुरुजी की नींद में कोई अवरोध न आए, इसलिए कर्ण भौंरे को सहता रहा। भौंरा कर्ण के पैर को बुरी तरह काटे जा रहा था। भौंरे के काटने के कारण कर्ण का खून बहने लगा। वो खून बहता हुआ परशुराम के पैरों तक जा पहुंचा। परशुराम की नींद खुल गई और वे इस खून की तुरंत पहचान गए कि यह खून तो किसी क्षत्रिय का ही हो सकता है…

-गतांक से आगे…

परशुराम कर्ण के भी गुरु थे। उन्होंने कर्ण को भी विभिन्न प्रकार की अस्त्र शिक्षा दी थी और ब्रह्मास्त्र चलाना भी सिखाया था। लेकिन कर्ण एक सूत का पुत्र था, फिर भी यह जानते हुए कि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही अपनी विद्या दान करते हैं, कर्ण ने छल करके परशुराम से विद्या लेने का प्रयास किया। परशुराम ने उसे ब्राह्मण समझ कर बहुत सी विद्याएं सिखाईं, लेकिन एक दिन जब परशुराम एक वृक्ष के नीचे कर्ण की गोदी में सिर रखके सो रहे थे, तब एक भौंरा आकर कर्ण के पैर पर काटने लगा। अपने गुरुजी की नींद में कोई अवरोध न आए, इसलिए कर्ण भौंरे को सहता रहा। भौंरा कर्ण के पैर को बुरी तरह काटे जा रहा था। भौंरे के काटने के कारण कर्ण का खून बहने लगा। वो खून बहता हुआ परशुराम के पैरों तक जा पहुंचा। परशुराम की नींद खुल गई और वे इस खून को तुरंत पहचान गए कि यह खून तो किसी क्षत्रिय का ही हो सकता है जो इतनी देर तक बगैर उफ किए बहता रहा। इस घटना के कारण कर्ण को अपनी अस्त्र विद्या का लाभ नहीं मिल पाया। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार गुरु परशुराम कर्ण की एक जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे। तभी एक बिच्छू कहीं से आया और कर्ण की जंघा पर घाव बनाने लगा। किंतु गुरु का विश्राम भंग न हो, इसलिए कर्ण बिच्छू के दंश को सहता रहा। अचानक परशुराम की निद्रा टूटी और ये जानकर कि एक ब्राह्मण पुत्र में इतनी सहनशीलता नहीं हो सकती कि वो बिच्छू के दंश को सहन कर ले। कर्ण के मिथ्याभाषण पर उन्होंने उसे यह श्राप दे दिया कि जब उसे अपनी विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, तब वह उसके काम नहीं आएगी।

विष्णु अवतार

भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को विश्ववंद्य महाबाहु परशुराम का जन्म हुआ था।

वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे।

कल्कि पुराण

कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे।

वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। 

मार्शल आर्ट में योगदान

भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है।               


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